आत्महत्या जैसे कायराना कदम उठाने वाले नहीं, कठिनाईयों से लड़ने वाले पाते हैं मुकाम
रास्ते में आने वाली मुश्किलों के आगे हार मानकर मौत को गले लगाने वाले समाज के आदर्श नहीं बनते। चुनौतियों को अवसर में बदलने वाले मंजिलाें को प्राप्त करते हैं। हमारे आसपास ऐसी प्रतिभाएं मौजूद हैं जिन्होंने कठिन परिस्थितयों के आगे हार नहीं मानी।
रांची [विश्वजीत भट्ट] । रास्ते में आने वाली मुश्किलों के आगे हार मानकर मौत को गले लगाने वाले समाज के आदर्श नहीं बनते। चुनौतियों को अवसर में बदलने वाले मंजिलाें को प्राप्त करते हैं। हमारे आसपास ऐसी प्रतिभाएं मौजूद हैं, जिन्होंने कठिन परिस्थितयों के आगे हार नहीं मानी। परेशाानियों को परिश्रम से मात देकर हालात को अपने पक्ष में बदल लिया। युवाओं के बीच बढ़ते अवसाद, तनाव के दौर में सफलता के शीर्ष पर मौजूद प्रतिभाएं प्रेरणाश्रोत हो सकती हैं। इनकी परेशानियों को जानकर ऐसा लगेगा कि आपकी मुश्किलें इसके आगे कहीं नहीं ठहरतीं। पेश से चुनौतियों से लड़कर आगे बढ़ने वाले कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व के संघर्ष और सफलता की कहानी।
आइपीएस : सुभाष चंद्र जाट
अगर आप सोचते हैं कि सफलता प्राप्त करने का कोई शॉटकट हो सकता है तो यह आपकी सबसे बड़ी गलतफहमी है। कठिन परिश्रम से ही सुखद परिणाम सामने आते हैं। नौवीं कक्षा तक पता नहीं था क्या करना है। पढ़ाई के प्रति कोई लगाव नहीं था। परिवार बोर्ड परीक्षा के परिणाम को लेकर डरा हुआ था। खुद अपने अंदर यह विश्वास नहीं था कि आगे कुछ बेहतर कर सकूंगा। 10 वीं की कक्षा में शिक्षक राधेश्याम माथुर मिले। उनसे बहुत लगाव हो गया। उन्होंने सबसे पहले मेरे अंदर आत्मविश्वास पैदा किया। यह बताया कि दूसरे विद्यार्थियों की तरफ बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता मेरे अंदर मौजूद है।
स्कूल में मन लगाकर पढ़ाई करने के साथ मेहनत करना शुरू किया। होमवर्क को पहले बोझ समझता था। फिर इसे अध्ययन की आवश्यकता मानने लगा। नौवीं तक पढ़ाई को बोझ समझने वाले विद्यार्थी रहा। 10वीं में स्कूल टॉपर बना। ऐसी कोई कमजोर नहीं थी, जो मेरे व्यक्तित्च में नहीं थे। बचपन में मेरे व्यक्तित्व को देखकर कोई मेरे करियर का अनुमान नहीं लगा सकता था। अच्छे शिक्षक के सानिध्य में आने के बाद और उनकी प्रेरणा से मेरे अंदर बदलाव आया। खूब कठिन परिश्रम किया। गांव के बगल के राजकीय उच्च-माध्यमिक विद्यालय से 12वीं तक पढ़ा। आज इस मुकाम पर पहुंच गया।
आइएएस : चंदन कुमार
नवोदय विद्यालय से पढ़ा। गणित बहुत अच्छा था, पर अंग्रेजी बहुत कमजोर थी। 11वीं कक्षा तक मेरे अंग्रेजी शिक्षक ने खूब डांटा। चूंकि हिंदी मीडियम से पढ़ा हूं, इसलिए कड़ी मेहनत करके अंग्रेजी सुधारी। पूरी पढ़ाई के दौरान कक्षा में प्रथम आने के लिए जूझता रहा, लेकिन दूसरे स्थान पर ही अटक जाता था। इसी के कारण सफलता की भूख बाकी रह गई। मेरे पिता रामेश्वर मोदी कहते हैं कि सफलता का आकलन पैसा कमाने और सलामी ठोकने वालों से कभी नहीं हो सकता।
आकलन इससे होता है कि आप कितने लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला पाए। 2011 में टाटा स्टील में नोवामुंडी में नौकरी करते वक्त ही समझ में आ गया था कि जीवन का ड्राइविंग फोर्स पैसा नहीं है। उसी समय तय कर लिया कि समाज के लिए कुछ अच्छा करना है और सिविल सेवा में जाना है। एजुकेशन लोन लेकर तैयारी की और 2015 में तीसरे प्रयास में सिविल सेवा के लिए चुना गया। आठवीं-नौवीं कक्षा तक कॉमिक्स पढ़ने की लत थी। खूब डांट पड़ती थी। कक्षा पांच में स्कूल बंक करके और स्कूल बैग लेकर सिनेमा देखने भाग गया था। खूब पिटाई हुई।