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दुष्कर्म पीड़िता की व्यथा : जख्म देखकर अब तो बच्चे भी पूछते हैं - मां ठीक होगी या नहीं

मन को द्रवित कर देने वाली यह दास्‍तान लातेहार में हुए सामूहिक दुष्कर्म कांड की पीड़ित महिला की है। जो इस वक्त रांची के रिम्‍स में जिंदगी और मौत से जूझ रही हैै।

By Edited By: Published: Sun, 19 May 2019 05:55 AM (IST)Updated: Mon, 20 May 2019 10:23 AM (IST)
दुष्कर्म पीड़िता की व्यथा : जख्म देखकर अब तो बच्चे भी पूछते हैं - मां ठीक होगी या नहीं
दुष्कर्म पीड़िता की व्यथा : जख्म देखकर अब तो बच्चे भी पूछते हैं - मां ठीक होगी या नहीं

रांची, [राहुल गुरु]रिम्स का न्यूरो वार्ड। दोपहर दो बज रहे होंगे। मरीजों से पटे इस वार्ड में एक महिला बेसुध पड़ी है। बेड के एक ओर दो बच्चे उस महिला के पैरों के पास बैठे हुए हैं। वहीं बेड के दूसरी ओर एक आदमी महिला के पीठ, कमर में लपेटी हुई रुई के बंडल को हटाते हुए कहता है कि अब तो मुझे भी जीने की इच्छा नहीं हो रही। पत्नी के शरीर के जख्म अब देखे नहीं जाते। तीन माह हो गए हैं, धरती के भगवान के भरोसे। कभी कहते हैं कि ठीक हो जाएगी, तो कभी कहते हैं कुछ कहा नहीं जा सकता। बच्चे भी पूछते हैं कि मां ठीक होगी या नहीं।

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मन को द्रवित करने वाली यह कहानी है लातेहार के लूटी गांव के सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता की। इसी साल जनवरी माह की 23 तारीख उस महिला के लिए काल लेकर आयी थी। दो बच्चों के परवरिश की फिक्र में वह स्थानीय बाजार में सब्जी बेचने गयी थी। लौटते हुए वहशियों के हाथ लग गयी। उन वहशियों ने जितना चाहा उसके शरीर के साथ खेला। जब उस पर भी जी नहीं भरा तो शरीर पर कई जख्म देकर चले गये। तब से लेकर आज की तारीख तक पीड़ित महिला जीवन और मौत के बीच फंसी पड़ी है।

पति बताता है कि मरीजों और परिजनों से भरे इस वार्ड में लोगों को जैसे ही मामले का पता चलता है, कटने लगते हैं। तीन माह में इलाज और बेड पर पड़े-पड़े महिला की हालत ऐसी हो गयी है कि लोग पास जाने से कतराते हैं। बेडसोर होने की वजह से जो डॉक्टर व नर्स इलाज के लिए पास जाते हैं वे भी नाक बंद किये रहते हैं। जख्म की वजह से पीठ का हाल यह है कि उसे देख नहीं सकते हैं। सिर, कमर, हाथ, गले और पीठ पर इतने जख्म हैं कि जख्मों को देखकर ही लोग महिला के लिए दुआएं करते हैं।

दिनभर दौड़ता रहता है पति
पति बताता है कि दिनभर तो डॉक्टर और नर्स को ही बुलाने में लगे रहते हैं। हर दिन दो से चार बंडल रूई घावों को साफ करने और उसे लपेट कर रखने में लग जा रही है। पत्‍‌नी कभी आंख खोलती है तो फिर अचानक से बेहोश हो जाती है। डॉक्टर सुनता ही नहीं है। नर्स के पास मरीज का हालत पूछने जाते हैं तो डांट देती है। डबडबाई आंखों से बताता है अब हिम्मत हारने लगा हूं। वह चिकित्सकों पर आरोप लगाता है।

पीड़‍िता का पति कहता है डॉक्टर इलाज के नाम पर लापरवाही कर रहे हैं। जब से यहां इलाज के लिए आए हैं, तब से परेशान ही हो रहे हैं। पहली बार 26 जनवरी को यहां पहुंचे। तब डॉक्टरों ने विशेष संज्ञान नहीं लिया। उस समय सर्जरी वार्ड में भर्ती किये। जैसे-तैसे इलाज चलता रहा, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं आया। फिर एक दिन डॉक्टरों ने कहा कि इसे वापस ले जाओ। घर में ही ठीक रहेगी। तब 27 मार्च को घर ले गये। घर जाते ही हालत बिगड़ गयी।

वापस 8 मई को फिर लेकर यहां आये। इस बार न्यूरो वार्ड में भर्ती है, लेकिन हालत जस की तस है। रूंधे गले से कहता है, पहली बार जब इलाज कराने आये तब मेरे पास आयुष्मान का कार्ड होने के बाद भी सामान्य मरीज की तरह इलाज कराना पड़ा। तब यहां से कोई दवा या दूसरा सामान नहीं मिल पाया। चार लाख रुपया खर्च हो चुका है। अब जब 8 मई से यहां आए हैं तब आयुष्मान कार्ड के द्वारा इलाज हो रहा है।

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