झारखंड के ग्रामीण इलाकों के स्कूल खाली, शहरी में शिक्षकों की भरमार
झारखंड के ग्रामीण इलाकों में जहां 400 छात्रों पर एक शिक्षक हैं तो शहरी इलाकों में 44 छात्रों पर एक शिक्षक। सरकार के निर्देश के बावजूद स्थिति नहीं सुधर रही।
रांची, [नीरज अम्बष्ठ] । झारखंड के माध्यमिक (हाई) तथा प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता में जमीन आसमान का अंतर है। किसी स्कूल में शिक्षकों की भरमार है तो कहीं शिक्षकों का टोटा है। राज्य के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में जहां शिक्षकों की भारी कमी है वहीं शहरी इलाकों में शिक्षकों की भरमार है।
ग्रामीण इलाकों में जहां 400 छात्रों पर एक शिक्षक हैं तो शहरी इलाकों में 44 छात्रों पर एक शिक्षक। सरकार के बार-बार निर्देश के बावजूद स्थिति नहीं सुधर रही। शिक्षकों की आवश्यकता के अनुसार पदस्थापन को लेकर स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद जिला शिक्षा पदाधिकारी इसपर उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं। कमोबेश स्थिति जस की तस है।
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह कि ग्रामीण इलाकों में शिक्षक अपनी पोस्टिंग नहीं चाहते। अधिकांश शिक्षक पैरवी-पहुंच के बल पर शहरी क्षेत्रों में जमे हुए हैं। दूसरी तरफ, जिनकी पैरवी-पहुंच नहीं है वे शिक्षक ही ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थापित हैं। इसका सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि रांची जिले में हाई व प्लस टू स्कूलों में 44 छात्रों पर एक शिक्षक उपलब्ध हैं, वहीं गढ़वा जैसे पिछड़े जिले के स्कूलों में 207 छात्रों पर एक शिक्षक पदस्थापित हैं। रांची से सटे खूंटी, सिमडेगा में यह अनुपात क्रमश: 44 और 56 है। वहीं, चतरा, पलामू, गिरिडीह आदि में यह अनुपात 200 से अधिक है। वहीं कोडरमा के एक स्कूल में 400 बच्चों पर एक शिक्षक है। यह स्थिति हाई एवं प्लस टू दोनों कोटि के स्कूलों की है।
आखिर क्यों, ग्रामीण इलाकों में शिक्षक अपनी पोस्टिंग नहीं चाहते
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में न तो बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है और ने बेहतर शिक्षण संस्थान। उच्च शिक्षा की भी व्यवस्था नहीं है। शिक्षक अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिलाना चाहते हैं जो इन ग्रामीण इलाकों में उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि अधिकतर शिक्षक राजधानी रांची में ही अपनी पोस्टिंग चाहते हैं। रांची उनकी पहली प्राथमिकता रहती है तो दूसरे में विकसित शहरी क्षेत्र। यही कारण है कि पिछड़े जिलों में शिक्षकों की संख्या काफी कम है।
निर्देशों का अनुपालन नहीं होना भी राह में बाधक
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने सभी स्कूलों में छात्र अनुपात में शिक्षकों का पदस्थापन करने का निर्देश जिला शिक्षा पदाधिकारियों को दिया है। अतिरिक्त शिक्षकों का पदस्थापन वैसे स्कूलों में करने को कहा गया है जहां शिक्षकों की अत्यधिक कमी है। लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है। हालांकि शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाने से शहरी क्षेत्रों के भी कई स्कूलों में आवश्यकता के अनुरूप शिक्षक नहीं हैं।
पिछड़े जिलों के छात्र-शिक्षक अनुपात का हाल
पाकुड़ : 159, जामताड़ा : 159, पलामू : 200, गढ़वा : 207, पश्चिम सिंहभूम : 143, दुमका : 111
(इतने छात्र पर एक शिक्षक)
केस-1
पिछले माह शिक्षा विभाग की समीक्षा में ही यह बात सामने आई कि रांची के मारवाड़ी प्लस टू स्कूल तथा बीआइटी मेसरा हाई स्कूल में क्रमश: 21 तथा 11 शिक्षक कार्यरत हैं वहीं खूंटी के एसएस हाई स्कूल में 13 शिक्षक हैं। दूसरी तरफ, इन्हीं जिलों के दूसरे स्कूलों में शिक्षकों की काफी कमी है।
केस-2
शिक्षा मंत्री नीरा यादव के गृह जिले कोडरमा के ही लतबेधवा राजकीयकृत उच्च विद्यालय, लतबेधवा में 400 से अधिक बच्चे नामांकित हैं। ग्रामीण क्षेत्र के इस स्कूल में महज एक शिक्षक मुंदरपाल पदस्थापित हैं।
खाली पदों की स्थिति
,पद स्वीकृत - कार्यरत - रिक्त - रिक्ति प्रतिशत
राजकीय माध्यमिक स्कूल
प्रधानाध्यापक 2,637 85 2552 96.78
सहायक शिक्षक 25,657 4,436 21,221 82.71
अपग्रेडेड हाई स्कूल
प्रधानाध्यापक 1189 00 1189 100
सहायक शिक्षक 5945 00 5945 100
17,572 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा शुरू कर दी गई है। 338 प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा की जा रही है, जबकि इतने ही पद प्रोन्नति से भरे जाएंगे।