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पतन की ओर ले जाता है असत्य से उपजा ज्ञान : डॉ.पद्मराज

सिमडेगा : प्रत्येक कार्य करने से पहले मनुष्य को चाहिए कि उसकी विधि का भलीभांति ज्ञान प्राप्त क

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 11:10 PM (IST)Updated: Tue, 28 Aug 2018 11:10 PM (IST)
पतन की ओर ले जाता है असत्य से उपजा ज्ञान : डॉ.पद्मराज
पतन की ओर ले जाता है असत्य से उपजा ज्ञान : डॉ.पद्मराज

सिमडेगा : प्रत्येक कार्य करने से पहले मनुष्य को चाहिए कि उसकी विधि का भलीभांति ज्ञान प्राप्त कर लें। अर्थात पहले जानो फिर करो। उक्त विचार स्थानीय जैन भवन में आयोजित सत्संग सभा में कथावाचक डॉ. पद्मराज जी महाराज ने व्यक्त किए। वे ज्ञान के महत्व के संबंध में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा ज्ञान और चरित्र में निश्चित ही चरित्र का महत्व अधिक है, किन्तु उसी चरित्र का जिसका जन्म सम्यक ज्ञान से हुआ हो। असत्य ज्ञान से उपजा हुआ चरित्र व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है। इसलिए तीर्थंकर महावीर जी ने सत्य ज्ञान को सर्वाधिक महत्व दिया। उन्होंने ज्ञान को प्रथम स्थान देकर चरित्र को द्वितीय स्थान दिया है।

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स्वामी जी ने आगे बताया कि बिना जाने काम करने वाला व्यक्ति न केवल काम बिगाड़ता है अपितु स्वयं को हंसी का पात्र भी बनता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ज्ञान का महत्व निर्विवाद रूप से है। ¨कतु काफी लोग ऐसे भी हैं जो देखादेखी या अन्य कारणों से वह काम भी करने लग जाते हैं जिसकी विधि का उनको कोई पता नहीं। और ऐसा करके वे अपना ही नुकसान करते हैं। कहा भी गया है कि बिना विचारे जो करे सो पीछे पचताए, काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हंसाए। स्वामी जी ने बताया कि एक संन्यासी ने अपनी कुटिया से गांव की ओर जाते हुए बीच में पड़ने वाली नदी के रेत में अपना कमण्डलु इसलिए छिपा दिया कि अभी उसकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी और सोचा कि वापसी में ले जाऊंगा। ऐसा सोचकर उन्होंने वहां रेत का छोटा सा टीला बना दिया ताकि आसानी से कमण्डलु खोज सकें। दूर बैठा एक भक्त उन्हें देख रहा था। उसने बस रेत का टीला बनाते हुए संन्यासी को देखा और सोचा कि ऐसा करने से जरूर कोई पुण्यकार्य होता होगा, तभी तो संन्यासी ने किया है। सो उसने बिना विलम्ब किये पहले वाले टीले के बगल में एक और टीला बना दिया और अत्यंत प्रसन्न हुआ। इतनी देर को कोई और आदमी आया और उसने भी वैसा ही टीला बना दिया। करते-करते वहां रेत के टीले ही टीले निर्मित हो गए। जब संन्यासी वापस आए और अपना कमण्डलु खोजने लगे तो अत्यंत परेशानी हुई। उन्होंने गांव वालों से पूछा कि ये इतने टीले क्यों बनाये हैं ? तब गांव वाले कहने लगे, महाराज ! आपको टीला बनाता हुआ देखकर ही ये टीले बनाए गए हैं। भला आप जैसा पहुंचा हुआ संन्यासी जो करेगा वह कार्य तो सीधा स्वर्ग देने वाला होगा ही न। सो हम भी लग गए स्वर्ग की तैयारी में। यह सुनकर संन्यासी ने अपना सिर पिटा और बोले, अरे नादानों ! जरा पता तो करते कि मैंने टीला क्यों बनाया था। इससे कोई स्वर्ग नहीं मिलता, मैंने तो अपना कमण्डलु छिपाया था, ताकि वापसी में ले जाऊंगा।लेकिन तुमने तो सारी गड़बड़ी कर दी। यह सुनकर गांव वाले अत्यंत शर्मिंदा हुए।

स्वामी जी ने कहा कि बिना तथ्य को जाने कार्य करने वालों को ऐसे ही पतित होना पड़ता है। सभा में रोशन रोहिल्ला, प्रधान अशोक जैन, सुशील जैन, प्रवीण जैन, रामोतार बंसल, गो¨वद बंसल, विमल जैन, किशन जैन, पवन जैन, संजय जैन, विजय अग्रवाल आदि बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।


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