Move to Jagran APP

बदलाव की बयार: लगेंगे एकलव्य के सपनों को पंख

ऐसे विद्यार्थियों को इस योजना से जोड़ा जाएगा जिनके परिजन ही उनके सपनों को पंख लगाएंगे।

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 16 May 2017 11:37 AM (IST)Updated: Tue, 16 May 2017 11:37 AM (IST)
बदलाव की बयार: लगेंगे एकलव्य के सपनों को पंख
बदलाव की बयार: लगेंगे एकलव्य के सपनों को पंख

रांची, प्रदीप सिंह। यह प्रयास वाकई लीक से हटकर है। न कोई सरकारी मदद न ही कोई आर्थिक सहायता, फिर भी लक्ष्य ऐसा कि नौनिहालों को वह सारी सहूलियतें मिलेंगी जिसकेवह हकदार हैं। राजधानी से लगभग चालीस किलोमीटर दूर पतरातू की रपटीली घाटी के उस पार अथाह झील के किनारे ऐसी ही एक योजना के बीज पड़े हैं। 

loksabha election banner

नाम दिया गया है कल्पतरु एकलव्य योजना। इसके तहत वैसे मेघावी विद्यार्थियों की तलाश है, जो आर्थिक परेशानियों की वजह से अपने सपने साकार नहीं कर पाते। ऐसे विद्यार्थियों को इस योजना से जोड़ा जाएगा जिनके परिजन ही उनके सपनों को पंख लगाएंगे। ऐसे विद्यार्थियों के परिजनों को तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित कर कुशल बनाया जाएगा ताकि उनकी आय बढ़े। इससे वे आत्मसम्मान के साथ समाज के बीच भी अपनी पहचान बना पाएंगे। 

दरअसल कल्पतरु ने इससे पूर्व भी कई अभिनव प्रयोग को अंजाम दिया है। अपराध के लिए बदनाम एक पूरी बस्ती के लोगों को तकनीकी प्रशिक्षण देकर सीधे काम से जोड़ा गया तो अभूतपूर्व परिणाम आए। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उनके हाथ कृषि के उपकरण बनाने लगे। आय बढ़ी तो बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलने लगी। कल्पतरु ने गोवंश संवर्धन का भी काम अपने हाथ में लिया। कृषि से इस मुहिम को जोड़ते हुए लोगों को बैल पालने को प्रेरित किया गया। एक छोटी राशि देकर गो-पालकों को इसके लिए प्रेरित किया गया। 

आरएसएस के क्षेत्र संघचालक की परिकल्पना: 'कल्पतरुÓ के तहत अभिनव प्रयोगों को धरातल पर उतारने की परिकल्पना राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय संघचालक (बिहार-झारखंड) सिद्धिनाथ सिंह की है। उनके जिम्मे सेवा भारती का भी दायित्व है। सामाजिक क्षेत्र में काम करने के दौरान उन्हें यह खलता रहा कि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण कई प्रतिभाएं असमय कुंठित हो जाती हैं जबकि समाज की मदद से इसे सकारात्मक दिशा में जोड़ा जा सकता है। बताते हैं कि बस इसी उद्देश्य के तहत कल्पतरु एकलव्य योजना की शुरूआत की गई है। अभिभावक अगर साथ देने को तैयार हुए तो आश्चर्यजनक परिणाम भी आएंगे। वे स्वयं हर सप्ताह के शनिवार और रविवार अभिभावकों को वक्त देंगे। वे कहते हैं-मदद देने से परिवर्तन नहीं होगा। इसके लिए समाज को सशक्त बनाना होगा। बच्चे तभी बेहतर करेंगे जब माता-पिता पुरुषार्थी होंगे। एक बच्चे को शिक्षा के अलावा पोषण की भी आवश्यकता होती है। अभिभावक सशक्त होंगे तो उनके नौनिहालों के सपनों को पंख लगेंगे।

यह भी पढ़ें: तंगी की मार झेल रहे परिवार ने की इच्छामृत्यु की मांग

यह भी पढ़ें: प्लस टू विद्यालयों में जल्द होगी शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.