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Weekly News Roundup Ranchi: यहां उत्सवी माहौल में भी सियासी तपिश, जानें हफ्तेभर की राजनीतिक गतिविधियां

Weekly News Roundup Ranchi. पूजा पंडालों से लेकर रामलीला मैदानों तक कार्यकर्ताओं की धमा-चौकड़ी बाखूबी दिखी। आसन्न चुनाव में टिकट के दावेदार भी पंडाल दर पंडाल घूमकर शीश नवा रहे थे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 04:58 PM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2019 07:12 PM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: यहां उत्सवी माहौल में भी सियासी तपिश, जानें हफ्तेभर की राजनीतिक गतिविधियां
Weekly News Roundup Ranchi: यहां उत्सवी माहौल में भी सियासी तपिश, जानें हफ्तेभर की राजनीतिक गतिविधियां

रांची, [प्रदीप शुक्ला]। Weekly News Roundup Ranchi भक्तों ने मां दुर्गा को अगले बरस फिर आने का वादा लेकर विदा कर दिया है। हर बरस की तरह इस बार भी दशानन को जला दिया गया है। राज्यभर में इस उत्सवी माहौल को भुनाने में भला राजनीतिक दल कहां पीछे रहने वाले थे। पूजा पंडालों से लेकर रामलीला मैदानों तक कार्यकर्ताओं की धमा-चौकड़ी बाखूबी दिखी। आसन्न चुनाव में टिकट के दावेदार भी पंडाल दर पंडाल घूमकर शीश नवा रहे थे। आशीष मांग रहे थे, मां का भी और भक्तों का भी, लेकिन उनका ध्यान शायद इस ओर नहीं गया होगा, मां क्या चाह रही हैं? हर जगह मुंह बाए खड़े दशाननों का अंत कब होगा?

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पूजा खत्म हो गई है। राजनीतिक दल अब पंडालों से निकलकर फिर गली-चौराहों से लेकर गांव की पगडंडियों को नापेंगे। एक-दूसरे पर कीचड़ उछालेंगे, लेकिन पंडालों से निकले संदेशों पर चर्चा तो दूर चूं भी नहीं करेंगे। क्योंकि ऐसा करने से कहीं न कहीं उंगली उन्हीं पर उठेगी। हर कोई गाल बजाएगा, दुहाई देगा, वही राज्य और प्रजा के हितैषी हैं, लेकिन असल मुद्दों को छुएंगे तक नहीं। पूजा पंडालों में छिपे संदेशों पर बहस का उनमें साहस नहीं है।

क्योंकि भ्रूण हत्या से लेकर प्रदूषण तक, नदियों की पीड़ा से लेकर महिला सुरक्षा तक..। कहीं न कहीं वह जिम्मेदार जो हैं। देश में औसत से ज्यादा बारिश हुई है लेकिन झारखंड के तमाम जिलों में इस बार सामान्य से कम बारिश हुई है। यहां के बांधों में पानी का उतना संचयन नहीं हुआ है जितना होना चाहिए था। इसके परिणाम अगले साल गरमी में भयावह जलसंकट के रूप में दिखेगा।

जनता नेताओं के घर दौड़ रही होगी, और नेताजी कह रहे होंगे, सड़क से लेकर विधानसभा तक मामला उठाऊंगा, लेकिन पानी आएगा कहां से? यह न वह तब बता पाएंगे और न ही अभी उन्हें इसकी चिंता है। यह तब है जब संकट पेयजल से आंगे जा चुका है। औद्योगिक कारखानों के सामने भी पानी का संकट खड़ा होने लगा है। उत्पादन प्रभावित होने लगा है।

राज्य के कई हिस्सों में पानी के संकट के चलते लोगों को पलायन तक करना पड़ रहा है। बीती गरमी में जमशेदपुर के आदित्यपुर और रांची के ही टैगोर हिल इलाके में लोगों को अपने मकान बंद कर दूसरी जगह किराये पर रहने पर मजबूर होना पड़ा था। कृषि का हाल तो किसी से छुपा ही नहीं है। रबी सीजन में राज्य में लाखों हैक्टेयर भूमि पर पानी के अभाव में फसल बोई ही नहीं जाती है।

इसी तरह प्रदूषण भी चुनावी मुद्दा नहीं है। लोग मर रहे हैं तो मरे लेकिन अधिकांश राजनीतिक दलों को इसमें कोई रुचि नहीं होती है। जल-जंगल-जमीन की बात खूब होगी, लेकिन हकीकत में अधिकांश दलों को इसकी चिंता नहीं है, क्योंकि यह मतदाताओं को लुभाता नहीं है।


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