ऐतिहासिक धरोहरों में छुपा राजमहल का गौरवशाली इतिहास
उधवा, (साहेबगंज): ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत के महत्वपूर्ण शहरों में एक राजमहल के विभिन्न हिस्सों मौ
उधवा, (साहेबगंज): ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत के महत्वपूर्ण शहरों में एक राजमहल के विभिन्न हिस्सों मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों की आज की बुलंदी इसके गौरवशाली इतिहास को बयान करती है। राजमहल शहर पूर्वोत्तर भारत के झारखंड राज्य में गंगा नदी के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित है। कभी यह अविभाजित बिहार, बंगाल तथा ओडीशा का राजधानी हुआ करता था लेकिन आज इसे सिर्फ अनुमंडल का दर्जा प्राप्त है।यहां उत्तर वाहिनी गंगा प्रवाहित है जो इसे धार्मिक आस्था के केंद्र के रूप में विशेष पहचान दिलाती है। झारखंड का यह प्रसिद्ध शहर विश्व के प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला राजमहल की पहाड़ियों में स्थित हैं, जो गंगा नदी से 190 किलोमीटर उत्तर-दक्षिण में लगभग दुमका तक फैली हुई हैं। यहां पर मौजूद मुगलकालीन इमारतों की आज की बुलंदी अतीत की बुलंदी को परिभाषित करती है।
पहाड़ियों के गोद में बसा राजमहल
राजमहल की पहाड़ियां लगभग 567 मीटर की ऊंचाई तक उठती हैं। पहाड़िया लोगों का राजमहल की पहाड़ियों में वास है। घाटियों में संथाल जनजाति द्वारा कृषि की जाती है।मध्यकालीन भारत में बंगाल के सूबेदार और मुगल सेनापति मान¨सह ने तेलियागढ़ दर्रे और गंगा नदी पर सामरिक नियंत्रण के लिए 1595-1596 में इस जगह को अपनी राजधानी के रूप में चुना था।1608 में बंगाल की राजधानी तत्कालीन 'डक्का' (वर्तमान ढाका) स्थानांतरित हो गई, लेकिन अस्थायी तौर पर 1639 से 1660 के बीच राजमहल ने अपनी प्रशासनिक स्थिति को वापस हासिल कर लिया था। राजमहल में बादशाह अकबर के समय की ऐतिहासिक महत्व की 'अकबरी मस्जिद'(लगभग 1600 ई.) आज भी बुलंद है। वहीं बंगाल के नवाब मीर कासिम के समय का बनाया गया कुछ बेकार हो गया है।
भवनों में छिपा गौरवशाली अतीत
बीता हुआ कल तो कभी वापस नहीं आता परंतु कुछ धरोहर को देखकर हमें बीते हुए कल की जानकारी मिलती है। आज झारखंड में कई ऐसे धरोहर के रूप में मंदिर, मस्जिद, स्मारक जैसे चीजें हमारे सामने है जिससे गर्व होता है कि हमारा इतिहास कितना गौरवशाली था।
¨सघीदालान है खास राजमहल में गंगा किनारे स्थित प्रसिद्ध ¨सह ए दलान अपना अस्तित्व किसी तरह अब तक बचाए हुए है।इसे आमतौर पर ¨सहीदलान कहा जाता है।इसे बंगाल के गवर्नर शाह शूजा ने बनवाया था।यह भी कहा जाता है कि इसके निर्माण में मान¨सह का योगदान रहा है।यह बंगाल के गवर्नर का दीवाने खास था।इसका उपयोग शाह शूजा अपने सचिवालय के रूप में करता था।इसी ¨सहीदलान में शाह शूजा अपने मंत्रियों व सिपहसलारों के साथ राजकाज चलाने संबंधी मंत्रणा भी करता था।
वर्जन:
ऐतिहासिक भवनों के संदर्भ में राजमहल नगर पंचायत के पूर्व चेयरमैन जयंत ¨सह के अनुसार मुगलकाल में राजमहल को बंगाल की राजधानी होने का गौरव प्राप्त था । उस काल में बने राजमहल का यह हिस्सा काफी महत्वपूर्ण था। औरंगजेब ने शाह शूजा को मारने के लिए राजमहल पर हमला किया था तो महल के इस हिस्से को तोड़ दिया था।1860 में जब अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता से राजमहल रेललाइन बिछायी गई थी तो इसका पुनरुद्धार कर रेलवे का इसमें रेल जोनल कार्यालय स्थापित किया गया । 1941 में राजमहल से रेल लाईन हटा लिया गया था तो ये भवन बेकार हो गया था ।बाद में इस भवन में राजमहल थाना का कार्य सम्पादित होने लगा। जबसे इस भवन को पुरातत्व विभाग को हस्तांतरित किया गया यह पूर्ण रूप से उपेक्षित हो गया और अब खंडहर बन गया । राजमहल स्टेशन के सामने बना ये भवन आज से 15-20 साल पहले तक काफी गुलजार रहा करता था आज बदहाली का रोना रो रहा है ।