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लाह आधारित उद्योग को मिले प्रोत्साहन तो लाखों में होगी आय

वाचस्पति मिश्र सिमडेगा वनों के आवरण में लिपटी सिमडेगा की धरती पर प्रकृति ने भरपूर की।

By JagranEdited By: Published: Sun, 31 May 2020 09:08 PM (IST)Updated: Sun, 31 May 2020 09:08 PM (IST)
लाह आधारित उद्योग को मिले प्रोत्साहन तो लाखों में होगी आय
लाह आधारित उद्योग को मिले प्रोत्साहन तो लाखों में होगी आय

वाचस्पति मिश्र,

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सिमडेगा: वनों के आवरण में लिपटी सिमडेगा की धरती पर प्रकृति ने भरपूर स्नेह लुटाया है। इस तथ्य की पुष्टि वन क्षेत्रों में पाए जाने वाले सैंकड़ों वनोत्पाद, अनुकूल वातावरण व आजीविका के असीमित स्त्रोत करते हैं। सिमडेगा की वन संपदाओं में शुमार लाह भी ऐसा ही एक वनोत्पाद है,जो इस क्षेत्र के लोगों की जीविका का मजबूत आधार स्तंभ है। आज जिले के कमोबेश हर क्षेत्र में लाह की खेती होती है। परंतु आज भी अगर औद्योगिक दृष्टिकोण की बात करें तो लाह की वृहद स्तर पर खेती जरूर सिमडेगा में होती है, परंतु जिले में इससे जुड़े उद्योग-धंधे आज भी विकसित नहीं हो सके,न ही इसके लिए सफल प्रयास किए गए। लाह प्रोसेसिग केन्द्र लगकर भी आज बंद पड़े हैं। लाह प्रोसेसिग की परिकल्पना अभी भी अधूरी ही है। आज लाह उत्पादक किसान अपने बहुमूल्य उत्पादों को भी औने-पौने दामों पर बेचने को विवश है। जबकि मुनाफा का बड़ा हिस्सा कारोबारी व सेठ-साहुकार ले जाते हैं। इस बाबत जिले के वृहद कारोबारी बुधन साव ने बताया कि जिले में लाह उत्पादन की बड़ी संभावनाएं हैं। अगर मौसम अनुकूल हो तो सिमडेगा में 1000 टन तक लाह का उत्पादन हो सकता है। उन्होंने पिछले वर्ष करीब 500 रुपये किलो के दर से लाह की बिक्री हुई थी। मांग अगर अधिक हो यह 1000 रुपये किलो तक भी बिकता है। उन्होंने बताया कि लाह का उत्पादन मुख्य रूप से कुसुम, बेर एवं सेमियालता के पेड़ पर होता है। साल में दो बार उपज मिलती है। जून-जुलाई में तथा दूसरा दिसंबर-जनवरी में भी लाह का उत्पादन होता है। इधर, लाह की आपूर्ति पश्चिम बंगाल में की जाती है। जहां इसका इस्तेमाल चूड़ी, खिलौने व बटन आदि बनाने के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। अब बड़ा सवाल यह है कि अगर जिले में लाह उत्पादन से जुड़े लघु उद्योग धंधे विकसित किए जाएं तो न सिर्फ जिला विकसित बनेगा, बल्कि हजारों की संख्या में लोग भी आत्मनिर्भर बनेंगे। लोगों की कमाई हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में होगी। आभूषण बनाने में भी लाह का उपयोग

सिमडेगा: लाह शब्द की उत्पत्ति संस्कृत में लाक्षा शब्द से माना जाता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में कौरवों ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया जाता है। हालांकि वर्तमान में लाह का उत्पादन किसी को मारने के लिए नहीं, बल्कि हजारों लोगों को आत्मनिर्भरता रूपी जीवनदान देने के लिए है। आज लाह को खिलौने बनाने, बटन बनाने, चूड़ियां बनाने के साथ-साथ आभूषणों के निर्माण में भी काम में लाए जाते हैं।

जिले में उद्योग धंधा लगेंगे तो कार्य के नए असवर मिलेंगे। राज्य में काम नहीं मिलने के कारण राज्य से बाहर काम के लिए पलायन करना पड़ता है।आज मजदूर सबसे मजबूर हैं।

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में ही काम दिलाए-विल्सन कुजूर,श्रमिक,फोटो-3


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