बोकारो में सर्वाधिक, हजारीबाग में सबसे कम ताल-तलैया
रांची : झारखंड में 'वेटलैंड' की संख्या को लेकर चल रही अटकलें समाप्त हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर झारखंड सरकार ने स्पेस अप्लीकेशन सेंटर की मदद से इसकी पहचान कर ली है। झारखंड में 'वेटलैंड' की कुल संख्या 5649 है। सबसे अधिक 1631 'वेटलैंड' बोकारो में है। इस मामले में गिरिडीह दूसरे तथा उप राजधानी दुमका तीसरे स्थान पर है। हजारीबाग में सबसे कम 27 'वेटलैंड' हैं।
विनोद श्रीवास्तव, रांची : झारखंड में 'वेटलैंड' (जलाशय, बाध, तालाब आदि) की संख्या को लेकर चल रही अटकलें समाप्त हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर झारखंड सरकार ने स्पेस अप्लीकेशन सेंटर की मदद से इसकी पहचान कर ली है। झारखंड में 'वेटलैंड' की कुल संख्या 5649 है। झारखंड में सबसे अधिक 1631 'वेटलैंड' बोकारो में है। इस मामले में गिरिडीह दूसरे तथा उप राजधानी दुमका तीसरे स्थान पर है। हजारीबाग में सबसे कम 27 'वेटलैंड' हैं। 2.25 हेक्टेयर (5.5 एकड़) में बना जलाशय ही वेटलैंड की सूची में शामिल किया गया है। राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग ने इससे संबंधित रिपोर्ट वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग को तीन मई को भेजी है।
झारखंड में 'वेटलैंड' को लेकर अबतक न तो किसी सरकारी एजेंसी और न ही किसी गैर सरकारी संस्थान के पास ही पुख्ता और प्रमाणिक डाटा था। अबतक पुराने गजट आदि के आधार पर 'वेटलैंड' की संख्या को लेकर कयास लगाए जाते रहे थे। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार झारखंड में ऐसी भूमि लगभग 25 फीसद है। इनमें से 10 से 12 फीसद भूमि पर अतिक्रमण है, जो पारिस्थितिकीय संतुलन को चुनौती दे रही है। इससे इतर इसे संरक्षित रखने का प्रयास नहीं के बराबर हो रहा है।
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यहां इतने वेटलैंड
जिला संख्या
चाईबासा 435
साहिबगंज 60
लातेहार 95
चतरा 152
गोड्डा 272
गुमला 54
हजारीबाग 27
पाकुड़ 35
सिमडेगा 49
बोकारो 1631
रांची 82
जमशेदपुर 203
पलामू 122
गिरिडीह 697
सरायकेला-खरसावां 62
खूंटी 80
दुमका 665
गढ़वा 174
रामगढ़ 50
जामताड़ा 324
देवघर 70
लोहरदगा 175
धनबाद 102
कोडरमा 33
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वेटलैंड की बदहाली की बानगी है राजधानी :
राजधानी रांची, जहां सरकार से लेकर उनके शीर्षस्थ पदाधिकारी रहते हैं, वेटलैंड की बदहाली की सबसे बड़ी बानगी है। शहर की लगभग आधी आबादी को जलापूर्ति करने वाले गोंदा तथा हटिया डैम के इर्द-गिर्द जहां आबादी का फैलाव होता जा रहा है, वहीं हरमू और स्वर्णरेखा नदी के बड़े हिस्से का अतिक्रमण कर लिया गया है। और तो और विकास के नाम पर दर्जनों तालाब भर दिए गए। यह स्थिति तब है, जबकि 'वेटलैंड' (आर्द्र भूमि) एरिया के अंतिम छोर से कम से कम 200 मीटर की परिधि में किसी तरह के निर्माण कार्य पर प्रतिबंध है, ऐसे में जैव विविधता का हश्र क्या होगा, भविष्य तय करेगा।
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वेटलैंड की जरूरत क्यों? :
अगर आप चाहते हैं कि धरती की उर्वरता बनी रहे, भू-गर्भ जल का स्तर पाताल न छुए, बाढ़ से कुछ हदतक ही सही, राहत मिले तो 'वेटलैंड' को संरक्षित करें। दरअसल 'वेटलैंड' सूखे की स्थिति में जहां पानी को बचाने में मदद करते हैं, वहीं बाढ़ के हालात में यह जलस्तर को कम करने व सूखी मिट्टी को बांध कर रखने में मददगार होते हैं। और तो और 'वेटलैंड' वन्य प्राणियों के लिए फीडिंग (भोजन), ब्रीडिंग (प्रजनन) ड्रिंकिंग (पेय) क्षेत्र है।
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