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Rajasthan Political Crisis: उधर‍ राजस्थान में बिदके सचिन पायलट, इधर झारखंड में भी 'बगावत' की तैयारी

Rajasthan Government Crisis राजस्‍थान में भी सचिन पायलट कांग्रेस से बिदक गए हैं। कहा जा रहा है कि राजस्‍थान की अशोक गहलोत सरकार के दिन भी अब गिनती के बचे हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Mon, 13 Jul 2020 09:32 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 04:39 AM (IST)
Rajasthan Political Crisis: उधर‍ राजस्थान में बिदके सचिन पायलट, इधर झारखंड में भी 'बगावत' की तैयारी
Rajasthan Political Crisis: उधर‍ राजस्थान में बिदके सचिन पायलट, इधर झारखंड में भी 'बगावत' की तैयारी

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। Rajasthan Government Crisis पहले मध्‍य प्रदेश और अब राजस्‍थान में कांग्रेस बड़े नुकसान की तरफ आगे बढ़ रही है। कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधव राव सिंधिया के बेटे ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के भाजपा के पाले में आने और फिर मध्‍य प्रदेश में सरकार गंवाने के बाद अब राजस्‍थान में भी सचिन पायलट कांग्रेस से बिदक गए हैं। कहा जा रहा है कि राजस्‍थान की अशोक गहलोत सरकार के दिन भी अब गिनती के बचे हैं।

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ऐसे में सरकार और संगठन की बागडोर एक ही हाथ में देने का खामियाजा मध्‍य प्रदेश में भुगत चुकी कांग्रेस अब राजस्‍थान में सरकार बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। आज जयपुर में कांग्रेस विधायकों की अहम बैठक हो रही है। इसके लिए व्हिप भी जारी किया गया है। इस बीच झारखंड कांग्रेस के हालात भी अच्‍छे नजर नहीं आ रहे हैं। झारखंड में भी अपने विधायकों की अनदेखी का खामियाजा कांग्रेस को आने वाले दिनों में उठाना पड़ सकता है। 

संगठन से दूरी बनाने लगे हैं झारखंड कांग्रेस के विधायक

झारखंड में कांग्रेस संगठन की बात करें तो यहां कांग्रेस विधायक संगठन से दूरी बनाने में लगे हैं। भले ही वे कुछ खुलकर बोल नहीं रहे, लेकिन अंदरुनी तौर पर सत्‍तारुढ़ दल झामुमो के मुखिया मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर उनके गुडबुक में शामिल होने की जोर-आजमाइश चल रही है। प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में कई स्‍तरों पर एक व्‍यक्ति एक पद की मांग की जा चुकी है, लेकिन लगातार इसकी अनदेखी से आने वाले दिनों में खतरा टलने की बजाय बढ़ने की संभावना प्रबल होती जा रही है। समय रहते कांग्रेस आलाकमान ने झारखंड की इस अंदरखाने की खींचतान पर ध्‍यान नहीं दिया, तो इस बात से इन्‍कार नहीं कि कब यहां बगावत हो जाए।

सिंधिया-सचिन के बाद झारखंड में तैयार हो रहा बगावत का आधार

सरकार और संगठन की बागडोर एक ही हाथ में रहने का खामियाजा मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में उठा रही कांग्रेस के लिए झारखंड में भी आने वाले दिनों के लिए हालात अच्छे नहीं दिख रहे। सिंधिया और  इसके बाद सचिन  प्रकरण ने  पार्टी के लिए  समस्याएं बढ़ा दी हैं। पार्टी में कई स्तरों पर एक व्यक्ति एक पद जैसी मांगे उठ चुकी हैं और इसकी अनदेखी से आने वाले दिनों में खतरा टलने की बजाए बढ़ने की संभावना प्रबल होती दिख रही है। झारखंड के विधायक भले ही अभी कुछ बोल नहीं रहे हैं लेकिन संगठन से दूरी बनाने ही लगे हैं। यही कारण है कि कई विधायक अपने स्तर से मुख्यमंत्री के गुड बुक में शामिल होने की कोशिश कर चुके हैं। आलाकमान ने ध्यान नहीं दिया तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता झारखंड में भी बगावत हो जाए।

सरकार और संगठन की अनदेखी से विधायक आहत, खुलेआम बोल चुके हैं दिल की बात

सत्ता और संगठन के बीच समन्वय बनाने की असफलता की शुरुआत पिछले महीने 9 जून को ही हो गई थी। कांग्रेस के विधायक जुटे थे राज्यसभा चुनाव की रणनीति बनाने के लिए लेकिन इसी बैठक से विधायकों के मन में छिपी भावनाएं बाहर निकलने लगीं और कई विधायकों ने यहां तक कहा था कि सरकार में रहकर भी छोटा छोटा काम ना हो तो फिर क्या मतलब है। इस मामले ने तूल नहीं पकड़ा लेकिन इतना जरूर हुआ कि 6 महीने में ही विधायकों की नाराजगी उभरने लगी। उस वक्त कई विधायकों ने संगठन स्तर पर इस बात की मांग की थी कि उनके जिले में पहले से नियुक्त कुछ अधिकारियों को हटाया जाए।

मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में बगावत से झारखंड में पार्टी के लिए अच्छे नहीं दिख रहे आसार

संगठन के स्तर से अनदेखी के बाद विधायक खुद भी मुख्यमंत्री से मिलकर इन बातों को रख चुके हैं। सिमडेगा जिले के दोनों विधायक वहां के देसी और एसपी को हटाने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगा चुके हैं। इस मामले में संगठन का साथ नहीं मिला है। अधिकारी अभी भी नहीं बदले हैं और नाराजगी कहीं ना कहीं दिलों में घर कर रही है। कई और जिलों में  इसी तरह के हालात हैं। इस मसले पर कोई कुछ बोल तो नहीं रहा लेकिन एक सीनियर नेता इतना जरूर बोलें की केंद्रीय नेता कपिल सिब्बल का बयान ही काफी है। सिब्बल ने कहा है कि कांग्रेस तक जगती है जब घोड़े अस्तबल से भाग चुके होते हैं। पार्टी का एक खेमा संगठन की अनदेखी से नाराज भी है।

सार्वजनिक तौर पर कर रहे विरोध

मध्यप्रदेश में जहां सत्ता और संगठन की कमान कमलनाथ के हाथ में थी वहीं राजस्थान में सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष भी थे और मंत्री भी। कांग्रेस नेताओं की मानें तो ऐसे ही निर्णय से पार्टी दो ध्रुवों में बांटना शुरू हुई जिसका नतीजा सभी देख रहे हैं। झारखंड में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय पहले ही संगठन से नाराज चल रहे हैं हालांकि उन्हें महज एक दो विधायकों का साथ मिल सकता है। कुछ अन्य मुद्दों पर विधायक इरफान अंसारी अपना विरोध सार्वजनिक तौर पर जाहिर कर चुके हैं। पार्टी में डॉ रामेश्वर राव के पास वित्त एवं आपूर्ति जैसा महत्वपूर्ण विभाग भी है और प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व भी। कुछ लोग दबी जुबान से इसका विरोध लगातार कर रहे हैं। देखने की बात यह होगी कि विरोध कब उग्र रूप धारण करता है।

आदिवासी नेतृत्व से आदिवासी विधायक ही नाराज

झारखंड में डॉ रामेश्वर उरांव के रूप में पार्टी को एक मजबूत आदिवासी नेतृत्व मिला और अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन भी देखने को मिला। इसके बावजूद कांग्रेस के आदिवासी विधायक की कहीं न कहीं खुद को अनदेखी का शिकार मान रहे हैं। यही कारण है कि सिमडेगा जिले के दोनों विधायक अलग राह पकड़ चुके हैं। विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी और भूषण बाड़ा खुलेआम यह बात उठा चुके थे कि सरकार में रहने के बावजूद उनकी बातें नहीं सुनी जा रही हैं। सिमडेगा के उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक को हटवाने के लिए वे मुख्यमंत्री से भी मिले हैं। धीरे धीरे उनके साथ और लोग भी जितने लगेंगे। इस गुट को पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय के समर्थकों का सहयोग मिल रहा है।


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