Move to Jagran APP

राज्‍यसभा सदस्‍य महेश पोद्दार बोले, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नारी गरिमा का मानमर्दन; अविलंब रोक लगाए सरकार

पोद्दार ने कहा है कि वेब सीरिज “तांडव” के देशव्यापी विरोध ने यह प्रमाणित कर दिया है कि देश का आम जनमानस मनोरंजन के नाम पर अपनी सभ्यता-संस्कृति-मान्यताओं के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 06:46 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 06:58 PM (IST)
राज्‍यसभा सदस्‍य महेश पोद्दार बोले, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नारी गरिमा का मानमर्दन; अविलंब रोक लगाए सरकार
महेश पोद्दार ने केंद्रीय मंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा है।

रांची, जासं। राज्‍यसभा सदस्‍य महेश पोद्दार ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अविलंब रोक लगाने की मांग की है। उन्‍होंने कहा है कि यहां नारी गरिमा का मानमर्दन हो रहा है। उन्‍होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रयोग में लाई जा रही आपत्तिजनक भाषा एवं विषयवस्तु पर कड़ी आपत्ति जताई। पोद्दार ने इस संबंध में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर को एक पत्र लिखा है।

loksabha election banner

केंद्रीय मंत्री को लिखे पत्र में पोद्दार ने कहा है कि वेब सीरिज “तांडव” के देशव्यापी विरोध ने यह प्रमाणित कर दिया है कि देश का आम जनमानस मनोरंजन के नाम पर अपनी सभ्यता-संस्कृति-मान्यताओं के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है। देश का एक बड़ा वर्ग धार्मिक–सांस्कृतिक कारणों से इसका विरोध कर रहा है। पोद्दार ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध सामग्री द्वारा भारतीय सामाजिक मूल्यों पर हो रहे आघात को लेकर चिंता जताई है।

उन्होंने कहा है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म की भाषा और कंटेंट में लैंगिक भेदभाव साफ झलकता है| एक तरफ तो हम स्त्रियों की अस्मिता की रक्षा के लिए खुद को प्रतिबद्ध बताते हैं, वहीं दूसरी तरफ हमें सार्वजनिक माध्यमों पर मां-बहन की गालियां उपलब्ध कराई जा रही है। स्त्री–पुरुषों के जननांगों की चर्चा सार्वजनिक तौर पर वीभत्स रूप में की जा रही है। निजी बोलचाल में संभव है कि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल होता हो, लेकिन सार्वजनिक तौर पर उसकी चर्चा से जुड़ी कई वर्जनाएं हैं। उसे ही हम हया, शर्म, लज्जा, मर्यादा आदि का नाम देते हैं क्योंकि ये स्थापित मान्यता है कि सभ्य समाज की यह भाषा नहीं है।

भाषा कोई भी हो, हिंदी, अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा। यह भी गौर करने योग्य है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील-फूहड़ भाषाओं के इस्तेमाल के क्रम में नारी गरिमा को ही तार-तार किया जाता है। कंटेंट ऐसा होता है, भाषा ऐसी होती है कि मानो तय कर लिया गया है कि पुरुष भोगी है और नारी भोग्या। “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता” की भावना वाले देश में ऐसी विषयवस्तु और भाषा कैसे स्वीकार्य हो सकती है?

पोद्दार ने कहा कि देश की संसद में, यदि कोई शब्द या वाक्य आपत्तिजनक प्रतीत होता है तो तुरंत ये आवाजें उठती हैं कि यह शब्द या वाक्य असंसदीय है और उसे कार्यवाही से निकाल दिया जाना चाहिए। जो भाषा संसदीय नहीं है वह सार्वजनिक जीवन के अनुकूल और किसी सार्वजनिक प्लेटर्फार्म पर विक्रय योग्य, वितरण योग्य, प्रसारण योग्य कैसे हो सकता है?


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.