घने जंगल के बीच स्थित है आस्था का केंद्र साईं धाम
लापुंग में स्थित साईं धाम में लोगों की भीड़ उमड़ती है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं।
जागरण संवाददाता, रांची : श्रद्धा और भक्ति के लिए सबसे बड़ी जरूरत मानसिक शांति होती है। यही कारण है कि ऋषि और महात्मा शांति की खोज में वन की यात्रा करते थे। मगर आज भी लापुंग प्रखंड के मनोरम प्राकृतिक वादियों के बीच बीच सरसा में स्थित है साईं मंदिर। ये मंदिर आध्यात्मिक और अनूठी स्थापत्य कला के कारण सैलानियों को बरबस ही आकर्षित करता है। साईं का ये धाम घने जंगलों के बीच 35 एकड़ में फैला है। यहां पहुंचते ही सैलानी अभिभूत हो उठते हैं। सालों भर सैलानी यहा के शांत वातावरण और प्रकृति की खूबसूरत नजारों का आनंद लेने के लिए आते रहते हैं। साईं मंदिर में प्रत्येक गुरुवार और रविवार को साईं भक्तों का ताता लगा रहता है। इस दिन साईं बाबा की विशेष पूजा की जाती है। इसके साथ ही सुबह से शाम तक लगातार भजन का आयोजन किया जाता रहता है। आधुनिक परंपरा और संस्कृति के साथ बाबा के भव्य दर्शन तथा वनभोज के लिए पूरे राज्य में यह अपने तरीके का पहला पर्यटन स्थल है। हर साल यहां 23 और 24 अप्रैल को स्थापना दिवस मनाया जाता है। ज्ञान रंजन ने रखी थी आधारशिला
लापुंग में इस साई मंदिर की आधारशिला स्व. ज्ञानरंजन ने 9 जून 1993 को रखी थी। लगभग 22 लाख की लागत से 22 अप्रैल 1994 में विशेष अनुष्ठान करके मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गयी। जयपुर से साईं बाबा की संगमरमर की आदमकद मूर्ति बनवायी गई। महाराष्ट्र के शिरडी साईं बाबा की अखंड धुनी लाकर यज्ञशाला स्थापित की गई। इस मंदिर का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने किया। प्रत्येक दिन मंदिर में मुख्य पुजारी मनोज पाडेय व आदित्य पाडेय के नेतृत्व में सुबह पांच बजे से काकड़ आरती, धूप आरती, मध्याह्नन आरती, संध्या आरती सेज आरती समेत अन्य कार्यक्रम आयोजित होते है। यहां पर्यटक पूरे परिवार के साथ जंगल के किनारे वन भोज का आनंद लेने के लिए आते हैं। पर्यटन विभाग की ओर से मंदिर परिसर में दो यात्री शेड बनाए गए हैं। यहां सारे कार्यक्रम शिरडी सरसा साईं मंदिर ग्राम विकास केंद्र संचालित करता है। विशेष है मंदिर की वास्तुकला-
साई धाम की वास्तुकला काफी विशेष है। इस मंदिर की बनावट सप्तकोणीय है, जिसमें 7 दरवाजे हैं। मंदिर की दीवारें कर्रा से मंगाए गए पत्थरों से बनी हैं और खप्पड़ की छत बनाई गई है। साईं मंदिर में साईं बाबा की मूर्ति के अलावा दत्तात्रेय तथा गणेश जी का चित्र लगा है। मंदिर के अंदर दो नगाड़े तथा ज्ञानरंजन का चित्र भी लगा है।
सर्व धर्म सदभावना के प्रतीक हैं साई बाबा-
साई बाबा एक ऐसे संत हैं जिन्हें हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी धमरें के लोग समान श्रद्धा-भाव से पूजते हैं। जात-पात के भेद-भाव से ऊपर उठकर लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया। कभी भी किसी धर्म की अवहेलना नहीं की, बल्कि सभी धमरें का सम्मान करके मानवता को ही सबसे बड़ा धर्म बताकर जीवन जीने की शिक्षा प्रदान की। इनकी आराधना किसी भी विशेष मुहूर्त या वार को की जा सकती है, परंतु गुरुवार को इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है। गुरुवार गुरु का दिन माना जाता है। सभी धमरें में गुरु का खास स्थान माना जाता है, गुरु ही हमें आदर्श जीवन जीने के सूत्र बताते हैं। साईं बाबा को गुरु मानने वाले सभी भक्त इस दिन बाबा के मंदिर जाते हैं। ग्रामीणों को मिला रोजगार -
साई धाम की स्थापना के बाद सरसा गांव के लोगों के जीवन स्तर में काफी सुधार आया है। इस इलाके में पहेल काफी गरीबी थी। गांव से लोगों का पलायन काफी ज्यादा हुआ करता था। मगर मंदिर की स्थापना के बाद से यहां लोगों को रोजगार मिल गया है। लोग फूल और प्रसाद के स्टाल के साथ खाने पीने की दूकान तक लगाये हुए हैं। इससे उन्हें कमाने के लिए गांव से बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। यहां के एक स्थानीय दुकानदार मेघराज बताते हैं कि पूरा गांव किसी न किसी प्रकार से मंदिर से जुड़ा हुआ है। भक्तों के आने से गांव के लोगों की अच्छी कमाई हो जाती है। कैसे पहुंचे मंदिर -
रांची-गुमला मुख्य पथ पर स्थित है साई धाम। यहां पहुंचने के लिए सबसे रांची से बेड़ो पहुंचना होगा। बेड़ो से जमटोली जाने वाले रास्ते पर 12 किमी अंदर जाने के बाद सरसा गांव के बाहर ही साई मंदिर का भव्य द्वार बना हुआ है। यहां से बाएं मुड़कर सीधे मंदिर पहुंच सकते हैं। रांची से बेड़ो की दूरी लगभग 35 किमी है। मुख्यमार्ग पर होने के कारण भक्तों को यहां आने में किसी प्रकार की दिक्कत नहीं होती है। वहीं जो लोग बेड़ो से बस से यात्रा करना चाहते हैं, उन्हें साई मंदिर के लिए सीधे छोटी ऑटो और पब्लिक बस मिल जाती है।