आंवले के स्वाद से दूर भागेगा कोरोना का आतंक
साहिबगंज आंवला के फल में प्रचुरता से मिलने वाले कैल्शियम फाइबर और विटामिन सी के बारे
साहिबगंज : आंवला के फल में प्रचुरता से मिलने वाले कैल्शियम, फाइबर और विटामिन सी के बारे में साहिबगंज के लोगों को पहले से बहुत जानकारी नहीं है। हालांकि जिले में लोग आंवला का अचार, मुरब्बा व चटनी बनाकर खाते हैं। आंवला की उपज भी साहिबगंज में नहीं होती है यहां उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के ड्राइ जोन से आंवला बाजार में आता है। वर्तमान में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। टेलीविजन या फेसबुक, वाट्सएप के माध्यम से डॉक्टर या वैद्य के परामर्श के बाद आंवला के सेवन का रिवाज साहिबगंज में काफी बढ़ गया है। बाबा रामदेव का च्यवनप्राश या डाबर, वैद्यनाथ का च्यवनप्राश लोग खरीद कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा रहे हैं।
साहिबगंज शहर में कभी कभार आने पर आंवला तुरंत बिक जाता है। इसकी खपत बढ़ गई है। बाजार में कुछ वाईटिस आंवला आता है। अप्रैल के अंत या मई की शुरुआत तक ग्रिनिश आंवला बिकता था। साहिबगंज बाजार में आम तौर पर एक सौ रुपये किलो आंवला बिकता है। लॉकडाउन के शुरुआत से लेकर अब बाजार में आनेवाला आंवला 2 सौ रुपये किलो बिक रहा है। वह भी हमेशा उपलब्ध नहीं है।
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खत्म हो गया आंवला का फसली सीजन: साहिबगंज जिला कृषि विज्ञान केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार आंवला का फसली सीजन खत्म हो गया है। अप्रैल से मई तक आंवला होता है। साहिबगंज में भी आमतौर पर इसी समय आंवला मिलता है। पहले आंवले की आपूर्ति उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के ड्राइ जोन से हो रही थी। अब झारखंड के पलामू क्षेत्र से भी आंवला आता है। साहिबगंज जिले में कंचन एवं कृष्णा किस्म का आंवला होता है जो बड़े साइज का होता है। आंवले की छोटी वाली किस्म भी कभी कभार बाजार में आती है। दोनों में किस्म बेहतर है। छोटे साइज के आंवला में औषधीय गुण ज्यादा होता है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है। साहिबगंज में आंवला के रख रखाव के लिए कोई कोल्ड स्टोरेज नहीं है। न ही इसका भंडारण होता है।
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यहां की पथरीली जमीन पर हो सकती आंवले की खेती
अगर साहिबगंज के लोगों को सालों भर आंवला का स्वाद चखना है तो पथरीली जमीन पर इसकी खेती हो सकती है। परंतु साहिबगंज जिला सेमी एरिड जोन से बाहर है क्योंकि यहां बारिश औसतन 1200 मिलीमीटर होती है। इसलिए यहां आंवला की खेती बहुतायत में नहीं हो सकती है। हालांकि लोग अपने बगीचे में अन्य फलों के साथ आंवला का पौधा जरुर लगाते हैं क्योंकि इसके पेड़ को पूजने की परंपरा भी है। इस कारण जहां तहां इसके पेड़ मिलते हैं परंतु उसमें आंवला का फल बहुत कम मात्रा में आता है। जिले में अक्षय तृतीया पर आंवला वृक्ष की पूजा महिलाएं करती हैं।
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कोट
कोरोना से लड़ने में आंवला काफी फायदेमंद होता है। आंवला में पाए जाने वाले कैल्शियम, फाइवर व विटामिन सी के कारण लोग इसके प्रयोग से कोरोना के संक्रमण से बच सकते हैं। साहिबगंज में आंवला होता नहीं है। बाहर से आने वाले आंवले पर ही लोग निर्भर हैं। बाजार में आंवला यूपी, एमपी के अलावा झारखंड के ड्राई जोन पलामू से आता है। साहिबगंज में भी इसकी खेती की संभावना पर विचार किया जा सकता है परंतु ज्यादा बारिश के कारण यहां खेती से लाभ संभव नहीं है।
कौशिक चटर्जी, फार्म मैनेजर, जिला कृषि विज्ञान केंद्र, साहिबगंज