तरक्की के start-Ups
एक वक्त था जब नौकरी को करियर का बेस्ट ऑप्शन माना जाता था, लेकिन अब ट्रेंड बदल रहा है। आइआइटी, आइआइएम जैसे टॉप मोस्ट एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स के ब्राइट स्टूडेंट्स भी लाखों की सैलरी पैकेज ठुकरा कर स्टार्ट-अप के जरिए अलग पहचान बना रहे हैं
एक वक्त था जब नौकरी को करियर का बेस्ट ऑप्शन माना जाता था, लेकिन अब ट्रेंड बदल रहा है। आइआइटी, आइआइएम जैसे टॉप मोस्ट एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स के ब्राइट स्टूडेंट्स भी लाखों की सैलरी पैकेज ठुकरा कर स्टार्ट-अप के जरिए अलग पहचान बना रहे हैं। कई स्मार्ट प्रोफेशनल्स ने यूनीक स्टार्ट-अप शुरू किया और बेहद कम समय मेें उनका एनुअल टर्नओवर करोड़ों में पहुंच गया। देश-विदेश के मार्केट में उनके प्रोडक्ट और सर्विसेज की धूम मच रही है। टाटा-बिड़ला-अंबानी जैसे दिग्गजों ने भी इतने कम समय में कामयाबी की ऐसी ऊंचाइयां नहींछुई थीं। खुद के साथ-साथ देश को भी तरक्की की बुलंदियों की ओर ले जा रहे युवाओं पर केंद्रित एक्सक्लूसिव स्टोरी...
इंफोसिस में 8 साल तक सीनियर सॉफ्टवेयर मैनेजर के रूप में काम करने के बाद दिवाकर भदौरिया नेस्नैपडील ज्वाइन कर लिया। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्हें ज्यादा सैलरी मिली, बल्कि इसलिए भी कि वे कुछ इनोवेटिव और चैलेजिंग करना चाहते थे। आज ऐसे लोगों की लिस्ट तेजी से बढ़ती जा रही है, जो बड़ी कंपनियों की बजाय स्टार्ट-अप्स के साथ काम करना बेहतर समझ रहे हैं। यही नहीं, लाखों की नौकरी छोड़कर अपने मन का स्टार्ट-अप शुरू करने का ट्रेंड भी बढ़ता ही जा रहा है। आइआइटी से बीटेक करने के बाद इनोवेटिव स्टूडेंट्स लाखों-करोड़ों के जॉब ऑफर को ठुकराकर अपने स्टार्ट-अप्स शुरू कर रहे हैं।
स्टार्ट-अप्स का आया जमाना
सरकार ने भी स्टार्ट-अप्स की अहमियत को स्वीकार कर लिया है और वह मान रही है कि इंडियन इकोनॉमी को आगे ले जाने में स्टार्ट-अप्स अहम भूमिका निभा सकते हैं। स्टार्ट-अप्स को एनकरेज करने के लिए सरकारी कोशिशें भी तेज हो गई हैं। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले दिनों कहा कि स्टार्ट-अप्स के लिए जल्द ही इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट फंड स्थापित किया जाएगा। इंफोसिस के वाइस चेयरमैन के. गोपालकृष्णन के मुताबिक यह समय स्टार्ट-अप के लिए बेस्ट है और इंडिया इसके लिए दुनिया के बेस्ट प्लेसेज में से है।
स्टार्ट-अप्स में हो रहा है तगड़ा निवेश
टाटा ग्रुप की कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक रिटेल चेन क्रोमा ऑनलाइन स्पेस में दाखिल होने से पहले कंज्यूमर बिहैवियर पर इनपुट खोज रही थी। उस वक्त उसने डेटा एनालिटिक्स स्टार्ट-अप इनफाइनाइट एनालिटिक्स का रिकमंडेशन करके उसे काम पर लगाया। उसने एक महीने में बेहतर रिजल्ट दे दिए। धीरे-धीरे यह ट्रेंड बनने लगा। हाल ही मेें बीएसएनएल की ई-मेल सर्विस डेटा इंफोसिस ने गूगल को पछाड़ कर हासिल कर ली। दरअसल, मार्केट में एक नया शिफ्ट दिखाई दे रहा है। बिजनेस ट्रेडिशनल कंपनीज की बजाय स्टार्ट-अप्स की ओर मूव करता दिख रहा है और बड़ी कंपनीज की बजाय इनसे काम कराना प्रेफर किया जा रहा है। इंफोसिस, विप्रो जैसी कंपनीज के टॉप प्रोफेशनल्स भी स्टार्ट-अप्स की ओर मूव कर रहे हैं। ऐसे मेें यह कहना गलत नहीं होगा कि इंडिया को तरक्की की राह पर ले जाने का जिम्मा अब स्टार्ट-अप्स संभालने लगे हैं।
स्कूटर देगी लाइफ को रफ्तार
आइआइटी मद्रास के दो ग्रेजुएट्स के इनोवेशन स्टार्ट-अप में फ्लिपकार्ट के दोनों फाउंडर्स ने एक मिलियन डॉलर का इनवेस्ट किया है।
वरुण मेहता
Founder, Ather Energy
बीटेक ( इंजीनियरिंग डिजाइन), आइआइटी मद्रास
तरुण मेहता और स्वप्निल जैन को मैन्युफैक्चरिंग का पैशन था। इसलिए छह महीने में ही जॉब से इस्तीफा दे दिया और इलेक्ट्रिक व्हीकल स्टार्ट-अप के सपने को साकार करने में जुट गए। मार्च 2013 में चेन्नई में एथर एनर्जी नाम से स्टार्टअप शुरू किया, जिसका मकसद पेट्रोल वर्जन को टक्कर देने वाला ई-स्कूटर लॉन्च करना है। उम्मीद है कि साल 2016 तक यह स्कूटर मार्केट में आ जाएगा।
रिसर्च के बाद फैसला
2012 में मैंने पहले स्वप्निल के साथ मिलकर इलेक्ट्रिक व्हीकल मार्केट को एक्सप्लोर किया। हमने ई-व्हीकल यूज करने वाले कस्टमर्स, डीलर्स से मुलाकात की। उनके डिजाइन हेड्स से मिले। करीब छह महीने की रिसर्च के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इंडिया में बैटरी संचालित स्कूटर्स पर काम करने का काफी स्कोप है।
बैटरी के साथ स्पीड भी
आज हमने जो स्कूटर डिजाइन किया है, वह मौजूदा स्कूटर्स से करीब 20 प्रतिशत हल्का है। इसका मोटर 100 सीसी के पेट्रोल स्कूटर को कड़ी प्रतिस्पर्धा दे सकता है। इसकी रफ्तार है 75 किलोमीटर प्रति घंटा। डैशबोर्ड डिजिटल है। सबसे बड़ी खासियत है इसकी बैटरी लाइफ, जो 50 हजार किलोमीटर तक है। यह बाकी इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के मुकाबले एक से डेढ़ घंटे में ही 80 प्रतिशत तक चार्ज हो सकता है। 6 से 8 महीने में हम इसका ट्रायल टेस्ट करेंगे। पहले फेज में इसका बेस मॉडल लॉन्च होगा। हम इसके प्रीमियम वर्जन पर भी काम कर रहे हैं, जो एंड्रॉयड की मदद से संचालित हो सकेगा। हमने टीम बिल्डिंग, टेक्नोलॉजी से लेकर फंडिंग तक, हर प्रकार की चुनौती का सामना किया। कंपनी में फ्लिपकार्ट के सचिन और बिन्नी बंसल द्वारा किए गए १० लाख डॉलर के इनवेस्टमेंट से हमारा मनोबल बढ़ा है।
क्लिक-ऑर्डर ऑनलाइन दवाखुद का स्टार्ट-अप शुरू कर एंटरप्रेन्योर बनने की ऐसी चाहत थी कि यूएस और इंडिया की बड़ी-बडी एमएनसी की नौकरी रास नहींआई।
चैतन्य मेहता
Founder, Dawa.in
बीटेक : इलेक्ट्रॉनिक्स, मुंबई यूनिवर्सिटी
एमबीए : वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, यूएसए
जॉब : ब्लू हेरॉन कैपिटल, नील्सन, टाटा स्ट्रेटजी, महिंद्रा, गेट ग्रुप
इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में मुंबई से बीटेक करने के बाद जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से टेक्नोलॉजी एंटरपे्रन्योरशिप ऐंड वेंचर फाइनेंस में एमबीए किया। भारत और यूएस की कई मल्टीनेशनल कंपनियों के मैनेजमेंट, कंसल्टिंग, मार्केट रिसर्च, कॉरपोरेट फाइनेंस और प्राइवेट इक्विटी सेक्शन में काम करने के बाद भी संतुष्टि नहीं मिली। हमेशा खुद का काम करने की चाहत बनी रही। उसके लिए मन में विचार और प्लानिंग होती रही। इसी का रिजल्ट 'दवा डॉट इन' के रूप में सामने आया।
बनना था एंटरपे्रन्योर
एंटरपे्रन्योर बनने की ऐसी चाहत थी कि लगन और जुनून के साथ खुद के स्टार्ट-अप्स ('दवा डॉट इनÓ) से पहले वाशिंगटन डीसी बेस्ड स्टार्ट-अप 'इम्पीवोट डॉट कॉम' और 'बुटिक प्राइवेट इक्विटी फर्म
में अहम योगदान दिया, लेकिन अपने स्टार्ट-अप की चाहत ने 'दवा डॉट इन'बनाने के लिए मजबूर किया।
सस्ती कीमतों पर दवाएं
डिस्काउंट रेट पर ऑनलाइन मेडिसिन सेलिंग फैसलिटी उपलब्ध कराना गंभीर चुनौती थी, लेकिन स्टार्ट-अप की चाहत व लगन के आगे मुश्किलों ने घुटने टेक दिए। 'दवा डॉट इन'के माध्यम से आज एक लाख से ज्यादा दवाएं कम कीमत पर लोगों को मुहैया कराई जा रही हैं। सस्ती जेनेरिक दवाइयों के बारे में सलाह देने के साथ-साथ एसएमएस अलर्ट के माध्यम से रेगुलर कस्टमर की राह आसान की जा रही है। फिलहाल मुंबई और उसके आस-पास के इलाके में यह सुविधा शुरू की गई है। जल्द ही इसका विस्तार किया जाएगा।
टॉक टु रोबो
दुनिया की करीब डेढ़ फीसदी आबादी पार्किन्सन, एएलएस जैसी बीमारियों से ग्रस्त है। ये लोग आम लोगों जैसी बातचीत नहीं कर पाते हैं और कम्युनिकेशन के लिए अपनी सांसों के इशारे को समझने वाली डिवाइसों पर निर्भर करते हैं। ये मशीनें काफी बड़ी और महंगी होती हैं। मैंने इनके सस्ते विकल्प के रूप में पॉकेट डिवाइस 'टॉक'नाया। टॉक पॉकेट में फिट हो जाती है। इसकी कीमत पांच से सात हजार रुपये के बीच ही है। यह मरीज के कान पर फिट होती है और इसका सेंसर ठीक नाक के नीचे पहुंचता है। मरीज 'मोर्स कोड' के आधार पर अपनी सांसों की तीव्रता और पैटर्न के जरिए इनपुट रिकॉर्ड करते हैं। टॉक इन इशारों को ऑडियो मैसेज में बदल देता है। टॉक जैसे सैकड़ों डिवाइसेज की जरूरत हमारी सोसायटी को है और हम बना भी सकते हैं। अपना स्टार्ट-अप ऑरिडो मैंने इसीलिए शुरू किया है। 12वीं के बाद मैं एक साल सिर्फ अपने इस प्रोजेक्ट पर ही काम करूंगा।
जॉब दिलाने को ठुकराया ऑफर आइआइटी दिल्ली से बीटेक करने के बाद नागपुर के अक्षय ने स्टूडेंट्स को उनकी स्किल के अनुसार जॉब दिलाने के लिए 5.50 लाख की जॉब छोड़ दी...
अक्षय भगत
Co-Founder, Greymeter
बीटेक, आइआइटी, दिल्ली
करीब 25 पर्सेंट स्टूडेंट्स एंट्री लेवल पर ही जॉब छोड़ देते हैं। उन्हें
फील होता है कि वे गलत जगह या गलत प्रोफाइल पर जॉब कर रहे हैं। ऐसा न हो, इसके लिए ऐसे प्लेटफॉर्म की जरूरत महसूस हुई, जो स्टूडेंट की स्किल पहचाने और उसी के अनुसार जॉब दिला सके। यही करने के लिए मैंने 5.50 लाख के पैकेज की जॉब छोड़कर अपना बिजनेस शुरू किया।
...और बदल गई सोच
आइआइटी दिल्ली में हमारा बैच टेक्सटाइल का था, लेकिन जॉब प्रोफाइल कोई और पसंद थी। कहीं न कहीं मन में डर भी था कि कोई कंपनी हमारा एकेडमिक बैकग्राउंड देखकर ही जॉब देगी। इसी दौरान कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए आए एक बैंक ने किसी स्टूडेंट का प्रोफाइल देखे बिना ही कॉम्पिटिशन कराकर कैंडिडेट्स का सलेक्शन किया। यह देखकर ही हमारी सोच बदल गई और हमने ग्रेमीटर शुरू करने का प्लान बनाया।
वी आर स्किल डिमांस्ट्रेटर्स
आइआइटी दिल्ली के मेरे तीन दोस्त अमन गर्ग, धीरज आनंद, निंगनिंग निउमई और बिट्स पिलानी के दोस्त शाह अहमद के लिए यह एक यूनीक आइडिया था। कॉलेज खत्म होने के बाद सभी इसके लिए प्लानिंग करने लगे। कंपनीज से बात की गई और उन्हें हमारा आइडिया पसंद आया। फिर हमने दिल्ली के ग्रीन पार्क से ग्रेमीटर शुरू किया। यह कंपनी स्किल डिमांस्ट्रेटर के रूप में काम करती है।
550 की कराई हायरिंग
किसी व्यक्ति में टीम को लीड करने की स्किल होती है, तो किसी में डिजाइनिंग की। हम इसी स्किल की पहचान कर उसे डेवलप कराते हैं। कंपनीज को जिस तरह की स्किल के एम्प्लॉयी की जरूरत होती है, हम वैसा ही प्रोवाइड कराते हैं। करीब 550 स्टूडेंट्स की हायरिंग करा चुके हैं।
18 लाख पर भारी पड़ा सपना
दिल्ली के अर्पित देश में फ्यूल की चोरी रोकना चाहते थे। यह सपना पूरा करने के लिए 15 लाख रुपये प्रति वर्ष की जॉब छोड़ दी...
अर्पित गुप्ता
Co-Founder, fuel Ark
बीटेक, आइआइटी, दिल्ली
इंडिया का ट्रांसपोर्ट मार्केट बड़ा है। यहां फ्यूल की खपत ज्यादा है, लेकिन जरूरत से कम आपूर्ति और चोरी ने यह समस्या और बढ़ा दी है। आइआइटी दिल्ली में स्टडी के दौरान ही मैंने फ्यूल की चोरी रोकने के लिए टेक्नोलॉजी डेवलप करने का मन बना लिया था। यह सपना पूरा करने के लिए जापान की करीब 1८ लाख रुपये प्रति वर्ष की जॉब छोड़ दी।
ऐसे आया आइडिया
पेट्रोल पंप पर फ्यूल ले रहा था। अचानक दिमाग में आया किमुझे कैसे पता चलेगा किसही मात्रा में फ्यूल दिया गया है या नहीं। इसका प्रॉसेस लंबा था। वहीं एक ड्राइवर ट्रक में फ्यूल डलवा रहा था। मैंने सोचा मुझे तो पता चल भी जाएगा, लेकिन इस ट्रक के मालिक को कैसे पता चलेगा कि सही मात्रा में फ्यूल डाला गया या नहीं। तभी लगा कि इसी थीम पर काम करना चाहिए। इसके बाद आइआइटी दिल्ली से ही 2014 में पास आउट अवनीश कुमार के साथ मिलकर फ्यूल आर्क शुरू किया।
मैसेज से चलेगा पता
जैसे ही आपकी गाड़ी में पेट्रोल डाला जाएगा, आपके नंबर पर मैसेज आ जाएगा कि कितने का फ्यूल डाला गया है। यह टेक्नोलॉजी इसी तर्ज पर काम करती है। फ्यूल आर्क का पेटेंट फाइल कर दिया गया है। कई कंपनियों में इसका डेमो दिया गया है। कई कंपनियों से अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। ग्रोथ अच्छी है।
इट इज जस्ट ए बिगनिंग इंडिया में ही आपके पास बहुत कुछ कर दिखाने के कई ऑप्शंस हैं। विदेश में जॉब कर लेना ही सब कुछ नहीं है। कुछ ऐसा करें, जिससे देश को फायदा हो। हमने भी यही सोचा। फ्यूल आर्क इज जस्ट अ बिगनिंग। अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है।
जोटले की गारंटी
सुमित कुमार
Founder, zotlay.com
बीटेक, आइआइटी, दिल्ली
जॉब : फ्लिपकॉर्ट और जबांग
आइआइटी दिल्ली में बीटेक के दौरान ही अक्सर यह सोचता था कि कुछ अलग करना है। मैं केवल 10 से 6 की जॉब नहींकरना चाहता था। मुझे सेल्फ सैटिस्फैक्शन की चाह थी। कोई सटीक रास्ता न दिखने की वजह से मैंने फ्लिपकॉर्ट में जॉब ज्वाइन कर ली। कई और कंपनीज से भी ऑफर मिले थे, लेकिन ऑनलाइन शॉपिंग में मुझे खास दिलचस्पी थी और नई कंपनी के साथ काम करना चैलेजिंग था। फ्लिपकॉर्ट के बाद जबांग के साथ काम करना काफी अच्छा एक्सपीरियंस रहा।
बहुत कुछ है नया करने को
काम के दौरान मुझे ऐसे कई केसेज मिले, जिनमें लोगों ने ओएलएक्स से सेकंड हैंड चीजें खरीदींऔर वह खराब निकल गया। इसके बावजूद वे लोग न कोई कंप्लेन कर सकते थे और न ही सामान वापस हो सकता था। फिर मुझे लगा कि ओएलएक्स या क्विकर जैसी जितनी भी ऑनलाइन वेबसाइट्स हैं, वे विज्ञापन के बल पर लोगों को सेंकड हैंड चीजें खरीदने या बेचने के लिए प्लेटफॉर्म तो दे रही हैं, लेकिन प्रोडक्ट्स की क्वालिटी पर उनका कोई कंट्रोल नहीं है। जोटले के जरिए मैंने इसे ही दुरुस्त करने की कोशिश की है। इसमें हम प्रोडक्ट की क्वालिटी की अच्छी तरह जांच करने के बाद उसकी वैल्यूएशन करते हैं। उसके बाद ही उसे पब्लिकली पब्लिश किया जाता है। इसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला है।
अवी जैन
Founder, ZupiterG
केमिकल इंजीनियरिंग, दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग
क्वालिटी क्राफ्ट्स
2012 में दिल्ली कॉलेज और इंजीनियरिंग से केमिकल इंजीनियरिंग करने के बाद अवी जैन ने फ्यूचर फस्र्ट कंपनी के साथ डेरिवेटिव ट्रेडर के रूप में काम किया। अच्छी जॉब थी। लेकिन मन के अंदर कुछ कश्मकश चल रही थी। इसके बाद अक्टूबर 2013 में उन्होंने नौकरी छोड़ी और अगस्त 2014 में ज्यूपिटर-जी नाम से ऑनलाइन स्टार्ट-अप लॉन्च कर दिया।
मार्केट सर्वे से खुलासा
मैंने हैंडीक्राफ्ट्स मार्केट का प्रिलिमनरी ऑनलाइन सर्वे करने पर पाया कि इंडिया में होम डेकोर मार्केट में ग्रोथ की काफी गुंजाइश है। मार्केट में कम बजट में क्वालिटी हैंडीक्राफ्ट्स का कोई विकल्प नहीं है। बाजार में या तो सस्ते चाइनीज गुड्स हैं या फिर महंगे एंटीक आइटम्स। तब हमने भारतीय कारीगरों से सीधे संपर्क किया।
कारीगरों को प्लेटफॉर्म
आज हमसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान औऱ गुजरात के कारीगर जुड़े हैं। इन्हें हम डिजाइन के सैंपल से लेकर कच्चा माल और फाइनेंशियल सपोर्ट देते हैं। जब हैंडीक्राफ्ट तैयार हो जाता है, तो उसे वेबसाइट पर डिस्प्ले किया जाता है। एक पार्टनरशिप मॉडल के तहत पूरा कारोबार चलता है। इसमें बिचौलियों की कहीं कोई भूमिका नहीं होती है। हम सिर्फ डिजाइनिंग औऱ सर्विस-फी चार्ज करते हैं।
बोर्न टु ब्लॉसम आवर चिल्ड्रेन
बच्चों की स्टडी मजेदार बनाने के लिए धनबाद के रवि सिन्हा ने सिर्फ दो माह पुरानी जॉब छोड़कर दोस्तों के साथ शुरू किया बोर्न टु ब्लॉसम...
रवि सिन्हा
Co-Founder, Born 2 Blossom
बीटेक, आइआइटी, दिल्ली
क्लास 6 के बच्चों को प्लेन की जानकारी दे रहे हैं। बच्चों में एक सवाल रहेगा कि हाउ डज इट टेक ऑफ। अब उसके उडऩे का साइंटिफिक रूल थ्योरेटिकली समझाएंगे तो शायद उनके लिए यह आसान न हो। अब इसे टॉय प्लेन से समझाएं तो वे इसे समझ लेंगे क्योंकि टॉय देखने के बाद उनकी उत्सुकता बढ़ गई। हम इसी थीम पर काम कर रहे हैं। इसके लिए प्रोडक्ट बना रहे हैं, जिससे पढ़ाई आसान बनाई जा सके।
आइडिया पर इंप्लीमेंटेशन
एक दिन आइआइटी, दिल्ली में इंडिया के टॉय इनवेंटर कहे जाने वाले अरविंद गुप्ता आए। उनकी बातें सुनीं कि कैसे खिलौनों की मदद से बच्चों के लिए पढ़ाई आसान बनाई जा सकती है। उनके आइडियाज प्रभावी थे। मैं कॉलेज के एनएसएस क्लब का जनरल सेक्रेटरी था। क्लब के मेंबर्स के साथ स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाने गया। वहां फील हुआ कि थ्योरी से बच्चों को समझाना मुश्किल है। अरविंद गुप्ता का आइडिया इंप्लीमेंट किया। इस बार बच्चों ने न सिर्फ इसे समझा, बल्कि क्वैश्चन भी किए।
...ताकि बनी रहे उत्सुकता
मैं और मेरे दोस्त चाहते थे कि बच्चों की स्टडी ऐसी ही होनी चाहिए, जिससे उनमें जानने की उत्सुकता बनी रहे। इसी दौरान प्लेसमेंट में मेरी 6 लाख सालाना के पैकेज पर जॉब लग गई, लेकिन सिर्फ दो महीने जॉब किया। जॉब छोड़कर मैं दिल्ली वापस चला आया। फिर 6 से 8 तक के बच्चों को टारगेट कर दोस्तों के साथ मिलकर बॉर्न टु ब्लॉसम शुरू किया।
स्कूल भी कर रहे सहयोग
हमें अपने प्रोजेक्ट के बारे में टीचर्स को वर्कशॉप करके समझाना पड़ता है, ताकि वे समझ सकें कि हम किस थीम पर काम करना चाहते हैं। आज कई ऐसे स्कूल हैं, जो इस प्रोजेक्ट को आगे ले जाने में मदद कर रहे हैं।
एक कॉल पर कारीगर हाजिर
अंकित रमेश त्यागी
Founder, Mykarigar.in
बीटेक इन इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स, एनआइटी, जमशेदपुर
जॉब : डिप्टी मैनेजर, एसीसी लिमिटेड
२०१३ में एनआइटी से इंजीनियरिंग करने के बाद अच्छे पैकेज पर एसीसी कंपनी में नौकरी मिल गई थी। बतौर डिप्टी मैनेजर बेहतर काम कर रहा था, लेकिन अक्सर 12-15 घंटे तक लगातार काम करने की वजह से काम में मजा नहीं आ रहा था। ऐसे में ख्याल आया कि इतना अधिक काम किसी और के लिए करने से बेहतर है कि खुद का काम शुरू किया जाए। अगर अपने काम में इतना समय दूंगा, तो वह मेरे भविष्य के लिए कहीं ज्यादा बेहतर साबित हो सकता है।
समस्या ने किया प्रेरित
जॉब के दौरान मुंबई और मध्य प्रदेश के कई शहरों में रहना हुआ। हर दो-तीन महीने में किसी नए शहर में ट्रांसफर हो जाता था। जब कभी जरूरत के वक्त इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर या कारपेंटर की जरूरत पड़ती, तो काफी परेशानी होती थी। इंटरनेट पर सर्च करने पर इस तरह की सुविधा मिल नहीं पाती थी और अनजान शहर होने की वजह से पता करना मुश्किल होता था। ऐसे में मन में ख्याल आया कि जिस तरह लोगों को पिज्जा, बर्गर आदि एक कॉल पर उपलब्ध हो जाता है, वैसे ही क्यों न इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, कारपेंटर, पेंटर, क्लीनर, ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड आदि भी अवेलेबल हो जाएं। यही सोच कर जॉब छोड़ दी और अपनी डिग्री का फायदा उठाते हुए 'माईकारीगर डॉट इन' बना लिया।
कारीगर की गाड़ी
जब 'माईकारीगर डॉट इन' शुरू किया, तो काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, कारपेंटर और क्लाइंट मिलने में समस्या हो रही थी, लेकिन अब 'माईकारीगर डॉट इन' की गाड़ी पूरे दिल्ली-एनसीआर में सरपट दौड़ रही है। आज अपने डिसीजन पर खुश हूं।
डिजाइनिंग को ग्लोबल पहचान
अबिन चौधुरी
जाधवपुर यूनिवर्सिटी के एक ग्रेजुएट द्वारा शुरू की गई एक छोटी फर्म ने कुछ ही सालों में विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना ली है....
Principal, Abin Design Studio
बीआर्क, जाधवपुर यूनिवर्सिटी
कोलकाता की जाधवपुर यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन किया और मिलान के दोमुस एकेडमी से इंडस्ट्रियल डिजाइन में स्पेशलाइजेशन किया। अपना कुछ करने और अलग करने की धुन के साथ मैंने अक्टूबर 2005 में आर्किटेक्चर फर्म अबिन डिजाइन
स्टूडियो की शुरुआत की। यह सिर्फ तीन लोगों के साथ शुरू की गई एक बेहद छोटी फर्म थी, लेकिन आज यह अपने फील्ड का एक प्रमुख ऑर्गनाइजेशन बन चुका है। इसके जरिए हम समूचा डिजाइन और मैनेजमेंट सॉल्यूशन मुहैया करा रहे हैं। आज एडीएस उन कुछ युवा उत्साही डिजाइन स्टूडियो में शामिल हो चुका है, जो लो कार्बन फुटप्रिंट द्वारा 'रिस्पांसिबल आर्किटेक्चर' पर जोर देते हैं।
निरंतर बढ़ता सम्मान
पिछले दस साल से भी कम समय में हमने कई बेहतरीन प्रोजेक्ट पूरे किए हैं और इस काम को सम्मान देते हुए हमें 37 इंटरनेशनल एवं नेशनल अवॉर्ड मिल चुके हैं। वर्ष 2014 में मेरा काम न्यूयॉर्क के म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट में पब्लिकेशन और
ट्रैवलिंग एग्जिबिशन के लिए चुना गया। एक महत्वपूर्ण डिजाइन पब्लिकेशन ने हाल में एडीएस को दुनिया की 50 यंग डिजाइन फर्मों में चुना है। हर प्रोजेक्ट के साथ मैं खुद और मैच्योर होता जाता हूं। लेकिन मुझे लगता है कि अभी मेरी टीम को काफी आगे जाना है। हर किसी से सीखने की ललक की वजह से ही हमारे भीतर की आग बरकरार है।
रेप्यूटेड प्रोजेक्ट्स
आज एडीएस आर्किटेक्चर, इंटीरियर डिजाइन, एग्जिबिशन स्पेस डिजाइन, इंडस्ट्रियल डिजाइन और ग्रैफिक डिजाइन जैसे विविध फील्ड में काम कर रहा है। देश की कई महत्वपूर्ण इमारतों के पीछे एडीएस का ही क्रिएटिव माइंड है।
फूड ऐट योर डोर स्टेप
आइआइटी बॉम्बे के ग्रेजुएट्स ने यूएस के बड़े ऑफर को ठुकराकर अपना स्टार्ट-अप शुरू किया और आज सफलता की सीढिय़ां चढ़ रहे हैं।
हर्षवर्धन मंडाड
Founder, TinyOwl
बीटेक (कंप्यूटर साइंस ऐंड इंजीनियरिंग) आइआइटी, बॉम्बे
बीटेक करने के बाद हर्षवर्धन मंडाड ने फ्यूचर बाजार ग्रुप को ज्वाइन किया। लेकिन कुछ ही महीने में नौकरी छोड़ी और मार्च 2014 में आइआइटी के चार साथियों की मदद से टाइनीआउल नामक स्टार्ट-अप लॉन्च कर दिया। आज ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग स्पेस में यह मुंबई का मार्केट लीडर माना जाता है।
फेल्योर के बाद सक्सेस
मैंने ऑनलाइन टैक्सी, रिटेलिंग जैसे कई आइडियाज पर काम किया, लेकिन बात नहीं बनी। फिर हमने फूड से लोगों को कनेक्ट करने के बारे में सोचा। होम डिलीवरी मार्केट का सर्वे किया और नौ महीने की मेहनत के अलावा पांच लाख रुपये की पर्सनल सेविंग्स से स्टार्टअप लॉन्च कर दिया।
एंड्रॉयड से डिलीवरी
टाइनीआउल दरअसल एक ऐप है, जिसे एंड्रॉयड और आइओएस प्लेटफॉर्म पर डाउनलोड किया जा सकता है। इससे मुंबई के 2500 रेस्टोरेंट्स जुड़े हैं, यानी कस्टमर्स एक ऐप की मदद से किसी भी रेस्टोरेंट से अपना फेवरेट फूड ऑर्डर कर सकते हैं। उनके पास कार्ड के अलावा कैश-ऑन-डिलीवरी का भी ऑप्शन है। यह स्टार्ट-अप कमीशन बेसिस पर काम करता है। रेस्टोरेंट ऑनर्स से 10 से 15 प्रतिशत का कमीशन चार्ज किया जाता है।
बड़े ऑफर्स ठुकराए
मेरी कोर टीम के कई सदस्य यूएस के बड़े पे-पैकेज ठुकराकर नए स्टार्ट-अप से जुड़े हैं। टीम में हाउसिंग डॉट कॉम के को-फाउंडर सौरभ गोयल भी शामिल हैं। पहले फंडिंग राउंड में हमने 65 लाख रुपये का जुगाड़ किया, जबकि दूसरे में सिकोआ और नेक्सस वेंचर कैपिटलिस्ट्स ने 300 मिलियन डॉलर इनवेस्ट किया है।
हितार्थ नरसी पटेल
Founder, samaysancharak
एमटेक केजे सोमैया कॉलेज, मुंबई
स्टाइपेंड : ऑल इंडिया इंजीनियर्स एसोसिएशन, दिल्ली
समय का संचारक
मुंबई के केजे सोमैया कॉलेज से बीटेक कर रहा था। उन्हीं दिनों अखबार में एक खबर पढ़ी। एक ब्लाइंड अपना मोबाइल खोने की एफआईआर लिखाने के लिए गया था, लेकिन पुलिस वाले ने मना कर दिया था। तभी मुझे यह आइडिया आया कि क्यों न ब्लाइंड्स के लिए मोबाइल बनाया जाए। मैं नेशनल ब्लाइंड एसोसिएशन के मेंबर्स से भी मिला। मैंने काफी रिसर्च की। अपने टीचर्स को भी बताया। तब जाकर ब्रेल लिपि वाली रिस्ट वॉच और उसी फंक्शन पर बेस्ड एक मोबाइल भी डेवलप किया।
मोबाइल फॉर ब्लाइंड्स
आमतौर पर ब्लाइंड्स भी वही मोबाइल यूज करते हैं, जो नॉर्मल लोग यूज करते हैं। लेकिन उनके साथ कई सारी प्रॉब्लम्स आती हैं। मसलन, अगर उन्होंने मोबाइल कहीं और रख दिया और भूल गए, तो उसे रिलोकेट नहींकर पाते। अगर किसी को कॉल करना है, तो नंबर मिलाने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। संचारक मोबाइल में इन सारी प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन है। इसमेें बजर, क्वर्टी की-बोर्ड, आइस कॉलिंग, अलार्म फैसिलिटी, जीपीएस लोकेशन ट्रैकिंग, बैटरी लेवल इंडिकेशन, नेटवर्क लेवल इंडिकेशन जैसी फैसिलिटीज ब्रेल लैंग्वेज सपोर्ट के साथ लगाई गई हैं। एसएमएस, कॉल और दूसरी नोटिफिकेशंस रिस्ट वॉच में डिस्प्ले होती रहती हैं।
स्टार्ट योर स्टार्ट-अप
अगर आप भी स्टार्ट-अप शुरू करना चाहते हैं, लेकिन कंफ्यूज्ड हैं कि क्या करें और कैसे करें तो पहले रिसर्च करें और फिर आगे बढ़ें...
रिक लोमस टेक ऐंड ऐंटरप्रेन्योर एजुकेटर
खुद से करें सवाल
-क्या मेरी सर्विस या प्रोडक्ट की वाकई में किसी को जरूरत है?
-क्या इस जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए गए बिजनेस से आपको फायदा होगा?
-क्या मेरे आइडिया पर पहले से कंपनियां काम कर रही हैं? अगर हां, तो मैं उनसे कैसे बेहतर या अलग हूं?
-क्या आइडिए को अमल में लाना प्रैक्टिकल तरीके से संभव है?
-यह कितना सेफ और लीगल है?
-मेरा आइडिया अच्छा तो है, लेकिन क्या यह लोगों तक पहुंच पाएगा?
-इसे बनाने और इसकी मार्केटिंग में आने वाले खर्च को जुटाना क्या मुमकिन है?
-बिजनेस से मुनाफा मिलने की दर इतनी होगी कि मैं सफलता से अपनी जमीन पर पैर जमाए रख सकूं?
-क्या मैं अपने आइडिया को कॉपीराइट या पेटेंट के जरिए सेफ करने की स्थिति में हूं?
-क्या इसके लिए कच्चा माल और मैन पावर उपलब्ध है?
अगर आपका आइडिया कसौटियों पर खरा नहीं उतरता, तो इसे और रिफाइन करने का वक्त निकालना पड़ेगा। अगर आइडिया फिट है, तो अगला स्टेप एक्सपीरियंस सर्वे का आता है।
एक्सपीरियंस सर्वे
अपने आइडिया से जुड़े प्रोफेशनल्स से मिलना चाहिए और उनकी इनसाइट का फायदा उठाना चाहिए। इंजीनियर, सप्लायर, एजेंट, सरकारी अधिकारी, वकील जैसे प्रोफेशनल्स से जरूर राय लेनी चाहिए।
आइडिया यूनीक तो है न?
आपका आइडिया चाहे जितना भी ओरिजनल क्यों न हो, इस बात की गुंजाइश बनी रहती है कि कोई और भी इसे कर रहा हो। इसलिए जितना हो सके रिसर्च कर लें। बेहतर होगा कि उनकी प्राइसिंग, मार्केटिंग, डिस्ट्रिब्यूशन और प्रॉफिट के बारे में अच्छी तरह से जान लें।
कंपनी रजिस्ट्रेशन
भारत में कंपनियां दो स्वरूपों, सोल प्रोपराइटरशिप और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह रजिस्टर कराई जा सकती हैं।
-ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए www.mca.gov.in/MCAwv/RegisterNewComp.html पर जा सकते हैं।
-सोल प्रोपराइटरशिप बिजनेस करने के लिए कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराना पड़ता।
फंड जुटाने के तरीके
1. अपना पैसा लगा कर
2. बैंक से लोन लेकर
3. किसी को फाइनेंसर बना कर या प्राइवेट इक्विटी (हिस्सेदारी) देकर
4. वेंचर कैपिटलिस्ट के सहारे
कैसे मिलेगा बैंक से लोन
-बैंक लोन लेना है, तो कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है।
-इसके बाद कंपनी को मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो, स्मॉल ऐंड मीडियम एंटरप्राइजेज से अप्रूवल लेना होगा। यह तभी मिलेगा, जब इस मिनिस्ट्री की गाइडलाइन पर आप खरे उतरेंगे। इसकी पूरी जानकारी आप स्रष्द्वह्यद्वद्ग.द्दश1.द्बठ्ठ पर जाकर ले सकते हैं।
प्लान होना चाहिए दमदार
बिजनेस प्लान के मुख्य फीचर्स होते हैं:
-बिजनेस डिटेल्स
-मार्केट एनालिसिस
-प्रोडक्ट या सर्विस
-मैन्युफैक्चरिंग प्रॉसेस
-मार्केटिंग स्ट्रेटेजी
-मैनेजमेंट प्लान
यहां से मिलेगी मदद
-इंडियन एंजल नेटवर्क
www.indianangelnetwork.com
-टेक्नोलॉजी बिजनेस इन्क्यूबेटर,
आइआइटी दिल्ली
www.fitt-iitd.org/tbiu
-टीलैब्स,दिल्ली
www.tlabs.in
-सोसायटी फॉर इनोवेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप, आईआईटी मुंबई
www.sineiitb.org
-अनलिमिटेड इंडिया,मुंबई
www.unltdindia.org
-सिडबी इनोवेशन ऐंड इनक्यूबेशन सेंटर, आईआईटी कानपुर
www.iitk.ac.in/siic/d/tags/sidb
देर से शुरुआत या शुरुआत में ही फेल होना अच्छा है, लेकिन आपने शुरुआत ही गलत कर ली और आगे जाकर फेल हुए, तो बहुत बुरा होगा।
हरि एस. भरतिया एमडी, जुबिलेंट फाउडेंशन
कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट :
दिनेश अग्रहरि,
अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव, मोहित शर्मा, प्रसन्न प्रांजल