आदिवासी वनाधिकार पट्टा के 28107 क्लेम रिजेक्ट, 20679 पेंडिंग
रांची राब्यू आजीविका के लिए वन भूमि पर आश्रित लोगों को वनाधिकार पट्टा देने का कानूनन प्रावधान दिया जाए।
रांची, राब्यू : आजीविका के लिए वन भूमि पर आश्रित लोगों को वनाधिकार पट्टा देने का कानूनन प्रावधान है, परंतु सरकार की उदासीनता और अधिकारियों के पेच से वनवासियों को उनका अधिकार नहीं मिल रहा है। अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 के प्रभावी होने के बावजूद हजारों लोग वनाधिकार पट्टे के लिए ग्रामसभा से लेकर जिला मुख्यालय तक की चक्कर लगा रहे हैं।
कल्याण विभाग की हालिया रिपोर्ट की बात को वनाधिकार पट्टा के लिए आए आवेदनों में से 20,679 आवेदन आज भी विभिन्न स्तरों पर पेंडिंग हैं, जबकि 28,107 क्लेम रिजेक्ट कर दिए गए। वनाधिकार पट्टे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से ऐसे लोगों के भविष्य खतरे में पड़ गया है।
कानून के प्रभावी होने के लगभग 12 वर्षो में पट्टा के लिए कुल 110758 आवेदन ग्रामसभा को प्राप्त हुए थे। इनमें से 107032 व्यक्तिगत तथा 3724 सामुदायिक प्रकृति के थे। ग्रामसभा ने इनमें से 71636 आवेदन की अनुशंसा वनाधिकार पट्टे के लिए अनुमंडल स्तरीय समिति को भेजी। अनमुंडल समिति ने 65731 आवेदनों को जिला समिति को भेजा। जिला समिति ने इनमें से 62051 आवेदन को अंतिम रूप से स्वीकृत किया। इनमें 61970 आवेदनों पर कार्रवाई करते हुए वनाधिकार पट्टा दिया गया। इनमें 59866 लोगों को व्यक्तिगत तथा 2104 को सामुदायिक स्तर पर 104066.98 एकड़ भूमि का पट्टा दिया गया।
मुख्य सचिव ने तलब की है रिपोर्ट :
मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी ने इस मामले में दस दिनों के भीतर कल्याण विभाग से रिपोर्ट तलब की है। उन्होंने रिपोर्ट में आवेदन रद होने के कारणों, वन विभाग के पेच और आवंटित भूमि का पूरा ब्यौरा मांगा है। पूरी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी जाएगी। सुप्रीमकोर्ट में इस बाबत दिए गए निर्णय पर पुनर्विचार याचिका की तैयारी में भी राज्य सरकार जुट गई है।
वन भूमि पर इनका हक
- ऐसे लोग जिनकी कम से कम तीन पीढ़ी वन भूमि पर निवास करती आ रही हो या संबंधित व्यक्ति अथवा उसके पूर्वजों का उस भूमि से कम से कम 75 वर्ष पुराना रिश्ता हो। यह अवधि 13 दिसंबर 2005 तक ही मान्य होगी।
- जंगल में रहने वाले ऐसे लोग, जो किसी कारणवश विस्थापित हो गए हों और उन्हें उनका हक नहीं मिला हो।
- जंगल में रहने वाले ऐसे लोग, जिनकी भूमि किसी खास वजह से सरकार ने अधिग्रहीत कर ली हो, परंतु उसका उपयोग नहीं हो रहा हो।
- जंगल में रहने वाले किसी भी जाति के ऐसे लोगों को भी यह हक मिलेगा, जिनके आवास अथवा गांव का सर्वेक्षण पूर्व में न हुआ हो, परंतु वे 13 दिसंबर 2005 से पूर्व 75 वर्षो से रहते आ रहे हों।
वनाधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज हाजिरी होंगे झारखंड सरकार के वकील
रांची, राब्यू : आदिवासियों के वनाधिकार पंट्टे रद करने के मामले में केंद्र सरकार की याचिका पर सुप्रीमकोर्ट में गुरुवार को सुनवाई होगी। इस दौरान झारखंड सरकार की ओर से अधिवक्ता हाजिर होंगे और अदालत को इसकी जानकारी दी जाएगी कि झारखंड सरकार भी इस मामले में हस्तक्षेप याचिका (आइए) दाखिल करने की मंशा रखती है।
इस बारे में महाधिवक्ता अजीत कुमार ने कहा कि गुरुवार को केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई निर्धारित है। इसी दौरान झारखंड सरकार के अधिवक्ता अदालत में हाजिर होकर आइए दाखिल किए जाने की जानकारी देंगे। इसके बाद सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जाएगी।
दरअसल मुख्यमंत्री रघुवर दास ने वनाधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा की थी। आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्देश दिया था। इसके आलोक में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जाएगी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जंगल क्षेत्र से ऐसे लोगों को हटाने का निर्देश दिया है जिनका उस क्षेत्र में रहने का आवेदन सरकार की ओर से खारिज कर दिया गया है।