IAS राहुल पुरवार को कारण बताओ नोटिस, फाइलें सीज कर ले गई ACB
राहुल पुरवार पर झारखंड बिजली वितरण निगम के एमडी पद पर रहते हुए गंभीर अनियमितता का आरोप है। फिलहाल वे राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी हैं।
रांची, [प्रदीप सिंह]। झारखंड कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राहुल पुरवार मुश्किल में पड़ सकते हैं। बिजली वितरण निगम के प्रबंध निदेशक के पद पर रहते हुए उनके खिलाफ कई अनियमितताओं के आरोप है। इस बाबत राज्य सरकार ने उनसे जवाब तलब करते हुए मेमो इश्यू किया है। राहुल पुरवार हाल ही में बिजली वितरण निगम के प्रबंध निदेशक पद से हटाए गए हैं। इस बीच उन्हें राज्य का मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बनाया गया है।
पुरवार फरवरी 2015 से बिजली वितरण निगम के प्रबंध निदेशक के पद पर तैनात थे। इस दौरान वे विवादों के घेरे में रहे। उनपर टाटा प्रोजेक्ट्स को 42 करोड़ रुपये का भुगतान कई माह तक रोकने का आरोप था। आरोप लगाया गया था कि राहुल पुरवार ने 42 करोड़ रुपये के भुगतान के एवज में ढाई प्रतिशत कमीशन की मांग की थी। विभागीय जांच में भी इसकी पुष्टि हुई है कि उन्होंने भुगतान की फाइल रोकी थी। नेता प्रतिपक्ष के पद पर रहते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस प्रकरण को उजागर किया था। अब राहुल पुरवार को इस संदर्भ में राज्य सरकार को अपना जवाब दाखिल करना होगा।
इन बिंदुओं पर भी देना होगा जवाब
राहुल पुरवार पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न कार्यों के लिए हुए टेंडर में ऊंची दर पर ठेका कंपनियों को टेंडर आवंटित किए। कई काम पर एजी (लेखा महापरीक्षक) की भी आपत्ति थी, जिसकी अनदेखी की गई। अपने कार्यकाल में राहुल पुरवार ने राजस्व को क्षति पहुंचाई। वे बिजली की खपत के मुकाबले राशि की वसूली नहीं कर सके। इससे काफी घाटा हुआ, जिसकी भरपाई राज्य सरकार को करनी होगी।
फाइलें सीज कर ले गए एसीबी के अधिकारी
बिजली वितरण निगम के काले कारनामे पर राज्य सरकार की एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) की भी नजर है। एसीबी ने स्काडा के प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट की बहाली मनमानी दर पर देने संबंधी फाइलें सीज कर ली है। एकाउंटेंट जनरल (एजी) ने भी इसपर गहरी आपत्ति की थी, लेकिन उसे नजरंदाज कर दिया गया। महत्वाकांक्षी आरएपीडीआरपी प्रोजेक्ट के तहत सभी 24 जिलों में प्रोजेक्ट कंसल्टेंट की नियुक्ति की लिए बिजली वितरण निगम ने निविदा निकाली थी।
23 फरवरी 2018 को मेसर्स टाटा पावर डीडीएल को यह कार्य 6.21 करोड़ रुपये में अवार्ड किया गया। यह अनुमानित लागत का लगभग दोगुना था, जिसपर एजी ने आपत्ति दर्ज की थी। आडिट रिपोर्ट में सेंट्ल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) गाइडलाइन की अनदेखी को भी इंगित किया गया था।