Jharkhand Politics: सरयू राय का भाजपा से लगाव खत्म नहीं हुआ, पढ़ें सत्ता के गलियारे का हाल
Saryu Roy Satta Ke Galiyaro Se Jharkhand Political Updates सरयू राय के बयान के राजनीतिक मायने-मतलब निकालने वालों की कमी नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस की मुश्किल यह है कि यहां जितने नेता हैं उतने ही गुट भी।
रांची, राज्य ब्यूरो। तीन सिंतबर से झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। इसे लेकर झारखंड की राजनीति में हलचल मची हुई है। सरयू राय ने बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता देने की मांग की है। इधर, झारखंड कांग्रेस में भी बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है। इस दौर में आइए जानते हैं, झारखंड की सत्ता के गलियारे में क्या कुछ चल रहा है, दैनिक जागरण के ब्यूरो प्रभारी प्रदीप सिंह की कलम से।
लगाव या सुझाव...
झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र भी बगैर नेता प्रतिपक्ष के चलेगा। ऐसी नौबत शायद ही किसी राज्य में आई होगी। शुरू में भाजपा के विधायकों ने इस मसले पर सदन को लगातार बाधित रखा, लेकिन इस पद के दावेदार बाबूलाल मरांडी के दल-बदल का मामला न्यायिक प्रक्रिया की दौर से गुजर रहा है। ऐसे प्रकरण में जल्द फैसला आने की उम्मीद भी नहीं है। भाजपा के साथ लंबे अरसे तक जुड़े रहे निर्दलीय विधायक सरयू राय ने बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता देने की वकालत कर एक बहस छेड़ दी है। हर मसले पर स्पष्ट राय रखने वाले सरयू राय के इस रुख के राजनीतिक मायने-मतलब निकालने वालों की भी कमी नहीं है। हालांकि वे भले लाख मना करें, लेकिन इससे यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि भाजपा से उनका पुराना लगाव खत्म नहीं हुआ है।
अपेक्षाओं का बोझ
झारखंड कांग्रेस में अरसे बाद हुए फेरबदल का नतीजा तो बाद में निकलेगा, लेकिन जिस तरह से नई टीम का स्वागत हुआ है, उससे अंदाजा लगने लगा है कि आने वाले दिनों में हालात कैसे होंगे। कमान बदलने की कवायद लंबा चलने का एक बड़ा कारण यह भी है कि सबको विश्वास में लेकर आगे बढ़ना एक मुश्किल टास्क है। नए अध्यक्ष राजेश ठाकुर को इससे दो-चार होना पड़ेगा। रांची आने के पहले उन्होंने नई टीम के साथ नई दिल्ली में वरीय नेताओं संग मेल-मुलाकात कर यह संदेश भी दिया है कि वे सबकी सलाह से आगे बढ़ने में यकीन रखते हैं। यह जरूरी भी है। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि यहां जितने नेता हैं, उतने ही गुट भी। पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन में है, इसलिए अपेक्षाओं का बोझ भी ज्यादा होगा। कांग्रेस भवन में चर्चा इस बात की है कि सबसे बड़ी चुनौती उनको संभालना है, जिनकी आदत में पद पर बैठने वालों के खिलाफ विरोध शामिल हो चुका है।
अटकलों का दौर
सत्ता एक साथ कई मोर्चे पर कारगर होती है, और जब यह हाथ में नहीं होती, तो किचकिच कुछ ज्यादा ही होती है। कमल दल से भी कुछ ऐसे ही खटपट की अटकलें छनकर आ रही हैं। संकट अलग-अलग धड़े की दावेदारी से लेकर हिसाब-किताब तक का है। वैसे अनुशासन के डंडे की डर से कोई खुलकर सामने नहीं आ रहा, लेकिन जहां आग लगी हो, धुंआ भी आखिरकार वहीं से निकलेगा। एक कद्दावर का नाम आगे बढ़ाया गया है, लेकिन बात कुछ आगे बढ़ती दिख नहीं रही। कोई ज्यादा जोखिम उठाने के मूड में नहीं है। पिछले चुनाव के हिसाब-किताब पर भी कईयों की नजर है। अभी तक सबकुछ फाइनल नहीं हुआ है। बात ऊपर तक पहुंचाई गई है कि मूलधन से अधिक ब्याज का लफड़ा है। जांच हो जाए, तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
हुजूर की बात
साहब बड़े काबिल हैं और इनकी काबिलियत के चर्चे भी दूर-दूर तक हैं। जितना करते नहीं, उससे ज्यादा खुद चर्चा करते हैं। जिसको एक बार धर लिया, तो वह छूटने का बहाना खोजने लगता है। खैर, इनकी महिमा जमीन के शौकीनों के बीच आजकल है। जिनकी गर्दन फंसी है, वे बेचारे बताते फिर रहे हैं कि हुजूर सब इनका ही किया धरा है। न अपनी टांग फंसाते, न आगे बढ़ती बात। फाइल ऐसा बढ़ाया है कि सबकुछ बंटाधार होने का खतरा सता रहा है। वैसे हाकिम इसकी ज्यादा टेंशन नहीं लेते। इनका काम सामने वाले को तनाव देना है। ऐसे ही फेर में ज्यादा दिन कहीं टिकते नहीं। पंगा लेना इनकी आदत में शुमार है। बिना इसके वे ज्यादा दिनों तक रहते नहीं। सांसारिक मोह-माया से ऐसी ही दूरी बनी रही, तो हुजूर छवि बिगाड़कर ही दम लेंगे।