सामाजिक उद्यमिता की राह...
पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टिï से फसलों को हुए नुकसान ने किसानों को जो दर्द दिया, उसे हर संवेदनशील इंसान ने महसूस किया होगा। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के असर को केंद्र-राज्य के मुआवजे से कम तो किया जा सकता है, पर किसानों को स्थायी
पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टिï से फसलों को हुए नुकसान ने किसानों को जो दर्द दिया, उसे हर संवेदनशील इंसान ने महसूस किया होगा। ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के असर को केंद्र-राज्य के मुआवजे से कम तो किया जा सकता है, पर किसानों को स्थायी संबल देने के लिए दूसरे कारगर उपाय खोजने होंगे। सामाजिक उद्यमिता की राह पर चलकर किसानों को भी जीविकोपार्जन से आगे बढ़ते हुए तरक्की की दिशा में ले जाया जा सकता है। गरीबों में भोजन और वस्त्र बांटने या विकलांगों को व्हीलचेयर दिए जाने को भले ही समाज सेवा का नाम दें, लेकिन अब हमें इससे आगे बढऩे की जरूरत है। किसी विकलांग, वंचित या गरीब को उसकी लाचारी का एहसास कराना उसे और पीड़ा देने जैसा ही है। दरअसल, ऐसे लोगों को सम्मान के साथ यह भी महसूस कराया जाना चाहिए कि किसी एक कमी की वजह से उनसे जीने या जिंदगी का आनंद उठाने का हक नहीं छीना जा सकता। सुखद बात यह है कि अब तमाम लोग, खासकर युवा चकाचौंध वाली नौकरियों का मोह छोड़कर स्वेच्छा से गरीबों, आदिवासियों, जनजातियों या गांवों के बीच जाकर काम करना पसंद कर रहे हैं और उनकी जिंदगी में उजाला लाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो टीम बनाकर सामूहिक प्रयास कर रहे हैं या फिर कुछ ऐसे उत्पाद बना रहे हैं, जो अक्षम या वंचित लोगों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं।
हमारे प्रधानमंत्री ने फ्रांस, जर्मनी और कनाडा की अपनी हाल की यात्रा के दौरान एक बार फिर पुरजोर तरीके से भारत के 80 करोड़ युवाओं और 160 करोड़ मजबूत हाथों को अपनी ताकत बताया। इनमें से तमाम युवा मल्टीनेशनल कंपनियों में शामिल होकर दुनियाभर में अपने टैलेंट का लोहा मनवा रहे हैं। लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जो बेहद संवेदनशील होने के कारण सीधे समाज से जुड़कर कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे उन्हें आत्मसंतुष्टिï मिले। अपने साथ-साथ वे दूसरों को भी समाज के लिए काम करने की प्रेरणा दे रहे हैं। दरअसल, देश और समाज के प्रति गहरी संवेदना रखने वाले इन युवाओं की महत्वाकांक्षा सिर्फ पैसा कमाना नहीं है। ये प्रतिभाशाली युवा भी चाहते तो देश और दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियों में मोटे पैकेज पर काम कर सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने लिए जीने की बजाय समाज और देश के लिए जीने का मिशन चुना। चूंकि उनके पास इनोवेटिव सोच है, इसलिए वे सामाजिक उद्यमिता के क्षेत्र में काम करते हुए अलग पहचान बना रहे हैं। उनकी पहल से पिछड़े इलाकों और वंचित समझे जाने वाले तबकों की तस्वीर भी बदल रही है और बन रहा है एक नया भारत, जिसमें हर कोई आत्मसम्मान के साथ आगे बढ़ सके...
संपादक
दिलीप अवस्थी