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विपत्ति से बचाव व सुख-समृद्धि की कामना

जेएनएन, आदित्यपुर : कोल्हान के विभिन्न हिस्सों में मंगलवार को लोगों ने विपत्ति से बचाव और सुख-समृद्धि

By JagranEdited By: Published: Tue, 17 Jul 2018 08:31 PM (IST)Updated: Tue, 17 Jul 2018 08:31 PM (IST)
विपत्ति से बचाव व सुख-समृद्धि की कामना
विपत्ति से बचाव व सुख-समृद्धि की कामना

जेएनएन, आदित्यपुर : कोल्हान के विभिन्न हिस्सों में मंगलवार को लोगों ने विपत्ति से बचाव और सुख-समृद्धि की कामना के लिए विपदतारिणी माता की पूरी आस्था के साथ पूजा की गई। आदित्यपुर, गम्हरिया, ईचागढ़, चांडिल, पोटका, पटमदा समेत कोल्हान के अन्य हिस्सों में विपदतारिणी माता की पूजा मंदिरों, सार्वजनिक स्थलों समेत अन्य जगहों पर की गई।

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आदित्यपुर के प्राचीन दिंदली शिव मंदिर और माझीटोला सार्वजनिक काली मंदिर में उस पूजा का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। कांड्रा, बड़ा गम्हरिया, बलरामपुर, मोहनपुर आदि गांवों के मंदिरों में विपदतारिणी पूजा के मौके पर श्रद्धालूओं की भीड़ उमड़ी। बड़ा गम्हरिया के शिव-पार्वती मंदिर के पुजारी गणेश मुखर्जी एवं लोटन ठाकुर ने पूजा-अर्चना के बाद महिला श्रद्धालुओं को माता विपदतारिणी की कथा सुनाई। चांडिल स्थित चौलिबासा के काली मंदिर और दुर्गा मंदिर में सुबह से ही भक्तों का तंाता लगा रहा। वहीं ईचागढ़, टीकर, डुमरा, सालुकडीह, सोड़ो, कुकड़ू, तिरूलडीह और तमारी सहित कई जगहों पर मां विपदतारिणी की भव्य मूर्ति का भी निर्माण कराया गया था। नीमडीह प्रखंड के विभिन्न मंदिरों में माता की पूजा की गई।

मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी से अपनी मौसी के घर जाते हैं। वहां से आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापस लौटते हैं। इस बीच में पड़ने वाले मंगलवार और शनिवार को विपदतारिणी माता के रूप में मां दुर्गा की पूजा होती है। इस पूजा के करने माता भक्तों की विपत्ति से बचाव के साथ सुख-समृद्धि देती हैं। इस पूजा में 13 किस्म के फूल और फल चढ़ाए जाते हैं।

लक्ष्मी ने की थी सबसे पहले विपदतारिणी की पूजा : लोक कथा में सबसे पहले भगवान जगन्नाथ की सकुशल वापसी के लिए विपदतारिणी माता की पूजा की थी। जब रथ पर सवार होकर भगवान जगन्नाथ मौसीबाड़ी के लिए निकले तो लक्ष्मी के मन में तरह-तरह की आशंकाएं उठने लगी। आशंकाओं से घबराई देवी लक्ष्मी ने उनके दौरे के क्रम में मंगलवार और शनिवार को विपदतारिणी माता के रूप में शक्ति स्वरूपा दुर्गा की पूजा की थी, उसके बाद से रथयात्रा और बहुड़ा रथयात्रा के बीच पड़ने वाले मंगलवार और शनिवार को विपदतारिणी माता की पूजा होती है।


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