Vat Savitri Katha: जानिए, सावित्री और सत्यवान की कहानी... क्यों होती है वट वृक्ष की पूजा... क्यों सुहागिनें सुनतीं हैं कथा
Vat Savitri Vrat 2022 वट सावित्री पूजा इस बार सोमवार को मनाया जाएगा। इसके लिए घर-घर महिलाओं ने तैयारी कर रखी है। महिलाएं सोमवार को व्रत रखेंगी। सावित्रि और सत्यवान की कथा श्रवण करेंगी। आइए जानते हैं सावित्री और सत्यवान की पूरी कहानी।
रांची, डिजिटल डेस्क। भद्र नामक एक देश था। वहां के राजा कर नाम था अश्वपति। ईश्वर ने उन्हें कोई संतान नहीं दिया था। वह बहुत चिंतित रहा करते थे। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने मंत्रोच्चारण के साथ हर दिन एक लाख आहुतियां दीं। यह सिलसिला 18 साल तक चलता रहा। उनके इस तपस्या से प्रसन्न होकर एक दिन सावित्री देवी ने प्रकट हुईं। उन्होंने राजा को वर दिया- राजन तुम्हे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।
सावित्री देवी के वरदान स्वरूप कन्या पैदा हुई। राजा बहुत खुश थे। उनका सपना पूरा हो गया था। उनके चेहरे पर खुशियां लौट आई थीं। राजा ने अपनी कन्या का नाम रखा- सावित्री। वह जब बड़ी हुई तो बेहद रूपवान हुई। हर तरफ उसके रूप की चर्चा होती। राजा गर्व महसूस करते थे। लेकिन अपनी बेटी के लायक योग्य वर नहीं मिलने से राजा दुखी रहने लगे। उन्होंने अपनी पुत्री से कहा- तुम अपना वर खुद तलाश करो।
सावित्री वर की तलाश में तपोवन में भटकने लगी। कई दिनों तक भटकने के बाद सावित्री को वर मिल ही गया- सत्यवान। दरअसल, साल्व देश के राजा द्युमत्सेन का राजपाट किसी ने उनसे छीन लिया था। उन्हीं राजा के पुत्र थे सत्यवान। देखते ही सावित्री ने सत्यवान को मन ही मन पति स्वीकार कर लिया। पिता अश्वपति ने भी सावित्री के फैसले का सम्मान किया।
उधर, जब नारद को पता चला कि सावित्री ने सत्यवान को पति चुन लिया है तो वह भागे भागे राजा अश्वपति के दरबार में पहुंच गए। राजा से उन्होंने कहा- हे राजन! आप यह क्या कर रहे हैं? सत्यवान गुणवान है, धर्मात्मा है और बलवान भी, लेकिन उसकी आयु कम है। एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति चिंता में डूब गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पिता के उदास चेहरे को देखकर सावित्री ने पूछा- पिता जी, क्या बात है...। आप चिंतित क्यों नजर आ रहे हैं?
राजा पिता ने सावित्री की करा दी शादी
राजा अश्वपति ने सावित्री से कहा- पुत्री तुमने जिस राजकुमार सत्यवान को अपना वर चुना है, उसकी उम्र बहुत कम है। एक साल बाद उसकी मृत्यु तय है। राजा ने पुत्री को सलाह दी- तुम कोई और वर तलाश लो। तुम किसी और को अपना जीवन साथी बना लो...। इतना सुनते ही सावित्री ने जवाब दिया- पिता जी, आर्य कन्याएं सिर्फ एक बार ही पति का चुनाव करती हैं। राजा एक बार ही आज्ञा देता है। पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं। यहां तक की कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। पिता ने सावित्री को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन सावित्री हठ करने लगीं। सावित्री ने दो टूक कह दिया- मैं सिर्फ सत्यवान से ही शादी करूंगी। अंतत: सबकुछ जानते हुए पिता ने पुत्री सावित्री की शादी सत्यवान से कर दी।
शादी के बाद ससुराल चली गई सावित्री
राजा पिता के घर से विदा होकर सावित्री ससुराल चली गई। अपने सास-ससुर की सेवा करने लगी। वक्त बीतने लगा। जैसे-जैसे मृत्यु के दिन करीब आने लगे सावित्री की बेचैनी बढ़ने लगी। सावित्री ने तीन दिन पहले ही उपवास प्रारंभ कर दिया। उधर, हर दिन की तरह सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने चला गया। साथ में सावित्री भी गई थी। सत्यवान एक पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काट रहे थे तभी सिर में तेज दर्द हुआ। बर्दाश्त नहीं हुआ तो नीचे उतर आए। सावित्री अब सबकुछ समझ चुकी थी। सत्यवान का सिर गोद में लेकर वह सहलाने लगी। इसी बीच यमराज आए। सत्यवान को लेकर जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज ने सावित्री को समझाया कि यह विधि का विधान है। लेकिन सावित्री कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी। वह यमराज के पीछे-पीछे चलती रही। पति के प्रति इस प्यार को देखकर यमराज ने कहा- तुम धन्य हो देवी। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांग सकती हो।
सावित्री ने यमराज से मांगा तीन वरदान
सावित्री ने इस अवसर का लाभ उठाया। पहला वर मांगा कि सास-ससुर की आंखों को रोशनी मिल जाए। यमराज ने कहा- रौशनी लौट आएगी। जाओ अब लौट जाओ। बावजूद सावित्री यमराज का पीछा करती रही। यमराज ने कहा- तुम चले जाओ। सावित्री ने कहा- मुझे अपने पति के पीछे पीछे चलने में कोई दिक्कत नहीं है। पति के पीछे चलना तो मेरा कर्तव्य है। सावित्री की यह बात सुनकर यमराज ने कहा- एक और वर मांग सकती हो। सावित्री ने दूसरा वर मांगा- ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने वरदान दे दिया। कहा- अब तुम लौट जाओ। बावजूद सावित्री उनके पीछे पीछे चलती रही। यमराज ने कहा- अच्छा चलो, तीसरा वर मांग लो। सावित्री ने कहा कि मुझे 100 संतान चाहिए। यमराज ने यह वरदान भी दे दिया। बावजूद वह यमराज के पीछे पीछे चलती रही। यमराज ने पुन: टोका- अब तो चली जाओ। सावित्री ने यमराज से कहा- मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं। आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यमराज समझ गए। उन्होंने अंतत: सत्यवान के प्राण छोड़ दिए। सत्यवान जिंदा हो गया।