धर्म-कर्म
कोरोना में सामाजिक संस्थाएं खुलकर मदद कर रही हैं।
नीलमणि चौधरी, रांची
कोरोना में धर्म से कल्याण
भारतीय संस्कृति में धर्म और अध्यात्म का विशेष महत्व है। एक दूसरे का सहयोग और गरीबों को दान सनातन धर्म का मूल है। कोरोना संक्रमण से पैदा हुए संकट काल में यह सबसे ज्यादा बढ़ चढ़कर दिखा। लाखों लाख लोग अलग-अलग शहरों में फंस गए। धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने आगे बढ़कर लोगों की मदद की। भोजन कराया। रहने की व्यवस्था की। धर्म के नाम पर परोपकार करने वाले अगर धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने इस वक्त अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई होती तो भला सरकार के भरोसे यह नैया कहां पार लग पाती। राजधानी में सैकड़ों संस्थाएं लॉक डाउन की शुरुआत से अब तक निरंतर निस्वार्थ भाव से गरीबों की मदद कर रही हैं। इन्हें सेवा कार्य में जुटा देखकर कई राजनीतिक संगठनों ने भी मोर्चा संभाल लिया। जैसे भी हो, इस मुसीबत में एक दूसरे का हाथ थामने से लाखों लोगों का भला हो गया। महावीर के पुजारी
अखाड़े में दांव आजमाने वाले महावीर की महिमा जानते हैं। मैदान वही मारता है जिसपर हनुमानजी की कृपा हो। राची में मामला थोड़ा आगे बढ़ गया है। महावीर के नाम से बने संगठन में राजनीति में एंट्री ले ली है। लिहाजा महावीर के भक्तदो खेमों में बंट गए हैं। दोनों के अपने राग अपने ताल। दोनों गुट अपना-अपना अध्यक्ष घोषित कर खुद को असली दूसरे को नकली बताने में जुटे हैं। आलम यह है कि मामला जिले के मुखिया तक पहुंचा। उन्होंने दोनों पक्षों को बुलाकर मामला निपटाने की भी कोशिश की, लेकिन दांव-पेच देखकर पंचायती करने से साफ मना कर दिया। राम भक्त हनुमान ने भी नहीं सोचा होगा कि कलियुग में ऐसा दिन भी आएगा, जब उनके नाम पर ही गुटबाजी और पदबाजी शुरू हो जाएगी। अमरत्व प्राप्त वीर हनुमान इनलोगों को सदबुद्धि दें कि सही गलत सारा हिसाब एक झटके में हो जाए। लॉकडाउन में प्रभु का रथ फंसा
कोरोना संक्रमण ने जहां भागमभाग वाले जीवन की रफ्तार रोक दी है। हर आम से खास तक का आवागमन बाधित हो गया। इसमें प्रभु जगन्नाथ का रथयात्रा भी फंस गया है। हर साल प्रभु जगन्नाथ अपने घर से मौसी बाड़ी तक की रथ यात्रा करते रहे हैं। इस बार यात्रा की तैयारियों पर लॉकडाउन का पेच है। हर बार भक्तों का हुजूम प्रभु के रथ को खींचकर गंतव्य तक पहुंचाता था। प्रभु की भृकुटि ऐसी चढ़ी है कि लोग अपना घर छोड़ने में डर रहे हैं। प्रभु का रथ कैसे खींचने की सोचें। वहीं, मंदिर समिति के सामने दुविधा आ खड़ी हुई है, करें तो करें क्या एक तरफ रस्म तो दूसरी तरफ जन सामान्य की सुरक्षा का प्रश्न है। अब ऐसे में सभी दुविधा में है। अब सारे संकट का हल प्रभु के पास है। प्रभु ही इस संकट से भी पार लगाएंगे। अब ऑनलाइन योग-सत्संग
सनातन काल से चली आ रही परंपरा अब नई जरूरतों के हिसाब से बदल रही है। योग-आध्यात्म अब पूरी तरह तकनीक से जुड़ गया है। कोरोना संक्रमण के दौरान पैदा हुए हालात ने इसे समय की जरूरत बना दिया है। एक तरफ जहा खुद को स्वस्थ रखने के लिए योग जरूरी है वहीं दूसरी तरफ स्वस्थ रहकर योग करने के लिए शारीरिक दूरी का ख्याल रखना अनिवार्य है। अब ऑनलाइन योग की डिमाड काफी बढ़ गई है। राजधानी में कई योग केंद्र हैं। योग साधक अब आश्रम आने से तौबा कर रहे हैं। लिहाजा अब इन साधकों को रांची के योग संस्थान के संन्यासी ऑनलाइन योग सिखा रहे हैं। योगदा सत्संग आश्रम में यह पहल जबरदस्त हिट हो रही है। ऑनलाइन सत्संग में बड़ी संख्या में साधक जुड़ते हैं। सफल वही हो पाता है जो हर बदलाव के लिए तैयार रहता है। यह तो योग ही है।