राज्य ब्यूरो, रांची: विधानसभा अध्यक्ष का कार्यभार विधानसभा की कार्यवाही में बेहद ही महत्वपूर्ण होता क्योंकि सदन की कार्यवाही का संचालन पूरी तरह से उसी का होता है। चुंकि विधानसभा से ही सभी तरह के कानून और बजट पास किए जाते हैं जिससे पूरे राज्य की दशा और दिशा निर्भर करती है इसीलिए विधानसभा की कार्यवाही की ओर पूरे प्रदेश का ध्यान रहता है।
सदन को सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी विधानसभा अध्यक्ष की होती है। बीते साढ़े तीन सालों में ऐसे कई मौके आए जब विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्रनाथ महतो ने उन जटिल मसलों को बेहतर समन्वय से सुलझाया, जिसके कारण गतिरोध की नौबत आती थी।
स्लोगन लिखा हुआ टी-शर्ट पहनकर सदन में आने को लेकर उनका हालिया नियमन इसकी एक बानगी है। शून्यकाल की 15 सूचनाओं को 25 कर ज्यादा से ज्यादा विधायकों को क्षेत्र से संबंधित सवाल उठाने का मौका देना भी उनकी इसी सोच का परिणाम है कि विधानसभा के सदस्यों की अधिकाधिक भागीदारी कार्यवाही के दौरान हो। वे सदन को लोकतांत्रिक तरीके से संचालित करने के प्रबल पक्षधर हैं।
उनका यह भी मानना है कि विधायी प्रक्रियाओं के प्रति युवाओं में जागरूकता फैलाना भी आवश्यक है। इसी प्रकार सदन के कार्य संचालन नियमों को लेकर भी विधायकों की संवेदनशीलता बेहद जरूरी है। विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्रनाथ महतो से सदन की कार्यवाही, विपक्ष के आरोपों समेत तमाम मुद्दों पर दैनिक जागरण के राज्य ब्यूरो प्रमुख प्रदीप सिंह ने विस्तार से बातचीत की।
विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आपको लगभग साढ़े तीन साल पूरे हो गए। इस कार्य अवधि को आप किस तरह देखते हैं?
देखिए, विधायी व्यवस्था निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह पूर्व से चली आ रही है। व्यवस्था में समय-समय पर परिवर्तन आवश्यक है। कार्य संचालन के हित में नियमों को संशोधित करने से लेकर बदलने तक का प्रविधान है। अब इस बदलाव का भी असर होता है। जैसे दसवीं अनुसूची नियमावली में सदस्यों को निरर्हित (निरस्त) किए जाने के विषय पर स्वत: संज्ञान लेने संबंधी नियम को हमने विलोपित किया।
मुझे लगा कि यह न्यायसंगत नहीं मालूम पड़ता है। इसी प्रकार शून्यकाल के लिए एक दिन में 15 की बजाय 25 सूचनाएं स्वीकार किए जाने का नियम पारित कराया। शून्यकाल की सूचनाओं को 50 शब्दों तक करने का नियमन दिया गया। मुझे तो लगता है कि 25 भी पर्याप्त नहीं है।
अपनी बातों से अवगत कराना सदस्यों का अधिकार है। सत्र आहूत होने के बाद सदस्यों द्वारा कम से कम सात दिनों और अधिक से अधिक 14 दिनों पूर्व सूचना दिए जाने के नियम का, अधिक से अधिक 14 दिनों पूर्व को कम से कम दिनों और 14 दिनों की पूर्व प्रश्न की सूचना दिए जाने का नियम पारित किया गया।
मुख्यमंत्री प्रश्नकाल संबंधी नियम को विलोपित किए जाने के पीछे क्या कारण रहा?
-सत्र के दौरान मुख्यमंत्री प्रश्नकाल हुआ करता था। बिना सूचना के सीएम से सदन में सदस्यों द्वारा सवाल पूछा जाता था। बिना किसी तैयारी के मुख्यमंत्री को उत्तर देना पड़ता था। मुख्यमंत्री भी असहज महसूस करते थे। इसमें नीतिगत विषयों पर सवाल अपेक्षित थे।
नीतिगत से अलग होकर सवाल उठने लगे। इससे प्रश्नों की गंभीरता कम हो रही थी। सवाल नीतिगत नहीं होते थे तो जवाब टालना पड़ता था। इससे सदस्यों के रोष का शिकार होना पड़ता था। यही कारण है कि इसे विलोपित किया गया।
चूंकि मंत्रिमंडल का सामूहिक निर्णय होता है। सदस्यों को सवाल उठाने के अनेक अवसर मिलते हैं, जब वे अपनी जिज्ञासा शांत कर सकते हैं। यह गलत भी नहीं लगा, इसलिए इसे समाप्त कर दिया गया।
कार्यस्थगन को लेकर नियमन के पीछे क्या वजह रही? क्या इससे सदन के संचालन में कोई परेशानी आ रही थी?
-देखिए, सदन में परंपरा के अनुसार कार्यवाही आरंभ होते ही प्रश्नकाल के पहले कार्यस्थगन प्रस्ताव लाया जाता था। परिणाम यह होता था कि प्रश्नकाल बाधित होता था। हमने देखा कि इससे लोक महत्व के प्रश्न नहीं उठ पाते। प्रश्नकाल बाधित हो रहा था। इसे देखते हुए प्रश्नकाल के बाद और शून्यकाल के पहले इसे लिए जाने का नियमन दिया गया। इससे प्रश्नकाल निर्बाध रूप से हो पा रहा है।
सदस्यों के आचरण, मर्यादा को लेकर भी आप समय-समय पर चिंता प्रकट करते रहे हैं। तथ्यहीन आरोप के भी प्रकरण सामने आए। इस विषय पर भी आपने नियमन दिए।
-सही बात हो तो उठाने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सदस्यों से बेहतर आचरण अपेक्षित है। संसदीय परंपरा में जो उचित नहीं है, उसे रोकने का प्रयास किया। सदस्य विरोध प्रदर्शन करते थे, जो मर्यादा घटने जैसा लग रहा था। स्लोगन युक्त परिधान पहनकर सदन में नहीं आने का नियमन दिया।
इसी प्रकार यह भी नियमन दिया गया कि बिना दस्तावेज व तथ्य के लांछन या आरोप नहीं लगाएं। आवश्यक प्रमाण के साथ आरोप लगाएं, चाहे वे पक्ष या विपक्ष के सदस्य हों। इसी प्रकार आश्वासनों को लेकर भी हमने सतर्क किया कि मंत्री अगर सदन में आश्वासन दे रहे हैं तो शीघ्र उसके निष्पादन की दिशा में भी कार्रवाई हो।
कई बार विधायकों की यह शिकायत होती है कि उनके साथ भेदभाव होता है। उन्हें बोलने का समय नहीं दिया जाता।
-लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबको अपना पक्ष रखने का अधिकार है। अगर कोई सदस्य दूसरे को सवाल पूछने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं तो उनका आसन पर लांछन लगाना क्या उचित है? कुछ दिन पूर्व भाजपा के शशिभूषण मेहता ने ऐसा आरोप लगाया। उनके दल को आवंटित समय था।
दल की तरफ से जब समय निर्धारित नहीं करेंगे, तब आसन को दिक्कत हो जाता है। इसमें आसन क्या कर सकता है? उनके दल को निर्धारित समय दिया गया था। मेरा प्रयास है कि सभी अपना पक्ष रखें। नए सदस्य आक्षेप लगाएं तो यह सही नहीं है।
सदस्यों द्वारा पूछे गए सवालों के उत्तर को लेकर कई बार परेशानी सामने आती है। सदस्य इसे लेकर चिंता प्रकट करते हैं।
इसके लिए पदाधिकारियों को सतर्क किया जाता है। सदस्यों के प्रश्नों के परिप्रेक्ष्य में ही उत्तर आना चाहिए। कभी-कभी इस निर्देश की अनदेखी की जाती है, जो अनुचित है।
विधानसभा में विधायी कार्यों के प्रति जागरूकता के लिए आपके स्तर से कई प्रयास हुए। आगे की क्या योजना है?
युवाओं को विधायी कार्यों के प्रति जागरूक करने के लिए युवा संसद का आयोजन किया जाता है। विधि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और कानून के जानकारों की उपस्थिति में केंद्र व राज्य संबंध को लेकर बौद्धिक विमर्श कराया।
विधानसभा की कार्यवाही समेत अन्य जानकारी के लिए झारखंड विधानसभा टीवी का प्रयोग अनूठा है। इसे कई विधानसभाओं ने अंगीकार किया है। मेरे कार्यकाल में विधानसभा नए भवन में शिफ्ट हुआ। मुझे आशा है कि अगली विधानसभा जब चुनकर आएगी तो कार्यवाही पूरी तरह पेपरलेस हो जाएगा।