Dengue Fever Test: कैसे किया जाता है डेंगू बुख़ार का टेस्ट?
Dengue Fever Test ये मच्छर घरोंस्कूलों या अन्य जगहों के आसपास एकत्रित खुले व साफ पानी में अंडे देते हैं। इनके शरीर पर सफेद और काली पट्टी होती है इसलिए इन्हे टाइगर मच्छर कहते हैं।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Dengue Fever Test: डेंगू एक बेहद ही ख़तरनाक बीमारी है जो मच्छरों के काटने से होती है। मच्छरों के काटने से डेंगू वायरस हमारे शरीर में रक्त में प्रवाहित हो जाते हैं और ये हमारे शरीर को प्रभावित करने लग जाते हैं। डेंगू वायरस का वाहक एडीज़ मच्छर की मादा प्रजाति होती है। डेंगू के मच्छर बारिश के मौसम के दौरान भारी मात्रा में पाए जाते हैं। यह मच्छर घरों, स्कूलों और अन्य जगह व इनके आस-पास एकत्रित खुले और साफ पानी में अंडे देते हैं। इनके शरीर पर सफेद और काली पट्टी होती है इसलिए इनको टाइगर मच्छर भी कहते हैं। यह मच्छर निडर होता है और ज्यादातर दिन के समय ही काटता है। डेंगू एक विषाणु से होने वाली बीमारी है जो एडीज़ एजिप्टी नामक संक्रमित मादा मच्छर के काटने से फैलती है। डेंगू एक तरह का वायरल बुखार है।
डेंगू बुखार का पता लगाने के लिए मुख्य तौर पर दो प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं:
1. NS1: डेंगू के लक्षण सामने आने पर 5 दिनों के भीतर इस टेस्ट को करवाना सही माना जाता है। यह परीक्षण डेंगू के शुरुआती दिनों में अच्छे से परिणाम देने में सक्षम होता है, लेकिन जैसे-जैसे डेंगू के लक्षण बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे इसकी जांच की प्रामाणिकता कम होने लगती है। चिकित्सकों के अनुसार इसकी जांच लक्षण दिखने के 5 दिनों के अंदर करवा लेनी चाहिए। इसमें विलंब होने पर इस जांच के परिणाम गलत भी आ सकते हैं। इससे रोगी पर भी प्रभाव पड़ सकता हैं क्योंकि उनके उपचार में देर या लापरवाही बरतना बिलकुल भी सही नहीं है। इसलिए जितना हो सके ये जांच जल्दी करवा लेनी चाहिए।
2. एलाइज़ा: डॉ. रविंद्र गुलाटी का कहना है कि डेंगू के लिए की जाने वाली यह सबसे भरोसेमंद जांच है, जिसमें डेंगू का परिणाम शत प्रतिशत तक सही आता है। इसकी जांच पर चिकित्सकों का भरोसा भी ज़्यादा होता है। एलाइज़ा टेस्ट भी दो प्रकार के होते हैं, पहला आईजीएम और दूसरा आईजीजी।
आईजीएम टेस्ट डेंगू के लक्षण आने से 3-5 दिन के अंदर-अंदर करवाना ज़रूरी है। वहीं, दूसरा टेस्ट आईजीजी भी 5 से 10 दिन के अंदर करवाना अनिवार्य है। इसके परिणामों की सटीकता इसके जांच के समय पर आधारित होती है। मतलब समय रहते जांच करवाने पर डेंगू की पुष्टि प्रमाणिकता ज़्यादा होती है और इलाज भी बेहतर होता है।
डेंगू के अधिकांश मामलों में चिकित्सक एनएस1 टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। इसका प्रमुख कारण है कि यह टेस्ट शुरुआती 5 दिनों में ही करवाया जाता है, जबकि एलाइजा टेस्ट में अधिक समय लगता है।
इसके अलावा कई चिकित्सक लक्षण को देखकर डेंगू की पहचान कर लेते हैं और साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए दवाई दे देते हैं, जो भी डेंगू के इलाज़ का एक कारगर उपचार है।