राजमहल : यहां की महिलाओं की रुचि राजनीति में नहीं
महिला सशक्तीकरण के तहत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे नारे भले ही सुनाई देते हों लेकिन हकीकत है कि राजमहल लोकसभा सीट पर महिला नेत्रियों की अनदेखी होती रही है।
डॉ. प्रणेश, साहिबगंज : महिला सशक्तीकरण के तहत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे नारे भले ही चुनावी फिजा में गूंजते सुनाई देते हैं, लेकिन महिलाओं को राजनीति में अब भी उनका हक नहीं मिला है। सभी राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को लुभाने की अलग-अलग तरह से प्रयास करते हैं, लेकिन उम्मीदवार के तौर पर महिलाओं पर भरोसा नहीं जताते। यही कारण है कि अब तक राजमहल लोकसभा चुनाव के रण में किसी महिला उम्मीदवार ने दम नहीं दिखाया। विगत तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो 2009 में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने इस लोकसभा सीट पर अमूल्या हांसदा नामक महिला को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। इस चुनाव में कुल 12 प्रत्याशियों ने नामांकन किया था। 2004 में कुल आठ प्रत्याशियों ने नामांकन किया था जिनमें एक भी महिला नहीं थीं। इसी प्रकार 2014 में 13 प्रत्याशियों में एक भी महिला नहीं थी। भाजपा, कांग्रेस, झामुमो, झाविमो जैसी पार्टियों ने यहां कभी किसी महिला को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया। वैसे यहां जिला परिषद अध्यक्ष पद पर रेणुका मुर्मू काबिज हैं। पिछले दिनों उनके भाजपा से प्रत्याशी बनाने की चर्चा भी चली, लेकिन अंतोगत्वा हेमलाल मुर्मू बाजी मार ले गए। भाजपा महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष रमिता तिवारी कहती हैं कि भाजपा महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है। इसका परिणाम भी बेहतर मिला है। वे कहती हैं कि कुछ वर्ष पूर्व तक देश पर शासन करनेवाली पार्टी ने महिलाओं को काफी दबाकर रखा जिस वजह से महिला नेतृत्व उभर कर सामने नहीं आ पायीं। साथ ही वे कहती हैं कि यह क्षेत्र थोड़ा दुरूह है। पार्टी के वरीय पदाधिकारियों को लगता होगा कि महिलाएं यहां सफल नहीं हो पाएंगी संभवत: इसीलिए यहां महिला को उम्मीदवार नहीं बनाया जाता है। कांग्रेस महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष डॉ. अनिता देवी कहती हैं कि यहां के पुरुष महिलाओं को आगे बढ़ने ही नहीं देना चाहते। महिलाएं आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं। संभव है भविष्य में यहां उम्मीदवार भी बने। फिलहाल राजमहल लोकसभा सीट गठबंधन के तहत झामुमो के खाते में चली गई है जिस वजह से कांग्रेस के पास करने के लिए कुछ नहीं है।