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झारखंड में दो साइबर अपराधी गिरफ्तार, इस तरह करते थे ठगी Ranchi News

Jharkhand. रांची पुलिस ने एनी डेस्क एप के जरिये खाते से रुपये उड़ाने वाले दो साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया है। इनके पास से 15 हजार रुपये और 20 पेटीएम कार्ड भी बरामद किए हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 03 Jul 2019 12:13 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jul 2019 08:37 PM (IST)
झारखंड में दो साइबर अपराधी गिरफ्तार, इस तरह करते थे ठगी Ranchi News
झारखंड में दो साइबर अपराधी गिरफ्तार, इस तरह करते थे ठगी Ranchi News

रांची, जासं। रांची पुलिस ने बुधवार को दो साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया है। इन पर 25 हजार रुपये ठगी का आरोप है। ये साइबर अपराधी एनी डेस्क एप के जरिये ठगी करते थे। लोगों से एप डाउनलोड करवा कर रिमोट कंट्रोल के जरिये खाते से रुपये उड़ा लेते थे। रांची के कांके रोड के रहने वाले व्यवसायी सत्येंद्र किशोर से अपराधियों ने ठगी की थी। पकड़े गए अपराधियों में जामताड़ा निवासी विवेक कुमार मंडल और देवघर के वासी आमिर खुसरो शामिल हैं।
पकड़े गए अपराधियों के पास से 20 पेटीएम कार्ड, 20 फर्जी सिम, 5 मोबाइल और नगद 15000 रुपये बरामद किए गए हैं। रांची एसएसपी अनीश गुप्ता ने प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी जानकारी दी। एसएसपी ने बताया कि गिरोह के चार अन्य अपराधियों की पहचान हुई है। उनकी तलाश में छापेमारी की जा रही है।

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अपराधियों के पास से बरामद पेटीएम कार्ड।

ऐसे करते हैं ठगी
एनी डेस्क एप मोबाइल में इंस्टॉल करते ही संबंधित मोबाइल साइबर अपराधियों के कंट्रोल में हो जाता है। इसके बाद वे आसानी से ई-वॉलेट, यूपीआइ एप सहित अन्य बैंक खातों से जुड़े सभी एप को आसानी से ऑपरेट कर रुपये उड़ा लेते हैं। जब कोई व्यक्ति बैंक से मदद के लिए गूगल पर टोल-फ्री नंबर ढूंढकर कॉल करता है, तब वे संबंधित व्यक्ति के नंबर पर वापस कॉल कर उसे मदद के नाम पर झांसे में लेते हैं। इस एप को साइबर अपराधी आम आदमी से मदद के नाम पर डाउनलोड करवाते हैं। इसके बाद मोबाइल पर वे कब्जा जमा लेते हैं।
गूगल पर कस्टमाइज्ड कर रखे हैं नंबर
साइबर अपराधियों ने अपने नंबर टॉल-फ्री नंबरों की जगह को कस्टमाइज्ड कर रखा है। इससे कोई भी व्यक्ति तकनीकी मदद या बैंक सेवाओं से संबंधित कार्य के लिए कॉल कर साइबर अपराधियों के झांसे में आ रहा है। कॉल करने वाले को वे बैंक अधिकारी समझते हैं, जबकि वे साइबर अपराधियों से बातचीत कर रहे होते हैं।
मांगे जाते हैं नौ अंकों के कोड
यह एप डाउनलोड किए जाने के बाद नौ अंकों का एक कोड जेनरेट होता है। जिसे साइबर अपराधी शेयर करने के लिए कहते हैं। जब यह कोड अपराधी अपने मोबाइल फोन में फीड करता है तो संबंधित व्यक्ति के मोबाइल फोन का रिमोट कंट्रोल अपराधी के पास चला जाता है। वह उससे एक्सेस करने की अनुमति ले लेता है। अनुमति मिलने के बाद अपराधी धारक के फोन का सारा डेटा चोरी कर लेता है। वह इसके माध्यम से यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआइ) सहित अन्य वॉलेट से रुपये उड़ा लेता है।
आरबीआइ ने बैंकों को दिए हैं निर्देश
आरबीआइ ने बैंकों को निर्देश दिया है कि वो लोगों को एनी डेस्क एप के जरिये होने वाले धोखाधड़ी को लेकर जागरूक करें। क्योंकि अधिकतर लोग ऑनलाइन ट्रांजेक्शन से ही लेन-देन कर रहे हैं। ऐसे में लोगों को इस धोखाधड़ी से बचाया जाना चाहिए।


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