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सीवरेज-ड्रेनेज मामला: सीपी सिंह के समर्थन में सरयू, हेमंत को कठघरे में किया खड़ा

Jharkhand. खाद्य मंत्री ने हेमंत पर नगर विकास मंत्री के पद पर रहते हुए महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी का आरोप लगाया। उन्होंने पूर्व मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पर भी उंगली उठाई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 20 Jul 2019 10:11 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jul 2019 09:33 AM (IST)
सीवरेज-ड्रेनेज मामला: सीपी सिंह के समर्थन में सरयू, हेमंत को कठघरे में किया खड़ा
सीवरेज-ड्रेनेज मामला: सीपी सिंह के समर्थन में सरयू, हेमंत को कठघरे में किया खड़ा

रांची, राज्य ब्यूरो। सीवरेज-ड्रेनेज मामले को लेकर गर्म हुई राजनीति बहरहाल थमने का नाम नहीं ले रही है। राज्य के खाद्य, सार्वजनिक एवं उपभोक्ता मामले विभाग के मंत्री सरयू राय इस प्रकरण में नगर विकास एवं आवास विभाग के मंत्री सीपी सिंह के समर्थन में उतर आए हैं। उन्होंने इस मामले में नेता प्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अलावा पूर्व मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को कठघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

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सरयू राय ने दावा किया है कि नगर विकास मंत्री के पद पर रहते हुए हेमंत सोरेन ने जहां सीवरेज-ड्रेनेज मामले में महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की, वहीं बतौर तत्कालीन निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा ने मामले की संचिका दबा दी। ऐसे में सीवरेज-डे्रनेज सिस्टम की बदहाली के लिए नेता प्रतिपक्ष द्वारा वर्तमान नगर विकास मंत्री को जिम्मेदार ठहराया जाना कतई उचित नहीं है। मंत्री सरयू राय ने कहा कि बतौर तत्कालीन नगर विकास मंत्री हेमंत सोरेन ने अयोग्य साबित हो चुके परामर्शी मेनहर्ट को 17 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान के लिए कैबिनेट से संकल्प पारित कराया।

ऐसा तब किया गया, जबकि निगरानी (तकनीकी कोषांग) जांच में यह साबित हो गया था कि संबंधित योजना का डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) बनाने और इसके पर्यवेक्षण के लिए मेनहर्ट की नियुक्ति अवैध थी। इस कार्य के लिए वह तकनीकी रूप से अयोग्य था। उन्होंने कहा कि छह अगस्त 2010 को निगरानी (तकनीकी कोषांग) के मुख्य अभियंता ने तत्कालीन निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा को जांच रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें टेंडर के प्रकाशन से लेकर उसके निष्पादन तक की प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण करार दिया गया था।

वर्मा ने जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के बजाए उसे 21 फरवरी 2011 को नगर विकास विभाग में भेज दिया। इसके बाद 13 जुलाई 2011 को नगर विकास ने कैबिनेट से संकल्प पारित कराकर मेनहर्ट को 17 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान कर दिया। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में नगर विकास विभाग ने उच्च न्यायालय के 25 अप्रैल 2011 के निर्णय के विरुद्ध न्यायालय की खंडपीठ में अपील दायर नहीं करने का निर्णय लिया। तब नगर विकास मंत्री हेमन्त सोरेन ही थे। दूसरी ओर, सीपी सिंह ने वर्तमान सरकार में नगर विकास मंत्री बनने के बाद मेनहर्ट को पर्यवेक्षण के काम से हटा दिया।

ऐसे में सीवरेज-ड्रेनेज की बदहाली की जिम्मेदारी सीपी सिंह पर थोपा जाना कतई न्यायोचित नहीं है। सरयू राय ने कहा है कि यह जांच का विषय है कि मेनहर्ट ने जो डीपीआर बनाया था, वह रांची के सीवरेज-ड्रेनेज प्रणाली के क्रियान्वयन में कितना कारगार साबित हुआ और निर्माण कार्य के दौरान इसमें कितना परिवर्तन करना पड़ा। उन्होंने कहा कि विडंबना यह कि एक ओर रांची के सीवरेज-ड्रेनेज का काम मेनहर्ट के पर्यवेक्षण में चल रहा था तो दूसरी ओर 2015 में रांची में पथ निर्माण विभाग भी अलग से ड्रेनेज बनवा रहा था।

ड्रेनेज निर्माण पर पथ निर्माण विभाग द्वारा 140 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी यह ड्रेनेज सिस्टम कामयाब नहीं हुआ। उन्होंने सवाल उठाया है कि पथ निर्माण विभाग द्वारा बनाया गया ड्रेनेज मेनहर्ट के डीपीआर के अनुरूप था या नहीं? यह महज संयोग नहीं हो सकता कि जिस राजबाला वर्मा ने निगरानी (तकनीकी कोषांग) जांच में दोषी पाए गए मेनहर्ट पर कार्रवाई करने की संचिका निगरानी आयुक्त के रूप में दबा दी, उसने ही पथ निर्माण सचिव के नाते रांची में स्वतंत्र ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण भी करा दिया।

यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि 16 अक्टूबर 2009 से 28 अगस्त 2011 के बीच निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक एमवी राव ने उच्च न्यायालय के निर्देश पर आधा दर्जन से अधिक बार निगरानी आयुक्त से इस मामले में कार्रवाई के लिए निर्देश मांगा, परंतु उन्हें निर्देश नहीं मिला। इस अवधि में शिबू सोरेन मुख्यमंत्री और हेमंत सोरेन नगर विकास मंत्री थे।


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