नगर सरकार : किस करवट बैठेगा ऊंट
राजधानी में इन दिनों टेंडर की जंग चल रही है। सबकी निगाह उसी पर है।
मुजतबा हैदर रिजवी, रांची
राजधानी में इन दिनों टेंडर की जंग चल रही है। सबकी निगाह इस टेंडर युद्ध पर है। साहब जीतेंगे या मैडम इसे लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। हाइ कोर्ट ने टेंडर रद किया था तो लगा कि मैडम बाजी मार ले गई। साहब ने कदम पीछे करते हुए टेंडर रद कर दिया। लेकिन मैडम की खुशी ज्यादा दिन नहीं चली। 2 दिन भी न गुजरे थे कि नए कलेवर का टेंडर आ गया। इस नए टेंडर के बाद साहब और मैडम में फिर जुबानी जंग शुरू हो गई है। साहब भी कम थोड़े ही हैं देश का सबसे बड़ा इम्तिहान पास करके साहब बने हैं। पूरी नजर रहती है कि मैडम क्या बोलीं। मैडम कुछ बोलीं उस पर साहब का पूरा बयान आ जाता है। साहब के साथ पूरी सरकार है। अब देखना है इस टेंडर युद्ध में जीत का ऊंट किस करवट बैठता है। सूबे के पुराने मुखिया
मैडम को सूबे के पुराने मुखिया दरकिनार कर के रखते थे। कोई भी सरकारी कार्यक्रम हो पुराने मुखिया मैडम को नहीं बुलाते थे। नगर की सर्वेसर्वा होने के नाते ये बात मैडम को भी काफी सालती थी। लोग टोकते भी थे। सूबे में आप की सरकार है। फिर भी कार्यक्रम के लिए आपको दावत नहीं आया। लेकिन मैडम भी कम समझदार नहीं हैं। सियासी कला में माहिर हो गई हैं। आसानी से हथियार डालना उन्होंने नहीं सीखा है। बताते हैं कि मैडम ने इस मामले की शिकायत सियासी कार्यसमिति में कर दी। फिर क्या था। दिल्ली से एक बड़े सियासतदान का चाबुक चला और अपनी तुनकमिजाजी के चलते बदनाम चल रहे पुराने मुखिया पटरी पर आ गए। ऐसा भला हो कि रांची में कोई कार्यक्रम हो और उसमें मैडम को न बुलाएं। छोटे से छोटे कार्यक्रम केलिए भी पूरे सम्मान के साथ न्योता आने लगा अब। फजीहत न हो जाए
शहर के विकास की जिम्मेदारी निभाने वाला यह दफ्तर दूसरों को नसीहत और खुद की फजीहत वाली कहावत चरितार्थ कर रहा है। कार्यालय के अधिकारी घूम-घूम कर लोगों को ज्ञान बांट रहे हैं कि हाथों को सैनिटाइज करते रहें। लेकिन इस कार्यालय में सैनिटाइजर का पैडल पोस्ट तो रखा है। लेकिन उससे सैनिटाइजर की बोतल गायब रहती है। कोई भला मानुष आया और शोर मचाया तो अंदर से बोतल में थोड़ा सा सैनिटाइजर लाकर पैडल पोस्ट में लगा दिया गया। कोई शोर शराबा नहीं हुआ तो बिना सैनिटाइजर के ही दिन भर दफ्तर चल गया। अब इस दफ्तर के साहिबान को कौन समझाए कि अगर बिना सैनिटाइज किए लोग आए तो दफ्तर में कोरोना फैलने से कौन रोक सकता है। कोरोना भी ताक में बैठा हुआ है। पुलिस महकमे में हमला कर कइयों का शिकार कर चुका है। यहां भी लापरवाही हुई तो कहना मुश्किल है।
खुद की ही हो गई छुट्टी
राजधानी में कोरोना को लेकर हालात न बिगड़े इसके लिए पुराने कानून के तहत बनी कमेटी के सर्वेसर्वा अपनी तानाशाही चला रहे थे। कमेटी में नगर की मुखिया भी बराबर की हकदार हैं। मगर साहब कभी मानने को तैयार न थे। कमेटी की जब भी मीटिग होने को होती मुखिया इस इंतजार में होती कि नगर की जिम्मेदारी होने की वजह से उन्हें भी दावत मिलेगी। वह भी बताएंगी कि कहां कंटेनमेंट जोन बनाना है। मगर बुलावा नहीं आता। इसे लेकर नगर की मुखिया और कमेटी के सर्वेसर्वा के बीच लंबा शीत युद्ध चला। पत्र बाण चले। साहब ने सब ढाल पर रोका। उफ तक न की। मामला हाईकोर्ट गया। पर साहब झुकने को तैयार न थे। तभी माहौल ने ऐसी करवट ली कि साहब की रांची से छुट्टी हो गई। देखना है कि नए सर्वेसर्वा मुखिया को मीटिग में बुलाते हैं या नहीं।