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Antigen: ​​​​​इम्यून सेल को सक्रिय करने वाले एंटीजन खोजना होगा आसान

बायोइंजीनियरिंग एंड जीनेटिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर फोर्डायस ने बताया कि एक टी सेल 10 हजार या एक लाख नान-एंटीजनिक पेप्टाइड में से एक ही एंटीजनिक पेप्टाइड की पहचान कर पाता है। यह विशिष्टता टी सेल का क्राउलिंग (धीमी गति से घूमने) से आती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 07 Sep 2022 02:16 PM (IST)Updated: Wed, 07 Sep 2022 02:16 PM (IST)
Antigen: ​​​​​इम्यून सेल को सक्रिय करने वाले एंटीजन खोजना होगा आसान
इम्यूनोथेरेपी में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

वाशिंगटन, एएनआइ : कोशिकाओं की सतह पर मौजूद रहने वाले करोड़ों मालीक्यूल्स उन्हें संक्रामक और असंक्रामक तत्वों की पहचान कराते हैं। यही मालीक्यूल कोशिकाओं की विशिष्टताओं को समेटे रहते हैं। इन्हीं में से कुछ एंटीजन मालीक्यूल्स होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को लड़ने के प्रेरित करते हैं। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में मौजूद मालीक्यूल्स में इन विशिष्ट मालीक्यूल्स की पहचान करना बड़ा ही कठिन काम होता है, क्योंकि हर व्यक्ति में ये अलग-अलग होते हैं। हालांकि विज्ञानियों ने अब इनकी पहचान के नए तरीके खोजे हैं, जिससे काम आसान हो जाएगा। यह निष्कर्ष नेचर मेथ्ड्स जर्नल प्रकाशित हुआ है।

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सपफान ईएम-एच इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता पाली फोर्डायस के नेतृत्व वाली स्टैनफोर्ड के विज्ञानियों की एक टीम ने एक ऐसी सटीक विधि खोजी है, जिससे काफी तेजी से यह पता लगाया जा सकेगा कि कौन सा एंटीजन स्ट्रांग इम्यून रिस्पांस देगा। इस खोज से विज्ञानियों को ज्यादा प्रभावी कैंसर इम्यूनोथेरेपी विकसित करने में मदद मिलेगी।

इम्यून सेल की टी कोशिकाएं शरीर में एक तरह से गश्त करते समय अन्य कोशिकाओं के साथ अत्यंत धीमी गति से घूमती रहती हैं। टी सेल के रिसेप्टर मालीक्यूलर स्तर पर पेप्टाइड या प्रोटीन के छोटे-से टुकड़े की भी पहचान करने में सक्षम होते हैं। ये प्रोटीन आपस में जुड़कर बड़े हिस्टोकम्पैटिबिलिटी कांप्लेक्स (पीएमएचसी) बनाते हैं, जो कोशिकाओं की सतह से प्रोजेक्ट होते हैं। स्वस्थ होस्ट सेल में पीएमएचसी इस तरह व्यवस्थित होते हैं कि वे इम्यून रिस्पांस को शुरू नहीं करते, लेकिन एक बार जब टी सेल्स रोगजनक पेप्टाइड की पहचान कर लेते हैं तो वे सक्रिय हो जाते हैं तथा उसकी पहचान कर उसे मारने को तत्पर हो जाते हैं। यह समझना लंबे समय से एक रहस्य रहा है कि टी सेल्स होस्ट (मेजबान) सेल्स को गलती से मारने से बचने के लिए होस्ट पेप्टाइड्स से इन एंटीजनिक पेप्टाइड्स को संवेदनशील रूप से कैसे अलग करती हैं।

बायोइंजीनियरिंग एंड जीनेटिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर फोर्डायस ने बताया कि एक टी सेल 10 हजार या एक लाख नान-एंटीजनिक पेप्टाइड में से एक ही एंटीजनिक पेप्टाइड की पहचान कर पाता है। यह विशिष्टता टी सेल का क्राउलिंग (धीमी गति से घूमने) से आती है। टी सेल्स की फिसलन रिसेप्टर और पेप्टाइड के बांडिंग पर तनाव पैदा करता है और अधिकांश मामलों में यह तनाव इतना ज्यादा होता है कि वह बांड टूट जाता है। लेकिन कभी-कभार इसका उलटा असर भी होता है। अध्ययन की सह लेखिका क्रिस गारसिया तथा अन्य शोधकर्ताओं ने यह दर्शाया है कि टी सेल्स की फिसलन से अधिकांश एंटीजनिक पेप्टाइड के बीच की अंतरक्रिया टी सेल्स के रिसेप्टर बढ़ कर मजबूत हो जाते हैं। यह कुछ इस तरह का होता है कि जब आप रिसेप्टर एंटीजन को थोड़ा सा खींचते हैं बांडिंग लंबे समय तक बनी रहती है।

सर्वश्रेष्ठ एंटीजन-रिसेप्टर जोड़े की पहचान करने के लिए एक साथ उस स्लाइडिंग, या अपरूपण एक पेप्टाइड और एक टी सेल के बीच के फोर्स और टी सेल की सक्रियता को मापने की आवश्यकता होती है। इसके आदर्श डाटा प्राप्त करने के लिए इसे हजारों बार दोहराने की जरूरत होती है। इसमें काफी समय लगता है और एक दिन में सैकड़ों टी कोशिकाओं के साथ केवल एक पेप्टाइड को मापने का परिणाम मिल सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने एक ऐसा रास्ता तलाशा, जिससे 20 यूनिक पेप्टाइड पांच घंटे में ही हजारों टी सेल्स से प्रतिक्रिया करते हैं।

इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने खास मैटेरियल से छोटे से गोलाकार बीड्स बनाए। ये मैटेरियल गर्म होने पर पीएमएचसी के साथ जुड़े पेप्टाइड के मालीक्यूल से जुड़ जाते हैं। प्रत्येक बीड के ऊपर एक टी सेल जमा करने के बाद और रिसेप्टर्स को पेप्टाइड्स से बांधने के लिए काफी देर तक प्रतीक्षा करने के बाद, उन्होंने बीड्स को थोड़ा गर्म किया। बीड्स के विस्तार से टीथर प्वाइंट्स के बीच की दूरी बढ़ जाती है और टी सेल के अनुरूप खिंचाव उस फोर्स की नकल करता है जो शरीर में कोशिकाओं के साथ फिसलने का अनुभव करेगा। इस फोर्स का इस्तेमाल करने के बाद टीम ने इसका आकलन किया कि टी सेल्स किस प्रकार से सक्रिय हुईं।

शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए, टी सेल रिसेप्टर्स की विशेषता बताई, जो विशेष रूप से आफ-टारगेट रिएक्टिविटी के बिना ट्यूमर एंटीजन को पहचानने के लिए बनाए थे। उनका मानना है कि यह एक तेज विधि वाली प्रक्रिया है और इसमें कुछ कोशिकाओं की आवश्यकता होती है, या इसका एक अनुकूलित रूप एक दिन व्यक्तिगत इम्यूनोथेरेपी में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।


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