अब ‘ऑफिस-ऑफिस’ नहीं दौड़ते मुसद्दीलाल...टि्वटर की चिड़िया चला रही सरकार
डॉक्टरी सहायता बिजली-पानी से लेकर सड़क और बुनियादी जरूरतों को लेकर सीएम हेमंत सोरेन को ट्वीट कीजिए फिर देखिए एक्शन कैसे अफसर रेस हो जाते हैं...
रांची, [जागरण स्पेशल]। Weekly News Roundup Ranchi झारखंड की नई सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन सोशल मीडिया केे बड़े और बेबाक प्लेटफॉर्म टि्वटर पर खासे एक्टिव हैं, ट्वीट पर ट्वीट, रीट्वीट और टैग-हैशटैग के जरिये फटाफट अंदाज मेें फरियादियों की समस्याएं निपटाई जा रही हैं| लोकप्रिय टीवी शो ऑफिस -ऑफिस के जाने-माने कैरेक्टर मुसद्दीलाल की धक्के खाने और चक्कर काटने वाली नियति से लोगों को छुुुटकारा मिलता दिख रहा है। अपने खास कॉलम ऑफिस-ऑफिस में बता रहे राज्य ब्यूरो के संवाददाता नीरज अंबष्ठ
नई मुसीबत बनकर आई टि्वटर
आजकल अफसरों के लिए ट्विटर नई मुसीबत बनकर आई है। पता नहीं सीएम का कब कोई ट्वीट उनके लिए आदेश बनकर आ जाए। अब तो एक-दो मंत्री जी भी इसपर रेस हो गए हैं। सो, फाइलों से अधिक अब ट्विटर पर जोर दिया जा रहा है। अभी तो सीएम साहेब का अधिसंख्य ट्वीट उपायुक्तों के लिए हो रहा है, लेकिन अलर्ट मुख्यालय के पदाधिकारी हो गए हैं। कुछ ऐसे पदाधिकारी भी हैं जो अभी तक इससे दूरी बनाए हुए थे। लेकिन अब स्वयं ट्वीट कर रहे हैं। कुछ तो अभी तक इसे हैंडल नहीं कर रहे थे, लेकिन अब इसे हैंडल करना सीख रहे हैं। दिक्कत तो जिलों के छोटे अफसरों और बाबुओं को हो गई है। अब तो मुख्यालय के पदाधिकारी भी ट्वीट कर क्षेत्र की समस्याएं गिना रहे हैं। आदेश भी दे रहे हैं। यह ट्विटर उनके लिए नई मुसीबत बन गई है।
खिल उठे चेहरे
राज्य सरकार ने खजाने के हालात संभलते ही ट्रेजरी पर लगी रोक हटा ली है। यह मैसेज जंगल में आग की तरह पूरे राज्य में फैल गया है। ठेकेदार से लेकर सरकारी महकमे के अफसरों और कर्मचारियों के चेहरे खिल उठे हैं। फोन पर एक दूसरे को बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया है। खुशियां बेकाबू हो उठी हैं और हो भी क्यों न। ठेकेदारों के वाजिब गैर वाजिब बिलों का भुगतान कई हस्ताक्षर नुमा चिडिय़ा बैठाने वालों को भी कुछ न कुछ दे ही जाएगा। ये तमाम लोग कल तक सरकार को पानी पी-पी कर कोस रहे थे। अब तारीफों के पुल बांध रहे हैं। दरअसल, नई सरकार ने प्रभार ग्रहण करने के साथ ही खजाने का खस्ताहाल देखते हुए ट्रेजरी के बड़े बिलों के भुगतान पर रोक लगा दी थी। इससे कई विभागों का खर्च मीटर भी गिर गया था।
बढ़ी हुई हैं धड़कनें
पिछली सरकार की मेहरबानी से जिलों के मुखिया बने कुछ अफसरों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। कब जिले से कमान कट जाएगा और मुख्यालय में योगदान करने को कह दिया जाएगा, पता नहीं। यह सोचकर मन नहीं लग रहा है। रोज पता कर रहे हैं, मुख्यालय में क्या हो रहा है? किसे कहां भेजा जा रहा है? इधर, जो अफसर पिछली सरकार में पिछली सीट पर बैठे थे, अचानक रेस हो गए हैं। मंत्रियों के यहां उनका आना-जाना शुरू हो गया है। ऐसे ही एक साहब पिछले दिनों नेपाल हाउस में दिखे। गुलदस्ता लेकर दवा-दारू वाले मंत्री जी से मिलने पहुंचे थे। मंत्री जी के यहां प्रेस कान्फ्रेंस चल रही थी, सो मुलाकात के लिए लंबा इंतजार करना पड़ गया। किसी तरह उनका नंबर आया तो मुलाकात हो गई। लेकिन भीड़भाड़ इतनी थी कि अपनी मन की बात भी मंत्री जी से बता नहीं सके।
पहले सदस्य, अब अध्यक्ष नहीं
राज्य में फार्मेसी काउंसिल की नीति-गति शुरू से ही ठीक-ठाक नहीं रही है। पहले रजिस्ट्रार की मेहरबानी से काउंसिल बना ही नहीं। जब बना तो आठ साल इसका गठन होने नहीं दिया। काउंसिल के गठन को लेकर वर्ष 2012 में ही नियमावली बन गई थी। सदस्यों का चुनाव 2020 में हुआ। चुनाव पर भी विवाद खूब हुआ। अब जब सदस्य निर्वाचित हो गए तो अध्यक्ष पर ही आफत आ गई। नई सरकार के मंत्री ने अध्यक्ष महोदय को बाहर का रास्ता दिखा दिया। वैसे अध्यक्ष महोदय भी चिकित्सा सेवा के रिटायर अफसर तो थे, लेकिन अध्यक्ष बनने के लिए आवश्यक योग्यता नहीं रखते थे, क्योंकि वे फार्मासिस्ट नहीं थे। जो भी हो, अब देखना है कि अध्यक्ष का निर्वाचन कितने दिन में होता है। धीमी रफ्तार से फैसले के अभ्यस्त यहां के लोग उम्मीद पाले हैं कि शायद इस बार जल्दी फैसला हो, 2020 में नाम का तो असर दिखना ही चाहिए।