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जुनून से मिली जीत

टाइम ने टेस्ट लिया। डिफिकल्ट सिचुएशंस ने डिप्रेस किया, लेकिन उम्मीद बंधी रही। धीरज को धैर्य मिलता रहा। गरीब फैमिली से होने के बावजूद वह सपने देखते रहे और मेहनत के बलबूते इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया..

By Edited By: Published: Wed, 11 Sep 2013 01:14 AM (IST)Updated: Wed, 11 Sep 2013 12:00 AM (IST)
जुनून से मिली जीत

एक बार टीचर ने अपने एक स्टूडेंट से कहा, अगर आईआईटी में जाने का टारगेट रखोगे, तो कम से कम किसी अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में तो एडमिशन मिल ही जाएगा। लेकिन जब गोल ही नहीं होगा, फिर हाथ कुछ भी नहीं आएगा। धीरज ने भी बडा सपना देखा था। वह आगे बढा और आखिर में वह राह मिल गई, जो उसे सीधे मंजिल तक पहुंचाएगी। उसने इंजीनियरिंग एंट्रेंस जेईई एग्जाम क्वॉलिफाई किया, 458 रैंक हासिल कर उन्हें एनआईटी दिल्ली के इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया। बडी बात दाखिला मिलना नहीं, बल्कि विपरीत स्थितियों में किया गया धीरज का हार्ड वर्क और डेडिकेशन है, जिसने उसे यहां तक पहुंचाया है।

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मुश्किल कंडीशन में पढाई

धीरज अपनी फैमिली के साथ साल 2004 में बिहार के गया जिले से दिल्ली आए थे। पिता टेलर का काम करते थे। इसी से बच्चों की पढाई और फैमिली के बाकी खर्च पूरे होते थे। पूरा परिवार हौजरानी इलाके के एक रेंटेड कमरे में रहता था। आज भी रह रहा है। धीरज ने बताया कि फैमिली की फाइनेंशियल कंडीशन ठीक नहीं थी। बडे भाई को हायर सेकंडरी के बाद पढाई छोडकर जॉब करनी पडी थी। फिर भी पिता ने उन्हें या छोटे भाई सूरज को पढने से कभी रोका नहीं। खुद भले ही भूखे रहे, लेकिन उन पर किसी तरह का प्रेशर नहीं डाला। धीरज ने करीब ही स्थित गवर्नमेंट ब्वॉयज स्कूल से बोर्ड और फिर एमबी रोड स्थित गवर्नमेंट ब्वॉयज सीनियर सेकंडरी स्कूल से हायर सेकंडरी की पढाई की। बोर्ड में जहां 88 परसेंट मा‌र्क्स आए, वहीं हायर सेकंडरी में 90 परसेंट मा‌र्क्स हासिल किए।

मा‌र्क्स ने बढाया हौसला

धीरज बताते हैं कि मैथ्स और फिजिक्स उनके फेवरेट सब्जेक्ट्स हैं। इसीलिए नौवीं क्लास से ही उनके मन में इंजीनियरिंग करने की इच्छा थी, लेकिन फैमिली कंडीशन को देखते हुए, उन्होंने इस बात को किसी से शेयर नहीं किया। हालांकि जब बोर्ड के रिजल्ट आए, तो उन्होंने घर में बताया कि वे साइंस पढना और इंजीनियरिंग की तैयारी करना चाहते हैं। सबने धीरज का हौसला बढाया और इस तरह वे जुट गए इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी में।

स्टूडेंट वॉलंटियर्स ने की मदद

धीरज का कहना है कि ये सब कुछ इतना आसान नहीं था। स्कूल की पढाई से काम नहीं चलता था। ट्यूशन की जरूरत थी, लेकिन उसका खर्च उठाना पापा के लिए मुमकिन नहीं था। तभी दोस्तों से आरोहण नाम के एक एनजीओ के बारे में पता चला। वे अपने भाई सूरज के साथ वहां गए, तो वहां से काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। धीरज कहते हैं, आरोहण और उनके वॉलंटियर्स ने उनकी हर तरह से हेल्प की। रानी मैम ने बुक्स, कॉपीज अवेलेबल कराए, तो स्टूडेंट वॉलंटियर्स ने पढाई और एग्जाम की तैयारी में हेल्प की।

टॉर्च की रोशनी में तैयारी धीरज ने बताया कि सुबह छह बजे से पढाई शुरू होती। शाम को स्कूल भी जाना होता। फिर वॉलंटियर्स के साथ। बीच में थोडा टाइम खेलने के लिए भी निकालते, ताकि फ्रेश मूड से पढाई कर सकें। रात दो बजे तक वे पढते। धीरज कहते हैं, एक कमरे में उनकी पूरी फैमिली और दुनिया थी। उसी में रहना और पढना होता था। रात में जब पावर कट हो जाता, तो वे मोमबत्ती और टॉर्च की रोशनी में पढाई करते।

एडमिशन बना चैलेंज

एंट्रेंस पास करने के बाद भी मुश्किल यहां खत्म नहीं हुई थी। सवाल था कि आखिर कॉलेज में 40 हजार रुपये एडमिशन फीस कहां से भरेंगे। कहीं से कोई उम्मीद नहीं दिखी तो दोस्तों, परिचितों और कुछ एनजीओ से कॉन्टैक्ट किया। उनके एफर्ट और स्माइल फाउंडेशन के मिशन एडमिशन कैंपेन की मदद से धीरज और उसके भाई सूरज दोनों का इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो सका।

ड्रीम मिशन

धीरज कहते हैं कि आज वे जो कुछ भी कर सके हैं, उसके पीछे संस्था की कोशिशें, टीचर्स और फैमिली का सपोर्ट है। आगे चलकर वह ऐसी संस्था खोलना चाहते हैं, जहां अपने जैसे बच्चों और किशोरों के सपने पूरे कर सकें।

अंशु सिंह


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