औषधीय पौधों का संरक्षण हो तो बदल जाएगी सूरत
जाटी साहिबगंज/तालझारी राजमहल की पहाड़ियों पर स्थित जंगलों में औषधीय पौधों की भरमार ह
जाटी, साहिबगंज/तालझारी : राजमहल की पहाड़ियों पर स्थित जंगलों में औषधीय पौधों की भरमार है। कभी यहां औषधीय पौधों को एकत्रित कर दवा कंपनियों को भेजा जाता था। सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता था लेकिन सरकार की नीतियों की वजह से वह बंद हो गया। इनका संरक्षण व संवर्धन नहीं होने की वजह से जंगल से धीरे-धीरे औषधीय पौधे समाप्त हो रहे हैं। जड़ी बूटियों से इलाज करने वाले वैद्य भी इससे परेशान हैं। इसके संग्रह में लोगों की रुचि नहीं है जिस वजह से इस काम में जुटे वैद्य को वह उपलब्ध नहीं हो पा रही है। इससे उन्हें अनेक बीमारियों के इलाज में परेशानी हो रही है। इससे जुड़े लोग इसके संरक्षण की मांग कर रहे हैं।
तालझारी के हरिणकोल में रहनेवाले वैद्य प्रकाश बेसरा ने बताया कि पूर्व में पहाड़ी क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में जड़ी बूटियां मिल जाती थी। मजदूरों के माध्यम से इसे संग्रह करा लिया जाता था। बहुत सी बीमारियां जैसे गठिया, बात, शुगर, ब्लड प्रेशर, हड्डी जोड़ सहित अन्य बीमारियों का इलाज आसानी से हो जाता था परंतु अब मजदूर इसमें रुचि नहीं लेते। कुछ औषधीय पौधे अब समाप्ति के कगार पर हैं। गठिया जड़ी, माजोफल, मांसजोड़ी, सफेद मुसली गठिया, पाइल्स आदि की बीमारी में काम आती है। उसे दुमका से मंगाया जाता है। इनके संरक्षण व मार्केटिग की जरूरत है। यहां की मिट्टी में आसानी से इसकी खेती भी हो सकती है।
भतभंगा के वैद्य अब्दुल जब्बार ने बताया कि पहाड़ों पर स्थित जंगलों में अनेक औषधीय पौधे हैं। हमलोग उसे खोजकर मंगवाते हैं। बड़ी मुश्किल से मिलते हैं अगर इसके लिए सरकार की ओर से पहल की जाए तो वह आय का स्त्रोत बन सकता है। पहाड़ों पर ये पाए जाते हैं। इस इलाके में इसकी व्यापक पैमाने पर खेती भी हो सकती है। इससे लोगों को रोजगार मिल सकता है। सरकार को इसके संरक्षण व मार्केटिग की भी व्यवस्था करनी चाहिए। इन औषधीय पौधों की डिमांड अन्य राज्यों में है लेकिन परिवहन की व्यवस्था न होने से भी परेशानी होती है।
लखीपुर निवासी वैद्य हरि मुर्मू ने बताया कि क्षेत्र पूरी तरह से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों में अनेक प्रकार की औषधीय पौधे पाए जाते हैं। इनकी सही जानकारी लोगों को नहीं है। इसलिए इसका संरक्षण नहीं हो पाता है। सही तरह से जानकारी ना होने की वजह से लकड़ी तस्करों द्वारा चोरी-छुपे उन्हें भी काट दिया जाता है। क्षेत्र में स्थित औषधीय पौधों के संरक्षण व संवर्धन की प्रक्रिया शुरू की जाए तो जंगलों में लोगों का औषधि के लिए आना-जाना होगा। लोगों को रोजगार भी मिल जाएगा।
बरहेट के फूलभंगा निवासी मो. युनूस आलम ने बताया कि उनके दादा औषधीय पौधों के कारोबार से जुड़े हुए थे। वे वैद्य भी थे। उसके बाद उनके पिता यहां से औषधीय पौधों की आपूर्ति दवा कंपनियों को करते थे। इसके लिए वन विभाग ने उन्हें लाइसेंस भी निगर्त किया था। हालांकि विगत कुछ वर्ष पूर्व से उसे रिनुअल नहीं किया जा रहा है। इससे कारोबार प्रभावित हुआ। एक दशक पूर्व तक उनकी कंपनी का टर्नओवर 20 लाख रुपए सलाना था। इससे आसपास के लोगों को भी फायदा होता था लेकिन सरकार की नीतियों की वजह से वह प्रभावित हुआ।