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समर्पित भाव से कर्म करना हमारी कर्मठता और भक्ति है : विशल्यसागर महराज

भगवान महावीर का संदेश देते हुए जैन मुनि विशल्यसागर महाराज ने कहा कि मुर्छा तोड़ो समर्पित भाव से कर्म करो अनासक्ति पूर्वक जीयो। धर्म और अध्यात्म का यह व्यावहारिक रूप है। मुर्छा का टूटना ही सांसारिक व्यामोह और आसक्ति से मुक्ति है।

By Kanchan SinghEdited By: Published: Tue, 12 Oct 2021 10:46 AM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 10:46 AM (IST)
भगवान महावीर का संदेश देते हुए जैन मुनि विशल्यसागर महाराज ने कहा कि मुर्छा तोड़ो, समर्पित भाव से कर्म करो।

रांची, जासं । भगवान महावीर का संदेश देते हुए जैन मुनि विशल्यसागर महाराज ने कहा कि मुर्छा तोड़ो, समर्पित भाव से कर्म करो, अनासक्ति पूर्वक जीयो। धर्म और अध्यात्म का यह व्यावहारिक रूप है। मुर्छा का टूटना ही सांसारिक व्यामोह और आसक्ति से मुक्ति है। समर्पित भाव से कर्म करना हमारी कर्मठता और भक्ति है। कर्म हमारा पुरुषार्थ है, भगवान कहते हैं कर्म ही तुम्हारा अधिकार है। हर व्यक्ति की यह मंशा रहती है कि वह जो कर्म कर रहा है, उसका उसे फल मिले। लोग कर्म जितना फल चाहें, वहां तक तो ठीक है

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दो -पांच रुपये की लॉटरी के टिकट खरीदकर  लाखों करोड़ों की इच्छा रखते हैं। लॉटरी न लगने पर भगवान को कोसने लगते हैं। यह वास्तव में भक्ति नहीं मूर्खता और अंधापन है। जीवन की तीन अवस्थाएं है जागृत अवस्था, सुप्तावस्था और स्वप्नवस्था सबसे। हमें तो जागृत अवस्था में जीना है। अधिकांश लोग स्वप्न में जीते हैं। उनका पूरा जीवन स्वप्नवस्था में बीत जाता है। जो काम आदमी जागृत अवस्था में पूरे नहीं कर पाता, उन्हें सपनों में पूरा करता है। दिन के उजाले में तो हम उनका यह इजहार नहीं कर सकते, मगर रात में उन्हें स्वप्न में देखकर हम आनंद की अनुभूति करते हैं।

इससे पूर्व के प्रवचन में जैन मुनि विशल्यसागर ने कहा था कि मनुष्य हर पल गतिमान रहता है। जहां रुकावट या ठहराव आ जाता है, वहां जीवन समाप्त हो जाता है। एक जीवन की समाप्ति दूसरे जीवन की शुरुआत होती है। यहां हर व्यक्ति यात्रा कर रहा है। आप, मैं, हम सभी यात्रा पर हैं। संसार में जितने भी प्राणी प्राणी हैं, वह सब यात्रा पर हैं। इस यात्रा में किसी को आज तो किसी को कल मंजिल मिलने वाली है। यहां हर कोई मंजिल की तलाश में है। कोई आज जा रहा है, कोई कल जा रहा है। सब पंक्ति में लगे हैं ।आज जिस कोठी में बैठे हो, कल वहां से आपका बोरिया -बिस्तर बंधने वाला है । मनुष्य को जन्म के साथ ही यहां से वापस जाने का टिकट भी मिला हुआ है। रोते हुए आने वाले मनुष्य को हंसते हुए जाना है या रोते हुए, यह उसी पर निर्भर करता है। हंसते हुए जाओगे तो जीवन सफल होगा और रोते हुए जाओगे तो जीवन अभिशाप बना रहेगा।


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