झारखंड में नए बिजली टैरिफ प्रस्ताव शुरू होगी जन सुनवाई
राज्य बिजली वितरण के बिजली दर बढ़ाने के प्रस्ताव पर विद्युत नियामक आयोग जल्द प्रक्रिया शुरू करेगा।
रांची, राज्य ब्यूरो। राज्य बिजली वितरण के बिजली दर बढ़ाने के प्रस्ताव पर विद्युत नियामक आयोग जल्द प्रक्रिया आरंभ करेगा। विद्युत नियामक आयोग इस बाबत तकनीकी प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द पूरा करने में जुटा है। इसके तहत बिजली टैरिफ पीटिशन केतकनीकी पक्ष को परखा जा रहा है।
पीटिशन के माध्यम से बिजली वितरण निगम कामकाज, सुधारों का ब्यौरा समेत अद्यतन ऑडिट की भी जानकारी राज्य विद्युत नियामक आयोग को मुहैया कराता है। इन तमाम प्रक्रियाओं को जल्द पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद जन सुनवाई का दौर आरंभ होगा। जन सुनवाई राज्य के सभी प्रमंडल मुख्यालयों में होगी। इसमें टैरिफ प्रस्ताव को सार्वजनिक कर आमलोगों और उपभोक्ताओं की आपत्तियां आमंत्रित की जाएगी। बिजली वितरण निगम के वरीय अधिकारियों की मौजूदगी में इन आपत्तियों को रखा जाएगा। जन सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद हीं नए बिजली दर का निर्धारण राज्य विद्युत नियामक आयोग करेगा। आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि जल्द से जल्द प्रक्रिया को पूरी करने की कोशिशें की जा रही है ताकि समय पर बिजली दर में वृद्धि की घोषणा की जा सके।
बिजली दर में बढ़ोतरी प्रस्ताव
डोमेस्टिक - 75 रुपये प्रति माह और प्रति यूनिट छह रुपये।
डोमेस्टिक एचटी - 200 रुपये प्रति केवीए, छह रुपये प्रति यूनिट।
कामर्शियल - 225 रुपये प्रति माह, सात रुपये प्रति यूनिट।
सिंचाई-कृषि - 20 रुपये प्रति एचपी प्रतिमाह, पांच रुपये प्रति यूनिट।
इंडस्ट्रियल - 300-400 रुपये प्रति केवीए, छह रुपये प्रति केवीएएच।
ग्रामीण उपभोक्ताओं पर भार
नए बिजली टैरिफ पीटिशन में ग्रामीण उपभोक्ताओं पर भार पड़ सकता है। पहले शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं की अलग-अलग श्रेणी थी। उनके लोड के हिसाब से दर का भी अलग वर्गीकरण था लेकिन नए प्रस्ताव में ग्रामीण उपभोक्ताओं की श्रेणी समाप्त कर दी गई है।
नहीं हुआ 75.73 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन, 22.79 करोड़ का घाटा
राज्य सरकार के जल विद्युत संयंत्र की हालत खस्ता है। जीर्णोद्धार की राशि को लेकर विवादों में रहे इस संयंत्र में पदाधिकारियों की लापरवाही के कारण 75.73 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन नहीं हो पाया। इससे सिकिदरी स्थित स्वर्णरेखा जल विद्युत संयंत्र (एसआरएचपी) को 22.79 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा। महालेखाकार की रिपोर्ट में इसे उजागर किया गया है।
रिपोर्ट में जिक्र है कि झारखंड ऊर्जा उत्पादन निगम लिमिटेड के द्वारा बुशिंग के समय पर परीक्षण नहीं करने के कारण ऐसी परिस्थिति बनी। जल विद्युत संयंत्र में दो यूनिटें लगी हैं जिसकी अधिष्ठापित क्षमता प्रति यूनिट 65 मेगावाट है। प्रत्येक यूनिट को 80 एमवीए जेनरेटर ट्रांसफार्मर के साथ डिजाइन किया गया है।
इसमें तीन फेज हैं और प्रत्येक फेज में तीन अलग-अलग हाइटेंशन बुश लगे हैं। 18 जून 2015 को यूनिट दो में लगा हाइटेंशन बुश फट गया जिससे इकाई को तत्काल बंद करना पड़ा। 28 जुलाई 2015 को इसमें बुश लगाया गया जो चार घंटा चलने के बाद जवाब दे गया। इससे यूनिट दो का उत्पादन फिर से ठप हो गया। खराब बुश को बदलने में छह माह लग गए। जून 2017 में बुश लगाए जाने के बाद यूनिट से उत्पादन फिर से चालू हुआ।
नहीं की टैन डेल्टा टेस्ट
बेहतर रखरखाव के लिए ट्रांसफार्मर की टैन डेल्टा टेस्ट होती है। यह टेस्ट हर पांच साल पर किया जाता है। 1980 में संयंत्र की स्थापना के बाद ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया गया। रिपोर्ट में जिक्र है कि अगर यह परीक्षण किया गया होता तो बुशिंग की विफलता का अनुमान लगाया जा सकता था। बुशिंग की औसत आयु तीस वर्ष होती है लेकिन इसे बदलने या अतिरिक्त बुशिंग खरीदने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। अगर ऐसा होता तो करोड़ों के घाटे से बचा जा सकता था।
इस वजह से भी हुआ घाटा
बुश खराब होने के बाद मूल उपकरण निर्माता भेल ने 13.14 लाख रुपये का कोटेशन दिया। एमडी ने इसकी मंजूरी के लिए बोर्ड आफ डायरेक्टर को भेजा क्योंकि इस खरीद में 20 फीसद अग्रिम भुगतान भी शामिल था। कंपनी ने भेल का प्रतिदिन के हिसाब से सर्विस इंजीनियर के लिए 44,200 रुपये तय किया।
बुश लगाने के लिए कम से कम तीन दिन का प्रस्ताव दिया गया था। इसकी स्वीकृति के लिए होल्डिंग कंपनी को भेजा गया। इस प्रक्रिया में छह माह लग गए। सर्विस इंजीनियर के लिए प्रतिदिन की राशि में मोलभाव करने का सुझाव दिया गया लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसमें ज्यादा का भुगतान करना पड़ा। प्रतिदिन के हिसाब से 46,200 रुपये का भुगतान स्वीकृत हुआ। क्योंकि पूर्व के प्रस्ताव के तीन माह बीत चुके थे।