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झारखंड में आसान नहीं विपक्षी पार्टियों का मिलन

झारखंड में विपक्षी एका में कई बाधाएं हैं। सबसे बड़ी बाधा है नेतृत्व और चेहरे की स्वीकार्यता की।

By Sachin MishraEdited By: Published: Wed, 25 Oct 2017 12:27 PM (IST)Updated: Wed, 25 Oct 2017 04:50 PM (IST)
झारखंड में आसान नहीं विपक्षी पार्टियों का मिलन

आशीष झा, रांची। झारखंड में भाजपा शासन के तीन साल पूरे होने वाले हैं। सत्ता से दूर झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, झारखंड विकास मोर्चा, राजद आदि पार्टियां राज्य सरकार को तगड़ा झटका देने की कोशिश कर रही हैं। इसमें वामपंथी पार्टियों का भी साथ है। अकेले किसी पार्टी से फिलहाल यह संभव भी नहीं है और इसी कारण तमाम विपक्षी पार्टियां एक मंच पर आने की कोशिशों में जुटी भी हैं, लेकिन विपक्षी एका में कई बाधाएं भी हैं। सबसे बड़ी बाधा है नेतृत्व और चेहरे की स्वीकार्यता की।

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झारखंड में नेतृत्व के नाम पर तमाम पार्टियों में आदिवासी और गैर आदिवासी चेहरे हैं, जिनका आपस में मिलना मुश्किल ही रहा है। झारखंड का इतिहास भी इसका साक्षी रहा है। एक दिन पूर्व ही तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने संयुक्त बैठक कर कोशिश की थी कि सरकार के खिलाफ कोई ठोस संदेश दिया जाए लेकिन ऐसा कुछ हो नहीं सका। आदिवासी नेतृत्व के नाम पर विपक्ष में दो चेहरे हैं और वो हैं बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन।

दोनों में से कौन उभरकर आगे आएगा यह कहा नहीं जा सकता। इसी बीच, समस्त विपक्ष की एका की जोरदार पैरोकारी करने वाले पूर्व सांसद सालखन मुर्मू अचानक एकला चलो की राह पर निकल पड़े। वे आदिवासी, दलित, एससी, ओबीसी मुस्लिम आदि को एकसाथ जोड़कर नया विकल्प देने की तैयारी में जुटे हैं, लेकिन निर्णय अकेले ले रहे हैं। अब उन्होंने खुद ही तय कर लिया है कि 30 सीट पर आदिवासी, 10 पर दलित और 15 पर मुस्लिम उम्मीदवार होंगे। अब उनके निशाने पर भाजपा समेत समस्त विपक्ष है। दूसरी ओर झामुमो, झाविमो, कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष और यहां तक कि वामपंथी पार्टियां अभी सीटों के बंटवारे से दूर फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही हैं।

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