ओडीएफ का सच, दो महीने में शौचालय ध्वस्त
बोलबा : प्रखंड के सभी 26 गांवों को ओडीएफ का दर्जा मिला है, परंतु अधिकांश गांवों में शौचालय निर्माण की स्थिति और खुले में शौच के लिए जा रहे लोगों की भीड़ देखकर लगता है कि ये गांव सिर्फ कागजों में ही ओडीएफ हैं।
बोलबा : प्रखंड के सभी 26 गांवों को ओडीएफ का दर्जा मिला है, परंतु अधिकांश गांवों में शौचालय निर्माण की स्थिति और खुले में शौच के लिए जा रहे लोगों की भीड़ देखकर लगता है कि ये गांव सिर्फ कागजों में ही ओडीएफ हैं। इन गांवों को ओडीएफ कर प्रशासन भले ही अपना बेहतर प्रदर्शन का दावा करे, परंतु हकीकत यह है कि ओडीएफ के नाम पर ज्यादातर गांवों में सिर्फ स्वच्छ भारत मिशन के पैसों की बंदरबांट ही हुई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत आर्थिक रुप से पिछड़े परिवार को एक निश्चित मॉडल का शौचालय बनाने पर उनको सरकार की ओर से 12000 रुपये की सहायता राशि दी जाती है। परंतु बोलबा प्रखंड में अधिकांश ग्रामीणों ने जागरूकता या अपने पास संसाधन नहीं होने के चलते स्वयं से शौचालय बनाने में असमर्थता दिखा दी। फिर बिचौलिए इस योजना पर हावी हो गए। कई पंचायत सेवकों और मुखिया ने बिचौलियों की मदद से ऐसे शौचालय बनाकर ग्रामीणों को सौंप दिए कि ये दिखावे के शौचालय बनकर रह गए हैं। बिचौलियों ने जितने शौचालय बनाए हैं,उसमें अधिकांश गुणवत्ताहीन और आधे अधूरे खड़े हैं। कहीं पर दरवाजा नहीं लगा तो, कहीं छत या दीवार का हाल बेहाल है। शौचालय की हौद, पेन और टोंटी भी अपनी गुणवत्ता की कहानी अपने आप बयां करते हैं। बिचौलियों ने बस सरकार के ओर से दिए जा रहे 12000 रुपये निकालने लायक शौचालय के नमूने खड़े कर दिए। फिर पलटकर भी नहीं देखा। जो परिवार खुद से कुछ पैसे लगाकर शौचालय की मरम्मत करा सके, उनके शौचालय तो कुछ कुछ उपयोगी है, परंतु बेहद गरीब परिवारों का शौचालय बस नमूने बने हुए हैं।
शौचालय बनाने के दौरान नींव तो बिलकुल ही खोदी नहीं गया,वहीं एक ईंट की जोड़ाई बिल्कुल घटिया है। छत की ढलाई में भी गुणवत्ता की अनदेखी की गई है। बेहरीनबासा कुडपानी निवासी पात्रिक केरकेट्टा का शौचालय बिचौलियों ने जून 2018 में बनवा दिया और ये अगस्त 2018 में धवस्त हो गया। मजबूरन फिलहाल उनके परिवार की 5 महिलाएं और 2 पुरुष खुले में ही शौच के लिए जा रहे हैं। इनका शौचालय योजना की पोल खुद ही खोल रहा है।