RIMS में दिखा डॉक्टर का अमानवीय चेहरा, कैंसर की मरीज को नहीं लिया भर्ती Ranchi News
Jharkhand. परिजनों के अनुसार डॉक्टर ने मरीज की रिपोर्ट तक सही ढंग से नहीं देखी। मरीज को भर्ती करने के लिए कहने पर डॉक्टर ने कहा कि ज्यादा दिन नहीं बचेगी।
रांची, [अमन मिश्रा]। रिम्स के कैंसर विभाग में भर्ती होने वाले मरीजों को डॉक्टर भर्ती करने की बजाय उनका भरोसा तोड़ते हुए घर ले जाने की सलाह दे रहे हैं। नतीजतन मरीज के परिजन विभाग के बाहर मरीज को लिटाकर खुद को कोसने को मजबूर हंै। रिम्स के कैंसर विभाग का यह उदासीन रवैया मंगलवार को देखने को मिला। ग्लैंड कैंसर से पीडि़त जमशेदपुर के पोटका विस क्षेत्र की रहने वाली 30 वर्षीय मरीज बबीता सरदार को इलाज के लिए रिम्स के आंकोलॉजी विभाग लाया गया।
यहां इलाज करने की बजाय डॉक्टर ने परिजनों से कह दिया कि मरीज को घर ले जाएं। यह अब ज्यादा दिन नहीं बचेगी। उसका कैंसर का स्तर काफी बढ़ गया है। परिजनों के अनुसार डॉक्टर ने मरीज की रिपोर्ट तक सही ढंग से नहीं देखी। जब परिजनों ने मरीज को भर्ती करने की बात कही तो डॉक्टर ने भर्ती करने से साफ इंकार कर दिया। मरीज के साथ उसकी दो बहनें, भाई और पिता सभी बेबस होकर मरीज के साथ पड़े रहे। परिजन रिम्स निदेशक डॉ. डीके सिंह के पास भी गए तो उन्हें रिम्स अधीक्षक के पास भेज दिया गया। देर शाम तक मरीज को भर्ती नहीं किया गया।
अगस्त से रिम्स का लगा रहे चक्कर
मरीज के पिता कांग्रेस सरदार ने बताया कि मरीज के कैंसर के बारे में एक साल पहले पता चला। तब से लगातार अस्पतालों के चक्कर लगाकर इलाज के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने बताया कि मरीज की पहले स्थानीय सदर अस्पताल में जांच कराई गई। इसके बाद स्थिति गंभीर बताकर जमशेदपुर के एमजीएम हॉस्पिटल में भर्ती कराया। जहां से अगस्त में उसे रिम्स रेफर कर दिया।
रिम्स के कैंसर विभाग में डॉक्टर ने कुछेक जांच लिखकर मरीज को डिस्चार्ज कर दिया। इसके बाद सितंबर में भी परिजन उसे लेकर रिम्स पहुंचे। लेकिन पैसे व आयुष्मान कार्ड के अभाव में उसे वापस लौटा दिया गया। हाल में जब उन्होंने बायोप्सी की रिपोर्ट देखी तब वर्तमान की गंभीर स्थिति का पता चला। डॉक्टर से दिखाने पहुंचे तो उन्होंने एडमिशन लेने से साफ इन्कार कर दिया।
बहुत गरीब हैं, डॉक्टर ही सहारा था अब मरीज को लेकर कहां जाए
कैंसर पीडि़त बबीता की छोटी बहन जसमति सरदार ने बिलखते हुए कहा कि हम लोग बहुत गरीब हैं। पहले भी जब हॉस्पिटल पहुंचे तो डॉक्टरों ने पैसे की बात कही। पैसा नहीं होने के कारण मरीज को वापस घर लेकर चले गए। तब आयुष्मान कार्ड भी नहीं था। अब आयुष्मान कार्ड बन गया तो डॉक्टर ही भर्ती लेने से इंकार कर रहे है। पिता ने कहा कि अस्पताल मरीज को ठीक करने के लिए लाया जाता है। हर बार जरूरी नहीं है कि मरीज की जान बच ही जाए, लेकिन जब डॉक्टर ही आस तोड़ देंगे तो मरीज तो जीते जी मर जाएगा।
'मरीज की जांच अगस्त में करने के बाद उसे भर्ती कराने को कहा गया था लेकिन मरीज के परिजन उसे अपने साथ ले गए थे। अब जब मरीज कैंसर के फाइनल स्टेज पर पहुंच गया है तब जाकर परिजन उसे भर्ती कराने के लिए लेकर आए हैैं। इस स्टेज में इस तरह के मरीजों को बेस्ट स्पोर्टिव केयर एट होम की सलाह दी जाती है।' -डॉ. रोहित झा, एसिस्टेंट प्रोफेसर सर्जिकल ओंकोलॉजी, रिम्स।
'मामले की जानकारी मुझ तक नहीं पहुंची है। अगर इस संबंध में कोई मामला मेरे संज्ञान में आएगा तो इस पर कार्रवाई की जाएगी।' -डॉ. डीके सिंह, निदेशक, रिम्स।