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खुद बेसुध है आदिवासियों की सुध लेने वाला, जानें-क्यों है इस संस्थान की जरूरत

डा. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान का हाल बेहाल है। आदिवासियों की सुध लेने वाला यह संस्थान आज खुद बेसुध है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 28 May 2018 12:38 PM (IST)Updated: Mon, 28 May 2018 02:33 PM (IST)
खुद बेसुध है आदिवासियों की सुध लेने वाला, जानें-क्यों है इस संस्थान की जरूरत
खुद बेसुध है आदिवासियों की सुध लेने वाला, जानें-क्यों है इस संस्थान की जरूरत

विनोद श्रीवास्तव, रांची। राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान के एक कोने में मौजूद डा. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान का हाल बेहाल है। सृजित पद के अनुरूप कभी यहां 58 पदाधिकारी- कर्मचारी कार्यरत थे। जैसे-जैसे वे सेवानिवृत्त होते गए, कुर्सियां खाली होती गई, फिर उसे भरने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। नाम है शोध संस्थान। काम अनुसूचित जनजातियों के सर्वागीण विकास के लिए सरकार को शोध आधारित रिपोर्ट मुहैया कराना। परंतु शोध तब हो, जब संस्थान में शोध पदाधिकारी और शोध अन्वेषक हों। शोध पदाधिकारियों के छह में से छह और शोध अन्वेषक के छह में से पांच पद खाली हैं। ऐसे में जनजातीय विकास की परिकल्पना कैसे परवान चढ़ेगी, कोई बताने वाला नहीं।

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यह हाल तब है, जबकि मुख्यमंत्री और कल्याण मंत्री से लेकर शीर्ष स्तर के सभी पदाधिकारियों का ठिकाना राजधानी रांची ही हैं। सरकार के लगभग सभी बड़े आयोजन इसी मोरहाबादी मैदान में होते हैं। आदिवासियों के हित में बड़ी-बड़ी बातें, बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं, परंतु संस्थान की चमचमाती बिल्डिंग के पीछे की बदहाली किसी को नजर नहीं आती। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आदिवासियों की सुध लेने वाला यह संस्थान आज खुद बेसुध है। संस्थान में मौजूद कार्यबल की बात करें तो कुल 58 पदों में से 34 रिक्तहैं। जो 24 कर्मचारी यहां कार्यरत हैं, उनमें 12 आदेशपाल हैं। भारत सरकार के निर्देश पर 1953 में जिन चार राज्यों में शोध संस्थान की स्थापना हुई थी, उनमें तत्कालीन बिहार भी एक था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खास मित्र माने जाने वाले मानवशास्त्री डा. बीएस गुहा इसके पहले निदेशक बनाए गए थे।

सात साल बाद मिले निदेशक, चुनौतियों की भरमार

निदेशक पद से डा. प्रकाश चंद्र मुंडा के 2011 में सेवानिवृत्त होने के बाद से संस्थान के निदेशक पद पर किसी भी अफसर की स्थायी बहाली नहीं हुई। सरकार ने हाल ही में इस पद के लिए खेल निदेशक (अब अतिरिक्त प्रभार) रणेंद्र कुमार के नाम की अधिसूचना जारी की है। सोमवार को वे इस पद पर योगदान देंगे। संस्थान की मौजूदा स्थितियां उनके समक्ष कई चुनौतियां पेश करेंगी। बहरहाल इतने महत्वपूर्ण संस्थान में उप निदेशक के सभी तीन, सहायक निदेशक के सभी छह लैब टेक्नीशियन के सभी चार, हेड क्लर्क, कंप्यूटर ऑपरेटर, लाइब्रेरियन, कलेक्शन टेंड्रल, स्वीपर और सिने कैमरामैन के सृजित सभी एक-एक पद खाली हैं। साउंड टेक्नीशियन का एक पद दिसंबर में, जबकि एकाउंटेंट का पद जुलाई में रिक्त हो जाएगा। तीन क्लर्क, एक क्लर्क सह एकाउंटेंट, एक रात्रि प्रहरी, एक स्टेनोग्राफर, दो माली, एक चालक पर इतने बड़े संस्थान का दारोमदार है।

संस्थान की जरूरत क्यों

पांचवीं अनुसूची में शामिल झारखंड की कुल आबादी में से अनुसूचित जनजातियों की आबादी लगभग 26 फीसद है। उनकी भाषा, संस्कृति, कला, स्वास्थ्य, रीति-रिवाज, उनकी विभिन्न समस्याओं की पड़ताल और संबंधित रिपोर्ट से सरकार को अवगत कराना संस्थान का मूल दायित्व है। जनजातीय विकास की योजनाओं का मूल्यांकन, आधारभूत संरचनाओं का सर्वेक्षण, जनजातीय भाषाओं की पुस्तकें, शब्दकोश, वार्तालाप निर्देशिका आदि तैयार करना, विलुप्त होती जनजातीय समाज की कहानियों, पहेली, गीत, लोकोक्ति, मुहावरे, चुटकुले आदि का संग्रहण और संरक्षण, अनुसूचित क्षेत्रों/जनजातीय अधिकारों के संबंध में कानूनी /संवैधानिक प्रावधानों, पेसा, वनाधिकार कानून से जनजातीय समाज को अवगत कराना एवं उनका क्षमता संव‌र्द्धन आदि संस्थान के मुख्य दायित्वों में शामिल है।  


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