युवा मांगे रोजगार की गारंटी, दरबार में फरियाद की घंटी
Jharkhand. राज्य सरकार की नीतियों प्रतियोगिता परीक्षाओं में चयन आयोगों की लेटलतीफी और परीक्षाओं में बारंबार विवाद के कारण अच्छे अंक लाने के बाद भी बेरोजगार हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। रातू रोड, रांची के कुछ युवा लगभग रोज दैनिक जागरण को फोन करते हैं। पूछते हैं, आज शिक्षा का कोई न्यूज? कोई नई बहाली निकली है क्या? फलाना नियुक्ति प्रक्रिया में कुछ नया? इनमें से एक इतिहास स्नातकोत्तर और गोल्ड मेडलिस्ट हैं। राज्य सरकार की नीतियों, प्रतियोगिता परीक्षाओं में चयन आयोगों की लेटलतीफी और परीक्षाओं में बारंबार विवाद के कारण अच्छे अंक लाने के बाद भी बेरोजगार हैं। जब नौकरी नहीं मिलती तो कहते हैं- भैया, अब अपने अभिभावकों को कितना समझाएंगे?
यह सिर्फ बानगी है। राज्य के लाखों होनहार युवाओं की यह कहानी है। जिस राज्य में 19-20 की जगह महज पांच सिविल सेवा परीक्षाएं पूरी हुई हों, एक-एक सिविल सेवा पूरी होने में पांच-पांच साल लग जाए। एक दर्जन से अधिक प्रतियोगिता परीक्षाओं की सीबीआइ जांच हो, वहीं योग्य युवाओं की पीड़ा समझी जा सकती है। राज्य में उच्च शिक्षा की भी स्थिति ठीक नहीं है।
राज्य में दो-दो नए इंजीनियरिंग कॉलेज खुले। इसके बावजूद यहां जरूरत कई अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों की है। राज्य में पॉलीटेक्निक तथा औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों की स्थिति ठीक नहीं है। लैब, लाइब्रेरी व अन्य संरचनाएं दुरुस्त नहीं हैं। इनमें शिक्षकों की भारी कमी है। यहां गुणवत्तापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए काफी काम करना बाकी है।
पर्यटन का हो विकास तो खुलें रोजगार के द्वार
झारखंड में पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं। अप्रतिम सुंदरता की गोद में बैठे आदिवासी बहुल इस राज्य में कला-संस्कृति, रीति-रिवाज, धार्मिक स्थल भी पर्यटन की भरपूर संभावनाएं होने की पुष्टि करते हैं। इन सबके बावजूद यहां पर्यटन रोजगार का बड़ा माध्यम नहीं बन पाया। हाल के वर्षों में यहां के पर्यटन स्थलों में आधारभूत संरचनाएं विकसित करने को लेकर किए गए कई प्रयास के बाद भी यह स्थिति है। यदि सरकार इसपर काम करे तो रोजगार के द्वार अपने आप खुलने लगेंगे।
विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में 73 छात्रों पर एक शिक्षक
कहा जाता है कि युवाओं को रोजगार से जोडऩे के लिए उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के साथ-साथ कौशल विकास जरूरी है। लेकिन दुर्भाग्य से राज्य में उच्च शिक्षा की स्थिति काफी खराब है। स्थिति यह है कि राज्य के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में छह साल में छात्र-छात्राओं की संख्या तो दोगुनी हो गई, लेकिन छात्र शिक्षक अनुपात लगातार घटता गया।
ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में वर्ष 2012-13 में 48 छात्र-छात्राओं पर एक शिक्षक उपलब्ध थे। छह साल बाद 2018-19 में यह अनुपात 73 हो गया। अर्थात अभी कॉलेजों में 73 छात्र-छात्राओं पर एक शिक्षक उपलब्ध है। विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में नामांकन की बात करें तो राज्य में वर्ष 2011-12 में स्नातक में 3,09,498 छात्र-छात्राओं का नामांकन हुआ। 2018-19 में यह संख्या 6,10,887 हो गई जो लगभग दोगुनी है। इसी तरह, स्नातकोत्तर में नामांकन 40,846 से बढ़कर 81,739 हो गया।
पलायन मजबूरी
राज्य में पलायन बड़ी समस्या है। एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन (एट्सेक) जैसी गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि प्रदेश की तकरीबन 42 हजार किशोरियों और युवतियों का झारखंड से असुरक्षित पलायन हुआ है। दुमका, गोड्डा, हजारीबाग, गुमला, लोहरदगा,रांची, पाकुड़ और सिमडेगा के दो-दो प्रखंडों के 20-20 गांवों में कराए गए सर्वेक्षण में 785 किशोरियां और युवतियों के असुरक्षित पलायन करने की पुष्टि हुई।
झारखंड में छात्र शिक्षक अनुपात
2012-13 : 48
2013-14 : 55
2014-15 : 55
2015-16 : 50
2016-17 : 56
2017-18 : 72
2018-19 : 73
नियोजनालयों में उमड़ी बेरोजगारों की भीड़
राज्य में बेरोजगारी की स्थिति का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि राज्य सरकार ने बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की तो नियोजनालयों में निबंधन में जबर्दस्त उछाल आ गया। नियोजनालयों में पिछले माह तक निबंधित युवाओं की संख्या महज 2.54 लाख थी। अब इनमें निबंधित बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़कर 5,40,893 हो गई। इनमें 3,97,498 पुरुष तथा 1,43,395 महिला हैं। निबंधन करानेवाले 6,114 बेरोजगार मिडिल पास, 1,30,502 दसवीं पास, 1,87,743 बारहवीं पास, 1,72,657 स्नातक पास, 31,893
स्नातकोत्तर पास, 62 पीएचडी, 47,179 आइटीआइ तथा 53,911 डिप्लोमा पास हैं।