Coronavirus In India: कोरोना वायरस से भारत में मृत्यु दर कम होने की ये है बड़ी वजह!
Coronavirus In India जीन के पूर्ण डीएनए डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि यह भारतीय जीन है जिसने यहां कि आबादी की रक्षा की है और इस घातक वायरस से लड़ने में मदद भी कर रहा है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Coronavirus In India: शीर्ष जेनेटिक एक्सपर्ट्स ने एक शोध में कोरोना वायरस महामारी से भारत में मृत्यु दर कम होने का कारण खोज निकाला है। उनके मुताबिक, भारत वासियों को आभारी होना चाहिए आपने जीन्स का, जिसकी वजह से अमेरिका और यूरोपीय देशों की तुलना में भारत में कोविड-19 से होनी वाली मौतों का दर काफी कम है।
क्या कहता है शोध?
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ज्ञानेश्वरी चौबे के नेतृत्व में छह संस्थानों के विशिष्ट आनुवंशिक विशेषज्ञों वाली एक टीम ने विभिन्न महाद्वीपीय आबादी से एक्स गुणसूत्र के एंजियोटेनसिन-परिवर्तित एंजाइम 2 (ACE2) जीन के पूर्ण डीएनए डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि यह भारतीय जीन ही है, जिसने यहां की आबादी की रक्षा की है और इस घातक वायरस से लड़ने में इस वक्त मदद कर रहा है।
इस शोध से यह साबित होता है कि भारत और दक्षिण-पूर्वी देशों की तुलना में कोविड-19 की मृत्यु दर यूरोपीय देशों और अमेरिका में बहुत अधिक क्यों है।
भारत की अमेरिका और यूरोपीय देशों से की तुलना
टीम के विश्लेषण के परिणाम गुरुवार को जारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध पत्रिका पीएलओएस वन में प्रकाशित हुए हैं। वैज्ञानिकों ने एक संभावित आणविक आनुवांशिक व्याख्या प्रदान की है कि ईरानी, यूरोपीय और अमेरिकी मूल के लोगों में भारत और पूर्वी एशिया के लोगों की तुलना में कोरोना वायरस का जोखिम क्यों अधिक है।
अंतरराष्ट्रीय टीम ने विभिन्न महाद्वीपीय आबादी से ACE2 जीन के पूर्ण डीएनए डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि अमेरिका और यूरोप की तुलना में इस जीन में मौजूद कुछ उत्परिवर्तन दक्षिण एशियाई और पूर्वी एशियाई आबादी की इस वायरस से लड़ने में सफलतापूर्वक मदद कर रहे हैं। इसलिए यहां का मृत्यु दर काफी कम है।
प्रोफेसर चौबे के मुताबिक, "ACE2 जीन कोरोना वायरस का प्रवेश द्वार है और इस जीन के कुछ आनुवंशिक परिवर्तन रोग की गंभीरता से संबंधित हैं।"
अन्य शोध समूहों द्वारा ACE2 जीन पर कुछ प्रारंभिक अध्ययन किए गए हैं, लेकिन उनमें से सभी विभिन्न उत्परिवर्तनों की उपस्थिति या अनुपस्थिति की तलाश में हैं, जबकि, इस टीम ने अधिक शक्तिशाली हैप्लोटाइप-आधारित विश्लेषण का इस्तेमाल किया (जिसमें विशेषज्ञ डीएनए को पूरी तरह से कई टुकड़ों में तोड़ते हैं और फिर तुलना करते हैं)।
स्विटज़रलैंज के एक्सपर्ट जॉर्ज वान ड्रीम ने कहा, "अधिकांश दक्षिण एशियाई लोगों की आनुवांशिक वंशावली को पूर्व यूरेशियाई लोगों की बजाय पश्चिम यूरेशियन आबादी से पता लगाया जा सकता है, जबकि इस जीन के परिणाम बिल्कुल अलग हैं।"