फिटनेस जांच के बगैर चल रहीं हजारों गाड़ियां
राज्य में बड़े पैमाने पर अनफिट वाहनों को सरपट दौड़ते देखा जा सकता है। इन वाहनों की जांच के लिए बनी व्यवस्था पहले से ही ध्वस्त है। सोचा जा सकता है कि 24 जिलों के वाहनों की जांच आखिर दो जिलों में कैसे हो सकती है। इसमें भी दोनों जिलों में सेंटर एक साथ संचालित हों ऐसा देखा नहीं जा रहा।
रांची : राज्य में बड़े पैमाने पर अनफिट वाहनों को सरपट दौड़ते देखा जा सकता है। इन वाहनों की जांच के लिए बनी व्यवस्था पहले से ही ध्वस्त है। सोचा जा सकता है कि 24 जिलों के वाहनों की जांच आखिर दो जिलों में कैसे हो सकती है। इसमें भी दोनों जिलों में सेंटर एक साथ संचालित हों, ऐसा देखा नहीं जा रहा। रांची में सेंटर बंद ही रह रहा है और ऐसे में लोगों को धनबाद से फिटनेस प्रमाणपत्र लाना पड़ता है। सरकार की यही व्यवस्था है। अब आप चाहे जैसे भी लेकर आएं। सड़कों पर दुर्घटनाओं और इसके माध्यम से लोगों की जान जाने का सबसे महत्वपूर्ण कारण वाहनों का फिटनेस ही है। बड़े और जर्जर वाहनों के कारण हो रहे हादसों में मरनेवालों की संख्या भी अधिक होती है।
ऐसा नहीं है कि सरकार के संज्ञान में यह जानकारी नहीं है लेकिन व्यवस्था में सुधार प्राथमिकता में नहीं है। राज्य सरकार अब अपने बूते ऐसे केंद्रों का संचालन नहीं करना चाहती है। प्राइवेट पार्टनर के सहयोग से चलनेवाले इन केंद्रों के लिए निवेशक सामने भी नहीं आ रहे हैं। बात छोटे वाहनों की करें तो खरीदारी के बाद शायद ही कभी इनके फिटनेस की जांच होती है। कार, बाइक, स्कूटर आदि की फिटनेस की जांच उनकी खरीदारी के बाद से अंत होने तक नहीं होती है। हां, वाहनों के निबंधन के वक्त इसकी औपचारिकता जरूर निभाई जाती है। आरटीओ और अन्य अधिकारी भी वाहनों की जांच के नाम पर ओनर बुक और ड्राइविग लाइसेंस की जांच तक सीमित रहते हैं। फॉग लाइट, हेड लाइट, बैक-ब्रेक लाइट आदि की कभी जांच ही नहीं होती। यह तो वाहन मालिक अपने स्तर से जांच करा लें तो मेहरबानी समझिए, सरकार कराने से रही। इस मामले में परिवहन सचिव अपने स्तर से जांच केंद्रों की संख्या बढ़ाने की बात कह रहे हैं।