अधिक देर तक मोबाइल चलाने से आंखों पर पड़ता है असर, बच्चों पर रखें विशेष ध्यान Ranchi News
Effect of Smartphone on eyes. आंखों के चारों ओर अगर इंद्रधनुषी सा दिखे तो यह ग्लूकोमा का लक्षण हो सकता है। एक अरब 40 करोड़ लोगों को अभी दृष्टि दोष है।
रांची, जासं। बच्चों को दो घंटे से अधिक टीवी और मोबाइल न चलाने दें। नियमित अंतराल पर अपनी आंखों की जांच कराएं। किताब और आंखों के बीच एक नियमित दूरी बनाकर पढ़ाई करें अन्यथा बच्चे को मायोपिया हो सकता हैं। स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पूरे विश्व में मायोपिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आज विश्वभर में एक अरब चालीस करोड़ लोगों को निकट दृष्टि दोष है, 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर पांच अरब हो जाएगा।
इनमें से लगभग दस प्रतिशत लोगों का मायोपिया इतना गंभीर होगा कि उनके लिए दृष्टिहीनता खतरा बढ़ जाता है। यह बातें ग्वालियर के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. पूर्णेंदु भसीन ने झारखंड ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी एवं रांची ओप्थाल्मिक फोरम के संयुक्त तत्वधान में ऑल इंडिया ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी की एकेडमिक रीसर्च कमेटी द्वारा मोतियाबिंद एवं ग्लूकोमा पर कांके में आयोजित कार्यशाला में कही।
गांवों से मरीजों से जुडऩे की है जरूरत : संजय सेठ
कार्यशाला का उद्घाटन रांची के सांसद संजय सेठ ने करते हुए सभी डॉक्टरों से अनुरोध किया की वह गांवों के मरीजों से जुड़ें ताकि उनकी मृत्यु के बाद भी लोग उन्हें याद करें। झारखंड ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि मुझे गर्व के साथ यह बताते हुए खुशी महसूस हो रही है की ऑल इंडिया ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी की एकेडमिक रिसर्च कमेटी के द्वारा पैन इंडिया डायबिटिक रेटिनोपैथी रिसर्च अभियान ज्योत से ज्योत जलाओ के लिए सबसे ज्यादा डायबिटिज के मरीजों की आखों का डाटा झारखंड के विट्रियो रेटिना सर्जन डॉ. बिभूती कश्यप ने झारखंड के विभिन्न इलाकों में लगाए गए कैंपों से उपलब्ध कराया है।
दृष्टिहीनता का दूसरा बड़ा कारण ग्लूकोमा है
डॉ. तनुजा काटे ने कहा कि ग्लूकोमा दृष्टिहीनता का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन कर उभर रहा है। इसमें 90 फीसदी मरीज को समय पर पता ही नहीं चलता है कि उसे यह बीमारी हुई है। जब रोशनी चली जाती है, तब मरीज को पता चलता है। आंखों के चारों ओर अगर इंद्रधनुषी सा दिखे तो यह ग्लूकोमा का लक्षण हो सकता है। चारों ओर इंद्रधनुषी गोले दिखें तो ग्लूकोमा हो सकता है। मोतियाबिंद सत्र की अध्यक्षता डॉ. बीपी कश्यप, डॉ. बिभूती भूषण, डॉ. वंदना प्रसाद ने की।
मोतियाबिंद के पहले एवं दूसरे सत्र में डॉ. भारती कश्यप, डॉ. बिभूति भूषण, डॉ. सागर भार्गव, डॉ. पुरेन्द्र भसीन, डॉ. मलय द्विवेदी, एसके मित्रा ने अपना साइंटिफिक पेपर प्रस्तुत किया। डॉ. बीपी कश्यप ने भी मोतियाबिंद सर्जरी के दौरान आंखों के बढ़े हुए प्रेशर पर प्रकाश डाला। इस सेमिनार में ग्वालियर के डॉ. पुरेन्द्र भसीन, कोलकाता के डॉ. सागर भार्गव, इंदौर की डॉ. तनूजा काटे, डॉ राजीव, डॉ नीरज सहित अन्य उपस्थित थे।