मुंडाओं की भूमि पर बह रही बेचैनी भरी हवा
पत्थलगड़ी का बदला स्वरूप, संविधान की मनमानी व्याख्या से बढ़ा प्रशासन से टकराव।
प्रवीण प्रियदर्शी, रांची : लैंड ऑफ मुंडाज के नाम से विख्यात वर्तमान खूंटी व आसपास के अन्य जिलों के लोग इन दिनों अजब सी बेचैनी भरी हवा में सांस ले रहे हैं। पारंपरिक रूप से आदिवासी समाज में प्रचलित पत्थलगड़ी को वर्तमान में ऐसा रूप दिया गया जिससे देश की संप्रभुता पर ही सवाल उठाने की परिपाटी चल पड़ी। आदिवासियों की विभिन्न सरकारों से ढेरों शिकायतें रही हैं।
संविधान प्रदत्त उनके अधिकारों की रक्षा नहीं किए जाने या अनदेखी करने का सवाल आज किसी से छिपा नहीं है। जल, जंगल और जमीन को लेकर उनकी पीड़ा और दर्द को आधार बनाते हुए विभिन्न संगठन उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा से अलग करने में सक्रिय हो गए। इसके लिए संविधान की मनमानी व्याख्या होने लगी। मुंडाओं के संघर्ष की भूमि में अफीम की फसल लहलहाने लगी। अफीम से आई नकली समृद्धि के लालच में हथियारबंद संगठनों के इशारे पर ग्रामीण व्यवस्था संचालित होने लगी।
ग्रामसभा ऐसे संगठनों के आदेश लागू करने को मजबूर हो गए। ऐसे संगठनों की निर्बाध हुकूमत के लिए ग्रामसभा की स्वायत्तता के नाम पर राजसत्ता, संवैधानिक संस्थाओं, पुलिस आदि के इकबाल को ही खुली चुनौती दी जाने लगी। कई गांवों में ग्रामसभा की अनुमति लिए बिना पुलिस या बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। बिरसा की पवित्र भूमि पर देश के खिलाफ ऐसी जहरीली हवा ने सभी को बेचैन कर दिया।
पहले पुलिस को बनाया बंधक, अब कर लिया अगवा :
करीब तीन माह पूर्व खूंटी के कांकी में पुलिस को घेर कर ग्रामसभा की अनुमति लिए बगैर प्रवेश करने पर बेइज्जत किया गया। वहीं अड़की के कुरूंगा में एसपी सहित 250 पुलिस जवानों को 24 घंटे तक बंधक बना कर रखा गया। प्रशासन और पुलिस ने ग्रामसभा के सामने समर्पण कर बंधकों को मुक्त तो कराया लेकिन आपसी अविश्वास की गहरी खाई बन गई।
वहीं पत्थलगड़ी गांवों से निकल थाना और शहर तक पहुंच गई। इससे पत्थलगड़ी समर्थक और पुलिस में टकराव तेज हो गया। मंगलवार को तो हद ही हो गई जब पत्थलगड़ी समर्थकों ने पूर्व केंद्रीय मंत्री, लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष व सांसद कड़िया मुंडा के आवास से तीन गृह रक्षकों को हथियार सहित अगवा कर लिया।
सरकार के सामने अवसर भी चुनौती भी :
इसके बाद प्रशासन ने निर्णायक कार्रवाई का निर्णय लिया। बुधवार की सुबह पुलिस ने पूर्व की गलती से सबक लेते हुए घाघरा गांव की न सिर्फ घेराबंदी की, बल्कि अन्य संपर्क पथों पर भी चौकसी बढ़ा दी। पत्थलगड़ी समर्थकों पर कड़ी कार्रवाई की गई, कई घायल हुए, कई हिरासत में लिए गए। वहीं युवक की जान भी चली गई।
लेकिन प्रशासन ने अपना इकबाल कायम किया और प्रतिगामी सोच को गहरा झटका दिया। वैसे अभी भी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना शेष है। लोगों की शिकायतों को दूर करने के साथ ही सरकारी योजनाएं प्रभावी ढंग से कैसे पिछड़े इलाकों में पहुंचे, कानून व्यवस्था कैसे सुचारू रूप से अपना काम करे यह सभी लोकतंत्र प्रेमियों के लिए बड़ा सवाल रहेगा।