ऑटिज्म पर भारी शुभ्रांशु का जज्बा, बोर्ड परीक्षा में 69 फीसद अंक लाकर पेश की मिसाल
दसवीं बोर्ड की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में हुआ पास गणित में हासिल किये सबसे अधिक अंक
राज्य ब्यूरो, रांची : आगे बढ़ने का जज्बा हो तो परिस्थितियां और कमजोरियां बाधक नहीं बन सकती है। रांची के अनगड़ा राजकीय उच्च विद्यालय के विशेष श्रेणी के छात्र शुभ्रांशु बोस ने भी अपनी मेहनत, लगन और जुनून के दम पर यह साबित कर दिखाया है कि उड़ान पंख नहीं हौसलों से भरी जाती है। ऑटिज्म नाम की मानसिक बीमारी से ग्रस्त होने के बावजूद शुभ्रांशु ने झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) की 10वीं बोर्ड परीक्षा में प्रथम श्रेणी से सफलता हासिल की।
बुधवार को परीक्षा का परिणाम आया तो शुभ्रांशु और उसके माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। परीक्षा में उसे ओवरऑल 68.8 फीसद अंक मिले हैं, जबकि गणित में सबसे अधिक 89 अंक प्राप्त हुए।
------- पेंटिंग और साइकिलिंग में भी अव्वल शुभ्रांशु पढ़ाई के साथ साथ पेंटिंग ल साइकिलिंग में भी अव्वल है। पेंटिंग उसकी हॉबी है। इस क्षेत्र में उसने कई उपलब्धियां भी हासिल की हैं। उसके द्वारा बनाई गई कई पेंटिंग दूसरे राज्यों में भी आयोजित प्रदर्शनियों में भी लगाई जा चुकी है। उसने पेंटिंग में कई अवार्ड भी जीते हैं। अभी कुछ महीने पहले झारखंड बाल कल्याण परिषद द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय प्रतियोगिता के बाद उसका चयन राष्ट्रीय स्तर पर भी अवार्ड के लिए हुआ है। उसे यूनिसेफ व अन्य संगठनों द्वारा आयोजित पेंटिंग प्रतियोगिता में भी पुरस्कार मिले हैं। कोरोना पर उसके द्वारा बनाई गई पेंटिंग की भी काफी सराहना हुई है। शुभ्रांशु एक अच्छा साइकिलिस्ट भी है और उसने दो बार दिव्यांगों के ओलंपिक में सिल्वर और कांस्य पदक भी जीते हैं।
शुभ्रांशु की मां इतू बोस बताती हैं, ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे कोई भी काम पूरी लगन और ईमानदारी से करते हैं। शुभ्रांशु की सफलता का भी राज यही है। शुरू में इसकी बीमारी का पता चला तो काफी निराशा हुई, लेकिन उसी समय सोच लिया कि इसे सामान्य बच्चों की तरह ही आगे बढ़ाना है। एयरफोर्स से रिटायर शुभ्रांशु के पिता सुचरित बोस के मुताबिक ऑटिज्म बच्चे में कई खासियतें होती हैं। शुभ्रांशु उनका उपयोग करना जान गया है।
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क्या है ऑटिज्म
ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है, जिससे पीड़ित बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है। यह बीमारी सामान्य रूप से बच्चे के मानसिक विकास को रोक देती है। ऐसे बच्चों की मानसिक क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे समाज में घुलने-मिलने में हिचकते हैं। साथ ही कोई प्रतिक्रिया देने में भी काफी समय लेते हैं। हालांकि इनमें एक बड़ी खासियत यह होती है कि ये कोई भी काम लगन और ईमानदारी से करते हैं। यही खूबी इन्हें विशिष्ट क्षमतावान लोगों की कतार में खड़ी करती है।
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