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Rain Forecast: इस बार होगी अच्‍छी बारिश, मौसम विभाग पर भारी है इनकी भविष्यवाणी

Weather Forecast. पाहन का वैज्ञानिक आधार नहीं लेकिन घड़े का पानी देख करते हैं आकलन।पढ़े लिखे लोगों को भी पूरा भरोसा कहते हैं यह उनकी प्रकृति की समझ का परिणाम है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 05:34 AM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 01:55 PM (IST)
Rain Forecast: इस बार होगी अच्‍छी बारिश, मौसम विभाग पर भारी है इनकी भविष्यवाणी

रांची, [जागरण स्‍पेशल]। आदिवासियों के प्रकृति पर्व सरहुल पर रांची के प्रमुख पाहन (आदिवासियों के पुजारी) जगलाल की भविष्यवाणी, इस वर्ष घड़े का पानी कम नहीं हुआ है। बारिश अच्छी होगी। सरहुल पर हर वर्ष पाहन ऐसे ही मौसम का हाल बताते हैं लोगों को। जगलाल की ही तरह रांची के विभिन्न गांवों के पाहनों ने भी अच्छे मौसम की भविष्यवाणी की है। आदिवासी और किसान उत्साहित हैं।

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पढ़े लिखे हों या अनपढ़, उन्हें पाहनों की भविष्यवाणी पर पूरा भरोसा है। इग्नू से पीजी संजय पाहन कहते हैं, बचपन से सरहुल पर्व पर पाहनों की भविष्यवाणी सुनता आ रहा हूं। बिना वैज्ञानिक आधार के मौसम पर उनकी टिप्पणी ज्यादातर सही पाई है। कोई भले ही इसे अंधविश्वास कह सकता है लेकिन हमारा मानना है कि यह सदियों से आदिवासियों का प्रकृति से जुड़ाव और उसकी समझ का परिणाम है।

2005 का सुनामी याद करिए। सैकड़ों जानें गईं लेकिन अंडमान निकोबार द्वीप पर जारवा आदिवासी सुरक्षित बच गए। प्रकृति का रुख भांपकर उन्होंने अनुमान लगा लिया कि कोई भयंकर आपदा आने वाली है और सही समय पर ऊंचाई पर जाकर उन्होंने अपनी जान बचा ली। हमें अपने पाहनों पर पूरा भरोसा है। जनजातीय भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. गिरिधारी गौंझू के अनुसार सरहुल पर मौसम की भविष्यवाणी आदिवासियों की परंपरा है। कोई वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं लेकिन पुरखों की बताई विधि के अनुसार वे बताते हैं कि बारिश कैसी होगी। यह आस्था का विषय है, आदिवासियों को अपनी इस परंपरा पर नाज है।

कैसे करते भविष्यवाणी

जिस दिन सरना स्थल की सफाई की जाती है उस दिन दो नए घड़ों में नदी-तालाब का पानी भरकर पूरी पवित्रता के साथ सरना स्थल पर रखा जाता है। पानी घड़े में रखने के अगले दिन पाहन को अल सुबह सफेद पगड़ी पहनाकर कंधे पर लोग सरना स्थल पर लाते हैं। पाहन के साथ नया सूप और उसमें साल का फूल रहता है। गोटा उड़द दाल, अरवा चावल और बलि के लिए मुर्गा लाया जाता है। पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव-जंतु के लिए प्रार्थना की जाती है। बलि दी जाती है।

इसके बाद सरना स्थल पर रखे दो घड़ों का पानी देखकर आने वाले वर्ष के लिए बारिश की भविष्यवाणी की जाती है। 70 वर्षीय पाहन जगलाल कहते हैं कि घड़ा लबालब भरा है तो अच्छी बारिश की संभावना रहती है। पानी कम है तो कम बारिश होगी। पूजन से कुछ समय पूर्व घड़े को उठाते वक्त उसका पानी जिस दिशा में छलके उससे अनुमान लगाया जाता है कि उस दिशा में अच्छी बारिश होगी। पानी ज्यादा छलका तो तूफान आएगा।

केकड़ा और मछली का क्या करते

सरहुल पर आदिवासी तालाबों व नदियों से केकड़ा और मछली पकड़ते हैं। इसके संबंध में पाहन कहते हैं कि पर्व के बाद केकड़ा व मछली के छोटे-छोटे टुकड़े कर किसान उन्हें अपने खेत में मिलाते हैं। उनका मानना है कि इससे खेती अच्छी होती है क्योंकि ये दोनों आदि काल से प्रकृति के अहम अंग हैं।

ज्यादातर पाहन कह रहे बेहतर होगी बारिश, कुछ की राय अलग

रांची के विभिन्न गांवों के पाहनों ने इस बार अच्छी बारिश की भविष्यवाणी की है, वहीं कुछ गांवों के पाहनों के अनुसार बारिश कम होगी। राजदेव पाहन, मंसू पाहन, हरि पाहन, मुखिया पाहन के अनुसार इस बार अच्छी बारिश होगी। तूफान की भी आशंका है। हालांकि रोपाई के बाद बारिश थोड़ी कम होगी। इन पाहनों का दावा है कि उनकी पूर्व की ज्यादातर भविष्यवाणियां सही साबित हुई हैं। ग्रामीणों ने भी इस पर हामी भरी। इधर भकड़ु पाहन, सावना मुंडा, काशीनाथ पाहन, दिलरंजन पाहन के अनुसार पूजा के दौरान जो संकेत मिले हैं, उससे कम बारिश की आशंका है। इन पाहनों ने भी दावा किया कि उनकी पूर्व की मौसम की ज्यादातर भविष्यवाणियां सही साबित हुई हैं।

पाहनों की भविष्यवाणी में फर्क क्यों

कुछ पाहनों के अनुसार इस बार अच्छी बारिश होगी वहीं कुछ के अनुसार बारिश सामान्य या कम होगी। सवाल यह कि भविष्यवाणी अलग कैसे! दरअसल, इसके पीछे की मुख्य वजह घड़ा और मौसम है। पाहन एक रात पहले घड़े को लबालब भरते हैं और अगले दिन देखते हैं कि उसमें कितना पानी कम हुआ। पानी जितना कम हुआ उतनी कम बारिश की मान्यता है। पाहन अलग-अलग गांव के होते हैं। सभी जगह मौसम भी अलग अलग होता है। घड़ा जिस मिट्टी का बना होता है उसके अनुसार भी वह पानी सोखता है और पानी घटता है। ऐसे में अलग-अलग क्षेत्र के पाहनों की भविष्यवाणी में अंतर आ जाता है।

लाल पाड़ की साड़ी

हर महत्वपूर्ण मौके पर आदिवासी युवतियां लाल सफेद साड़ी पहनती हैं। इसका भी अपना महत्व है। झारखंड में पाड़ और चीक बड़ाइक जाति हैं, जो कपड़़ा बुनने का काम करती है। यही जाति हाथ से साड़ी की बुनाई करती है और साड़ी के निचले हिस्से में लाल रंग की मोटी-पतली धारी होती है। इसलिए इसे लाल पाड़ की साड़ी कहा जाता है। चूंकि पाड़़ जाति इसकी बुनाई करती है इसलिए इसका नाम लाल पाड़ या लाल पडिय़ा साड़ी हो गया।

क्या है सरहुल पर्व

कोई निश्चित तिथि ज्ञात नहीं लेकिन प्रकृति के उपासक आदिवासी हजारों वर्षों से सरहुल मनाते हैं। धरती, आकाश के साथ ही पंचतत्व की पूजा की जाती है। इसी के प्रतीक रूप में साल वृक्ष को विशेष तौर पर पूजा जाता है। चूंकि साल वृक्ष की आयु बहुत अधिक होती है इसलिए इसमें आदिवासियों की काफी आस्था है। चैत के मौसम में साल वृक्ष पर फूल चारों ओर खिल जाते हैं। इसी समय से आदिवासी अपना नया वर्ष मनाते हैं। सरहुल का तात्पर्य है-सरई फूल अर्थात साखू पुष्प।

सरहुल तीन दिनों का पर्व होता है। पहले दिन सरना स्थल (आदिवासियों का पूजन स्थल) की साफ-सफाई  की जाती है। दूसरे दिन मुख्य पर्व का आयोजन होता है। सरना स्थल पर पाहन की पूजा के बाद आदिवासी नाचते-गाते हैं। शोभायात्रा निकालते हैं जिसमें हजारों की भीड़ होती है। तीसरे दिन फूलखोंसी होती है। इसमें आदिवासी युवतियां अपने जूड़े में फूल लगाकर झूमती हैं। पर्व के दौरान आदिवासी इस मौसम में आने वाले नए फलों व खाद्यान्न का सेवन करते हैं। इसके बाद खेती-बाड़ी की तैयारी शुरू हो जाती है। झारखंड में करीब 70 से 80 लाख आदिवासी यह पर्व मनाते हैं। इसके अलावा सरहुल आदिवासी बहुल प. बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में भी मनाया जाता है।

झारखंड में कार्तिक उरांव ने शुरू की थी शोभायात्रा की परंपरा

गुमला जिले के गांव करौंदा, लीलाटोली में 29 अक्टूबर, 1924 को जन्मे कार्तिक उरांव आदिवासियों के विकास को लेकर सदैव चिंतित रहे। सो, 1967 में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की स्थापना की और उसके पहले संस्थापक अध्यक्ष बने। इसके बैनर तले रांची में सरहुल की भव्य शोभायात्रा की शुरुआत की, जो आज इतना भव्य हो गया है कि लाखों लोग मांदर के साथ झूमते हुए सड़क पर निकलते हैं। उन्होंने सांस्कृतिक चेतना जगाने के बाद आदिवासियों को भी शिक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।

दूसरा सबसे बड़ा पर्व करमा

झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है करमा या करम पर्व। इसे आदिवासी और सदान मिलजुल कर सदियों से मनाते आ रहे हैं। करमा पर्व के अवसर पर बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु एवं मंगलमय भविष्य की कामना करती हैं। यह सर्वविदित है कि जनजातियों ने जिन परंपराओं एवं संस्कृति को जनम दिया, सजाया-संवारा, उन सबों में नृत्य, गीत और संगीत का परिवेश प्रमुख है। करमा पर्व भादो शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे भादो एकादशी भी कहते हैं। जनजातीय समुदाय खेती-बारी के कार्यों की समाप्ति के बाद इसे हर्षोल्लास के साथ मनाता है। करम पर्व में करम पेड़ की तीन डालियां लाकर पूजा-अर्चना की जाती है।


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