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भारतीय फिल्मों के 'दादा साहब'

लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा.. घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा..दोस्तों, 'मासूम' फिल्म का यह गाना आपको याद होगा। इस खूबसूरत गीत को लिखने वाले महान गीतकार गुलजार को साल 2013 के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के पिताम

By Edited By: Published: Fri, 25 Apr 2014 01:21 PM (IST)Updated: Fri, 25 Apr 2014 01:21 PM (IST)
भारतीय फिल्मों के 'दादा साहब'

लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा.. घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा..दोस्तों, 'मासूम' फिल्म का यह गाना आपको याद होगा। इस खूबसूरत गीत को लिखने वाले महान गीतकार गुलजार को साल 2013 के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के पितामह माने जाने वाले दादा साहब फाल्के की याद में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए दिया जाता है। 30 अप्रैल को दादा साहब फाल्के का जन्मदिन भी है। आओ जानें, इस महान शख्सियत से जुड़ी कुछ रोचक बातें.

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दादा साहब फाल्के

पूरा नाम : धुंडीराज गोविंद फाल्के

जन्म : 30 अप्रैल,1870 को नासिक के पास ˜यंबकेश्वर में।

पहली फिल्म : 'राजा हरिश्चंद्र'। 03 मई, 1913 को बंबई के कोरोनेशन थियेटर में रिलीज। भारत की पहली फीचर फिल्म। फिल्म में महिला किरदार 'तारामती' का रोल एक मराठी युवक सालुंके ने किया।

दूसरी फिल्म : 'मोहनी भस्मासुर'। इसमें भारतीय फिल्म की पहली एक्ट्रेस कमला बाई गोखले ने काम किया।

अंतिम मूक फिल्म : 'सेतुबंधन' (1932 में रिलीज)

फिल्में : 20 वषरें में कुल 95 फिल्में और 26 लघु फिल्में।

रोल : दादा साहब खुद ही आर्ट डायरेक्टर, विजुअलाइजर, कैमरामैन, एडिटर, वेशभूषाकार, मेकअप मैन, डेवलपर, आर्टिस्ट और डिस्ट्रीब्यूटर सारे काम करते थे।

निधन : 16 फरवरी, 1944 में (73 साल की उम्र में)

-दादा साहब ने मुंबई के जे जे स्कूल ऑफ आ‌र्ट्स से आर्ट में डिप्लोमा किया। फिर बड़ौदा के कलाभवन में रहे। उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में फोटोग्राफर के रूप में काम किया। उनका अपना एक प्रिंटिंग प्रेस भी था। साल 1911 में मुंबई में ईसा मसीह के जीवन पर आधारित फिल्म देखने के बाद फिल्म क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित हुए।

-फाल्के ने अपनी फिल्मों का निर्माण बंबई के अलावा नासिक में भी किया।

-उनकी बड़ी बेटी मंदाकिनी को पहली बाल कलाकार माना जाता है, जिन्होंने 'कालिया मर्दन' फिल्म में बाल कृष्ण की भूमिका निभाई थी।

-दादा साहब की पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाने के संघर्ष पर कुछ साल पहले मराठी फिल्म बनी थी 'हरीशचंद्रासी फैक्ट्री', जो ऑस्कर के लिए भी नामांकित हुई थी।

-भारतीय फिल्मों के पितामह के रूप में उन्हें दादा साहब कहा जाता है।

दादा साहब फाल्के अवार्ड

-1969 में दादा साहब की 100वीं जयंती के मौके पर 17 वें नेशनल फिल्म अवार्ड के साथ यह अवार्ड शुरू हुआ।

-पुरस्कार के रूप में एक स्वर्ण कमल, एक शाल और 10 लाख रुपये दिए जाते हैं।

-भारतीय सिनेमा की कुछ जानी-मानी हस्तियों की ज्यूरी इस अवार्ड का फैसला करती है।

-अब तक कुल 45 लोगों को दादा साहब अवार्ड मिल चुका है। 1969 का पहला अवार्ड ऐक्ट्रेस देविका रानी को दिया गया था, जबकि 2013 के लिए यह अवार्ड मशहूर गीतकार व निर्माता-निर्देशक गुलजार को देने की घोषणा की गई है। इस अवार्ड से सम्मानित होने वाली भारतीय फिल्म जगत की प्रमुख हस्तियों में पृथ्वीराज कपूर, सोहराब मोदी, नौशाद अली, दुर्गा खोटे, सत्यजीत रे, राज कपूर, लता मंगेशकर, दिलीप कुमार, देव आनंद, प्राण आदि शामिल हैं।

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

-भारतीय सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए 1954 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया। 1973 से लगातार भारत सरकार के डायरेक्टरेट ऑफ फिल्म फेस्टिवल्स द्वारा संचालित पुरस्कार समारोह दिल्ली के विज्ञान भवन में होती है, जहां महामहिम राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान करते हैं।

-फीचर फिल्म, गैर-फीचर फिल्म और बेस्ट राइटिंग तीन कैटेगरी में अवार्ड दिए जाते हैं।

-अवार्ड के लिए सार्वजनिक रूप से एंट्रीज मंगाई जाती हैं।

-ज्यूरी के सदस्यों को डायरेक्टरेट ऑफ फिल्म फेस्टिवल्स नियुक्त करता है।

-सेंट्रल, नॉर्थ, साउथ, ईस्ट, वेस्ट जोन के हिसाब से अलग-अलग ज्यूरी गठित होती हैं।

-फीचर फिल्मों के लिए अलग ज्यूरी और नॉन-फीचर फिल्मों के लिए अलग ज्यूरी होती है।

-अवार्ड के तहत 50 हजार से लेकर ढाई लाख रुपये नकद, स्वर्ण या रजत कमल दिया जाता है।

फिल्मफेयर अवार्ड

-1954 में ही फिल्मफेयर पुरस्कार की शुरुआत हई।

-ज्यूरी और पब्लिक दोनों के वोट के आधार पर अवार्ड का फैसला होता है।

-इसकी शुरुआत साल 2000 में हुई।

-इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकेडमी की ओर से हर साल हिंदी सिनेमा में कला और तकनीकी प्रदर्शन के लिए दिया जाता है।

(प्रस्तुति : मिथिलेश श्रीवास्तव)


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