सरकार चलाने का ढंग नहीं जानते काम क्या करेंगे रघुवरः शिबू सोरेन
शिबू सोरेन ने कहा कि झारखंड के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है, पर यहां के लोगों के संपूर्ण विकास का उनका सपना अभी भी अधूरा है।
रांची, प्रदीप सिंह। वाकई जीते जी मिथक बन चुके हैं गुरुजी (शिबू सोरेन)। चाहने वाले की तादाद इतनी कि जीवन के 74वें बसंत में भी उनकी मौजूदगी भर से झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं में जोश भर जाता है। झारखंड को बिहार से अलग करने के लिए लंबी राजनीतिक लड़ाई लड़ी और जीत भी हासिल की, लेकिन इससे वे स्वयं संतुष्ट नजर नहीं आते। गुरुवार को उनके जन्मदिवस के मौके पर विस्तार से बातचीत हुई तो उनका दर्द उभरकर सामने आया। शिबू सोरेन बोले-झारखंड के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। अलग राज्य भी मिला लेकिन यहां के खनिज से बिहार और देश का विकास हुआ। पहले भी यही होता था, जिसका हम विरोध करते हैं। बदली परिस्थिति में झारखंड वहीं खड़ा है। झारखंड के लोगों के संपूर्ण विकास का उनका सपना अभी भी अधूरा है।
महाराष्ट्र में दलित राजनीति को लेकर हो रही हिंसा पर शिबू सोरेन दुखी हैं। उनका मानना है कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं होगा। बताते हैं कि झारखंड के लिए लंबा संघर्ष हुआ। सैकड़ों कार्यकर्ता मारे गए। कई साथी आंदोलन के दौरान बिछुड़ गए लेकिन उन्होंने कभी हिंसा का रास्ता अख्तियार नहीं किया। लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष करते हुए मंजिल हासिल की।
अकेले क्या करेंगे रघुवर दास
शिबू सोरेन झारखंड की वर्तमान स्थिति में सुधार चाहते हैं। बेबाकी से कहते हैं-अकेले रघुवर दास क्या करेंगे? सरकार चलाने का ढंग नहीं जानते हैं तो काम क्या करेंगे? सरकार के चलने-चलाने का तरीका ठीक नहीं है। राज्य में कामकाज बाधित है। विकास का कोई काम नहीं हो रहा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक के जरिए लोगों की जमीन छीनने की साजिश चल रही है। सरकार की मंशा ठीक नहीं लगती है। सबकुछ कारपोरेट घरानों के इशारे पर हो रहा है।
पिता ने पढ़ाया-लिखाया तो आगे बढ़े
झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन हर मौके पर बेहतर शिक्षा की वकालत करना नहीं भूलते। उनकी नसीहत है कि राज्य सरकार गांव-गांव में स्कूल खोले। उनके पिता शिक्षक थे तो पढ़ाया-लिखाया लेकिन आदिवासी का दूसरा नाम ही अनपढ़ है। आदिवासी तबका अन्य समुदायों के मुकाबले अविकसित है। समाज का विकास तभी होगा तब लोग पढ़ेंगे।
हमारे खनिज का सिर्फ हुआ दोहन
शिबू सोरेन को यह सालता है कि खनिजों से परिपूर्ण झारखंड में अपेक्षित विकास नहीं हुआ। यहां के आदिवासियों- मूलवासियों का जीवन स्तर अभी भी काफी नीचे हैं। उनका कहना है कि सिर्फ झारखंड के खनिज संसाधनों का सरकारों ने दोहन किया। यहां के विकास के लिए व्यवहारिक योजनाएं नहीं बनी। वृहद झारखंड भी उनका सपना है।
वे कहते हैं-झारखंड तो बन गया लेकिन लड़ाई वृहद झारखंड की थी। वे उन इलाकों में अब भी जाते हैं जहां झारखंडी संस्कृति को लोगों ने आत्मसात किया है। वहां लोगों का जीवन स्तर उठाने के लिए पार्टी का अभियान जारी रहेगा। उन्हें ओडिशा के आगामी चुनावों में झामुमो के बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद भी है। कहते हैं-पार्टी का नेतृत्व हेमंत सोरेन बेहतर तरीके से कर रहे हैं। वे लगातार संगठनात्मक विस्तार में लगे हैं। इसमें सफलता मिल रही है।