इन्फ्लुएंज़ा व स्वाइन फ्लू से बचने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के आयुर्वेदिक उपचार
इन्फ्लुएंजा, स्वाइन फ्लू और वायरल फीवर कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति पर जल्द असर करती हैं। तो आयुर्वेद द्वारा इन बीमारियों के इलाज और रोग प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ाएं, जानेंगे।
इन्फ्लुएंज़ा, वायरल फीवर और स्वाइन फ्लू हवा द्वारा फैलने वाली गंभीर बीमारियां हैं। जिसके लिए एलोपैथ में कई सारी दवाएं मौजूद हैं और बीमारी को जल्द ठीक करने के लिए ज्यादातर लोग एलोपैथी ट्रीटमेंट को बेहतर मानते हैं। लेकिन आयुर्वेद द्वारा भी इन बीमारियों का इलाज संभव है। और सबसे अच्छी बात है कि इससे किसी तरह का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। तो आज हम बात करेंगे आयुर्वेद द्वारा इन बीमारियों से बचने के उपायों के बारे में।
इन्फ्लुएंज़ा और स्वाइन फ्लू के आयुर्वेदिक उपचार
1. इन बीमारियों के होने का मतलब ही है रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना। इसे बढ़ाने के लिए अदरक की चाय, तुलसी का स्वरस और आंवले का जूस पी सकते हैं।
2. ऐसी बीमारियों में बहुत ही कारगर होता है काढ़ा पीना। इसे बनाने के लिए तुलसी के 10 से 15 पत्ते, 5 से 7 काली मिर्च, 3 लौंग और एक छोटा-सा अदरक का टुकड़ा या इसका पेस्ट लेकर थोड़े से पानी में कुछ देर तक उबाल लें। हल्का ठंडा होने पर इसमें शहद मिला कर पिएं।
3. जो भी जीवाणु संक्रमण हैं या विषाणुजनित संक्रमण हैं उनसे बचने के लिए घर में दीया-बत्ती भी जलाएं। देवदारु, राल, कर्पूर और नीम के पत्ते मिला कर धूपन कर सकते हैं। इसकी रोक-थाम के लिए कर्पूर जला भी सकते हैं और इसे खा भी सकते हैं। बहुत ही कम मात्रा में अगर कर्पूर खाया जाता है तो इससे रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है।
4. वैसे तो तुलसी के पत्तों का काढ़ा पीने से रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसमें मधु पिप्पली का प्रयोग भी किया जा सकता है। 1 से 2 ग्राम पिप्पली लें। बड़ों को पीना है तो इसमें दोगुनी मात्रा में शहद मिलाएं और बच्चों के लिए चार गुनी मात्रा मिलाकर बनाएं।
5. इस तरह की बीमारियों में नाक में जलन होती है छींकें आती हैं और गले में भी बहुत ज्यादा तकलीफ होती है। गले में हो रही खराश में आराम के लिए नमक के पानी से गरारे करें या फिर त्रिफला का काढ़ा भी फायदेमंद होता है। और नाक में हो रही जलन के लिए सरसों का तेल या फिर गाय के शुद्ध घी के 4 से 6 बूंद नाक में रोज़ाना डालने से जलन भी कम होती है साथ ही नाक भी साफ रहती है।
6. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इन्फ्लुएंज़ा और फ्लू में खांसी की प्रॉब्लम भी होती है तो इसे दूर करने के लिए शीतोलोप्लादि चूर्ण का इस्तेमाल कर सकते हैं। आधे से 1 चम्मच शीतोलोप्लादि चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम लेने पर खांसी में बहुत ज़्यादा आराम मिलता है।
7. इसके अलावा गुडूची, पुष्कर मूल, पिप्पली और तुलसी मिलाकर इसका भी एक काढ़ा तैयार कर सकते हैं जिससे इन्फ्लुएंज़ा बीमारी में बहुत जल्द आराम मिलता है। स्वाइन फ्लू से बचने के लिए अगर कपूर को रुमाल में रखकर 10-10 मिनट में सूंघते रहने से संक्रमण काफी हद तक कम हो जाता है।
8. अंकुरित अन्न नहीं खाना चाहिए, गुरु अन्न जो पचने में भारी होता है या देर से पचता है उसे भी खाने से बचना चाहिए। ऐसी चीज़ों को भी खाने से बचें जिसमें तिल शामिल हो। बहुत ज़्यादा व्यायाम नहीं करना चाहिए। ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए। जिससे की हमारी रोग-प्रतिरोधक शक्ति कम हो।
हमें क्या क्या करना चाहिए?
जितना हो सके आराम करना चाहिए। व्रत रखना भी बेहतर रहेगा। जितना हो सके हल्का भोजन करें जैसे खिचड़ी आदि, जो जल्दी पच जाता है।
कौन-कौन सी चीज़ें खा सकते हैं?
लौकी, परवल, तोरई, टिंडा, करेला, इन सबका प्रयोग किया जा सकता है। जीवत्री का साग, मकोई का साग या फिर पेठा का इस्तेमाल भी फायदेमंद होता है। इन्फ्लुएंज़ा और स्वाइन फ्लू में आयुर्वेद में वर्णित पथ्य-अपथ्य और जो बचाव के तरीके बताए गए हैं। अगर उनका पालन सही तरीके से करते हैं तो इन्फ्लुएंज़ा और स्वाइन फ्लू से बचा जा सकता है।