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कोरोना संकट के इस दौर में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है विटमिन डी

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जिन तत्वों की ज़रूरत होती है विटमिन डी भी उन्हीं में से एक है। कोरोना संकट के इस दौर में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए भी डॉक्टर्स इसके सेवन की सलाह दे रहे हैं। यह क्यों ज़रूरी है जानने के लिए पढ़ें यह लेख।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 08:00 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 08:04 AM (IST)
कोरोना संकट के इस दौर में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है विटमिन डी
शरीर के लिए बेहद जरूरी है विटामिन डी

विटमिन डी एक ऐसा पोषक तत्व है, जिसके सहयोग से शरीर में कैल्शियम का निर्माण होता है। वास्तव में यह वसा में घुलनशील प्रो-हॉर्मोन्स का समूह है, जो आंतों से कैल्शियम को सोखकर उसे हड्डियों तक पहुंचाता है। इसके दो प्रकार होते हैं-विटमिन डी-2 और डी-3। शरीर को संक्रमण से बचाने वाली कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को भी विटमिन डी की मदद से दुरुस्त किया जा सकता है। यह इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है और फेफड़े को इन्फेक्शन से बचाता है। साथ ही यह नर्वस सिस्टम को सक्रिय बनाए रखता है। विटमिन डी-3 कोशिकाओं में प्रोटीन की मात्रा को नियमित करता है। इसी प्रोटीन के कारण शरीर को सही आकार मिलता है। उम्र बढऩे के साथ शरीर में प्रोटीन बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है।       

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कब होती है समस्या

विटमिन डी की कमी होने पर हड्डियों में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता, जिससे वे कमज़ोर हो जाती हैं। चाहे कितनी ही अधिक मात्रा में कैल्शियम का सेवन किया जाए, पर विटमिन डी के अभाव में शरीर को इसका पूरा फायदा नहीं मिल पाता। समस्या यहीं खत्म नहीं होती। अगर ब्लड में कैल्शियम का लेवल कम हो जाता है तो उसकी पूर्ति के लिए खून हड्डियों से कैल्शियम लेना शुरू कर देता है। इसी वजह से लोगों के हाथ-पैरों में दर्द शुरू हो जाता है। कुछ बच्चों में जन्म से ही विटमिन डी की कमी होती है, जिससे उनके हाथ-पैर टेढ़े हो जाते हैं। ऐसी समस्या को रिकेट्स कहा जाता है, हालांकि गर्भावस्था के दौरान खानपान संबंधी बढ़ती जागरूकता और चिकित्सा सुविधाओं के कारण अब ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं, लेकिन जिन क्षेत्रों में गर्भवती स्त्रियां कुपोषण से ग्रस्त होती हैं, वहां के बच्चों में इसकी आशंका रहती है। कुछ मामलों में किडनी विटमिन डी को एक्टिव फॉर्म में नहीं बदल पाती, तब भी इसकी कमी हो जाती है। 

क्यों होती है कमी

जीवनशैली में आने वाला बदलाव इसकी सबसे बड़ी वजह है। आजकल अधिकतर लोग सुबह ऑफिस के लिए निकल जाते हैं और शाम को अंधेरा होने के बाद ही घर पहुंचते हैं। इसी वजह से उनके शरीर को सूरज की रोशनी नहीं मिल पाती, जो विटमिन डी का प्रमुख स्रोत है। आमतौर पर लोगों को ऐसा लगता है कि मॉर्निंग वॉक करने से शरीर को विटमिन डी मिल जाता है, वास्तव में ऐसा नहीं है। शोध से यह तथ्य सामने आया है कि इसका सेवन करने के लिए सुबह 11 से 1 बजे तक कम से कम 30 मिनट तक सूरज की रोशनी के संपर्क में रहना चाहिए, लेकिन आधुनिक जीवनशैली में व्यस्तता के कारण लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते। पहले खुले, हवादार और बड़े घर होने के साथ धूप सेंकने की फुर्सत भी थी। आजकल महानगरों के छोटे-छोटे फ्लैट्स में लोगों को सही ढंग से धूप नहीं मिल पाती। बढ़ता वायु प्रदूषण भी इसके लिए जि़म्मेदार है। घर से बाहर जाने वाले लोग टैनिंग और कोरोना संक्रमण के डर से चेहरे के साथ पूरे शरीर को अच्छी तरह ढंक लेते हैं, जिससे शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटमिन डी का पोषण नहीं मिल पाता।

कमी से होने वाले नुकसान

अगर शरीर में विटमिन डी की कमी हो तो इससे हड्डियों और मांसपेशियों में कमज़ोरी, चलते समय घुटनों से आवाज़ निकलना, अनावश्यक थकान, बेचैनी, बाल झडऩा चिड़चिड़ापन, स्त्रियों में पीरियड्स संबंधी अनियमितता, इम्यून सिस्टम की कमज़ोरी से किसी भी तरह के संक्रमण का खतरा, इंफर्टिलिटी की आशंका और कमज़ोर स्मरण-शक्ति जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा हाल ही में अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी में 489 रोगियों पर किए गए एक अध्ययन के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जिन रोगियों में विटामिन डी की कमी पाई गई, उनमें कोरोना संक्रमण का खतरा दोगुना से भी अधिक था।

जांच एवं बचाव

अगर आपको यहां बताए गए लक्षण नज़र आएं तो बिना देर किए विटमिन डी के स्तर की जांच कराएं। इसे 25 हाइड्रोक्सी टेस्ट के नाम से जाना जाता है। ब्लड में 50-20 नैनोग्राम के विटमिन डी के स्तर को सामान्य माना जाता है। अगर रिपोर्ट में इसका स्तर 20 नैनोग्राम से कम हो तो व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर विटमिन डी सप्लीमेंट के नियमित सेवन से इसके लेवल को सुधारा जा सकता है, पर स्वयं इसकी गोलियां लेने की भूल न करें क्योंकि इसकी अधिकता से भी नॉजि़या और वोमिटिंग जैसी समस्याएं हो सकती हैं। नियमित एक्सरसाइज़ से शरीर को विटमिन डी और कैल्शियम के अवशोषण में मदद मिलती है। प्रतिदिन एक घंटे तक किए जाने वाले वर्कआउट में स्ट्रेंथनिंग, स्टे्रचिंग, ऐरोबिक्स, साइक्लिंग, वेट लिटिंग, स्विमिंग या डांंस स्ट्रेंथनिंग का संतुलित मिश्रण होना चाहिए। अपनी सुविधा के अनुसार सप्ताह के हर दिन के लिए विभिन्न प्रकार के वर्कआउट का कॉबिनेशन तैयार कर लें। बीच में बदलाव के लिए 45 मिनट का ब्रिस्क वॉक भी फायदेमंद साबित होगा।

डॉ. एल. तोमर, सीनियर ऑर्थेपेडिक सर्जन, मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली से बातचीत पर आधारित


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