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अगर आपके बच्चों को भी है टीवी और मोबाइल की लत, तो हो जाएं सावधान

अभिभावकों को ये सबसे पहले समझने की जरूरत है कि बच्चे 90 प्रतिशत वातावरण से सीखते हैं। बाकि 10 प्रतिशत उनमें अनुवांशिक रूप से आता है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 02 Jan 2020 02:38 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jan 2020 09:54 PM (IST)
अगर आपके बच्चों को भी है टीवी और मोबाइल की लत, तो हो जाएं सावधान
अगर आपके बच्चों को भी है टीवी और मोबाइल की लत, तो हो जाएं सावधान

रांची, जासं। लापरवाही, अस्थिरता, हर समय उछल कूद और आवेग बच्चों में होना सामान्य बात है। मगर आजकल बच्चों के व्यवहार में दिख रहा परिवर्तन अभिभावकों के लिए चिंता का विषय बनते जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक ध्यानाभाव एवं अतिसक्रियता विकार (एडीएचडी) से भारत में 20 में से एक बच्चा पीड़ित होता है। इस बारे में बात करते हुए चाइल्ड कॉउंसलर और मनोचिकित्सक डॉ नवीन कुमार ने बताया कि आजकल हमारी सोसाइटी और लाइफ स्टाइल में हो रहे बदलाव बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं। अभिभावकों को ये सबसे पहले समझने की जरूरत है कि बच्चे 90 प्रतिशत वातावरण से सीखते हैं। बाकि 10 प्रतिशत उनमें अनुवांशिक रूप से आता है। ऐसे में टीवी शो और मोबाइल से उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। हमें ये पता भी नहीं चलता और बच्चे मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार होते चले जाते हैं।

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पिछले कुछ सालों में बच्चों में एडीएचडी के मामले तेजी से सामने आ रहे हैं। मानसिक और व्यवहार संबंधी समस्याओं के प्रति बढ़ती जानकारी का ही प्रभाव है कि माता-पिता अब बच्चों की समस्याओं को गंभीरता से ले रहे हैं। डॉ नवीन बताते हैं कि बच्चों में यह समस्या अकसर 3-4 वर्ष की आयु में प्रारंभ होती है। वहीं 12 वर्ष से कम उम्र तक के बच्चों में ये लक्षण देखने को मिलते हैं। इसमें बच्चे अपने व्यवहार और आवेग पर काबू नहीं रख पाते हैं। एसोचैम के एक ओपेन सोर्स डाटा के मुताबिक वर्ष 2005 में इसके मामले 4 प्रतिशत थे, जो वर्ष 2011 में बढ़कर 11 प्रतिशत हो गये हैं। इसी अनुपात में आज भी यह बीमारी बढ़ रही है। जो आने वाले कल में एक गंभीर समस्या बनती जा रही है।

हालांकि बड़ी संख्या में ऐसे अभिभावक हैं जो ये जानते ही नहीं हैं कि उनके बच्चे एडीएचडी के शिकार हो रहे हैं। बच्चों में लापरवाही, असावधानी, अति सक्रियता व आवेग का होना सामान्य बात है। ऐसे में इसे पहचानने में मनोचिकित्सकों की मदद लेने की जरूरत होती है। इसकी जांच में बच्चों के व्यवहार का लंबे समय तक अध्ययन करना पड़ता है।

कैसे होगी रोग की पहचान 

बच्चों में एडीएचडी डिसॉर्डर में तीन लक्षण सबसे प्रमुख हैं- लापरवाही, अतिसक्रियता और आवेग। कुछ बच्चों में ये तीनों लक्षण होते हैं, तो कुछ बच्चों में अनमनापन और सावधानी की कमी होती है। लेकिन वो अतिसक्रिय नहीं होते हैं। हर बच्चें की समस्या अलग-अलग होती है, और सभी के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। डॉ नवीन के अनुसार इसे मुख्य रूप से तीन भागों में बांटकर समझा जा सकता है।

सक्रिय बच्चों में लक्षण के गुण 

  • आसानी से ध्यान भटकना, एक काम करते-करते दूसरा काम शुरू कर देना, एकाग्र नहीं हो पाना। रोजमर्रा के कामों को भूलना।
  • बच्चे अगर मनपसंद काम करते हुए भी कुछ समय में बोर हो जाते हो।
  • होमवर्क और अन्य कार्यों को समय पर पूरा न कर पाना। अपने खिलौने, कॉपी, पेन, पेंसिल, रबर आदि खो देना। 
  • किसी की बात को ध्यान से न सुनना।

हाइपरएक्टिव बच्चों के लक्षण

  • यदि बच्चे को एक जगह पर बैठा दिया जाये तो वो लगातार हिलते डुलते रहते हैं।
  • बिना रुके और बिना मतलब के लगातार बोलते रहना।

अधिक आवेग में रहने वाले बच्चों के लक्षण

  • बहुत अधीर होना। प्रश्न से पहले उत्तर बोलना। दूसरों की बातचीत को बीच में रोकना। 
  • बिना सोचे-समझे कोई काम करना।
  • खेलते हुए अपनी बारी पहले लेने के लिए लड़ाई करना।

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