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धर्म-कर्म : नीलमणि

इन दिनों पंडित जी का काम थोड़ा अपडेट कर गया है। पहले शादी कराते थे अब सब कुछ का ठेका ले रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Jun 2020 09:53 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jun 2020 09:53 PM (IST)
धर्म-कर्म : नीलमणि

मैरेज हॉल दिला रहे पंडित जी

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इन दिनों पंडित जी का काम थोड़ा अपडेट कर गया है। पहले शादी के फेरे लगवाते थे। आज कल मैरेज हॉल तक दिला रहे। इस मौसम में पूजा पाठ पर संकट खड़ा है। कमाई के विकल्प लगभग खत्म हो गए हैं। लिहाजा जो काम मिल रहा। वही कर लेने में भलाई है। पहले मंडप मिल जाए। विवाह में पुरोहित का काम तक पक्का है। पार्टी को पहले यह बताना है कि इस दौर में शुभ काम कराए जा सकते हैं। रास्ते में आ रही सारी मुश्किलों का समाधान मिल सकता है। बस मन बनाना होगा। एक बार मन बनाई। आधा काम पंडित जी ही दौड़ धूप कर करा देंगे। पहले से शादी-विवाह का खर्चा भी कम हो गया है। तरीका जरूर कुछ बदल गया है। पहले वैदिक रीति रिवाज का अनुपालन होता था। अब सरकारी नियम कानून भी साथ-साथ जुड़ गया है। जो रही इच्छा।

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खर्च मान नहीं रहा, सरकार समझ नहीं रही

अनलॉक की सुगबुगाहट हुई तो मंदिर के पुजारी व संचालनकर्ताओं ने राहत की सांस ली चलो अब दिन बहुरेंगे। एक-एक कर दुकानें, फैक्ट्रियां खुलते गई, लेकिन झारखंड में धार्मिक स्थलों पर कोई निर्णय ही नहीं हुआ। इसकी सबसे ज्यादा मार मंदिरों पर पड़ रही है। मंदिर का ताला खुले ना खुले पूजा-अर्चना तो पूर्ववत ही चलेगा। खर्च मान नहीं रहा और और सरकार है कि समझते हुए भी समझना नहीं चाहती। अब खजाना भी जवाब देने लगा है। पुजारी व मंदिर संचालक करे भी तो क्या करें। सरकार को कौन समझाये कि बाजारों में लगने वाली भीड़ से भी कोरोना फैल सकती है। रही बात मंदिर की तो आजकल मंदिरों से ज्यादा तो मोबाइल दुकानों पर भीड़ होती है। एक शिक्षा का मंदिर है जो सरकार की नहीं सुन रही और धर्म मंदिर की बात सरकार सुनना नहीं चाहती है।

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भक्त की चतुराई से भगवान भी दंग रह जाते हैं

गांव-घर में एक से एक वीर की कहानी सुनने को मिलेगी जिसने भगवान को ही ठग लिया।कोरोना काल में हाइटेक हुए आस्था का हाल भी कुछ ऐसा ही है। श्रद्धालु की चतुराई से भगवान भी दंग रह जाते हैं। संक्रमण के कारण मंदिर तो जा नहीं सकते तो घर बैठे ही ऑनलाइन दर्शन कर ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाते हैं। जबकि भगवान कैसे ऊर्जावान रहेंगे इसकी कोई चिंता नहीं। साक्षात दर्शन होते थे तो बड़े नोट न सही कुछ न कुछ सिक्के ही दानपात्र में गिरा देते थे। हालांकि बड़े दानदाताओं की भी कमी नहीं है। खैर, इसी बहाने मंदिर का संचालन भी हो जाता था। लॉकडाउन में पूजा-पाठ हाइटेक क्या हुआ लोग सिर्फ अपनी ऊर्जा की चिंता में ही लगे हैं। भक्त मेरे ऑनलाइन दर्शन संभव है तो ऑनलाइन चढ़ावा भी तो संभव है।

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प्रधानता की नूराकुश्ती

प्रभु के दरबार में न तो कोई बड़ा और न ही कोई छोटा। न माया के लिए जगह,न ही दिखावे के कोई मायने। हमारे धर्म-शास्त्र सनातन काल से अलग-अलग तरीके से यही सुनाते-समझाते नजर आ रहे। इसके बावजूद भ्रम और मोह अक्सर बड़े-बड़े ज्ञानियों के रास्ते में आकर खड़े हो जाते हैं। महाज्ञानी भी कभी-कभी अज्ञानता के शिकार हो जाते हैं। रांची के एक प्रसिद्ध मंदिर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। पद के लिए गुट बन गए हैं। गुट भक्ति और श्रद्धा पर हावी हो गए हैं। गुटो में बंटे कर्ताधर्ता खुद को दूसरे से ज्यादा श्रेष्ठ दिखाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं। एक गुट में अब भी राजशाही का पुट दिखता है तो दूसरा गुट खुद को बड़ा सेवक जताने में पीछे नहीं रहता है। बड़ा अनुष्ठान सामने है। लिहाजा गुटबाजी भी चरम पर है। कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। अलग-अलग सुर, अलग-अलग दरबार से निकल रहे हैं।


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